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CPCT UMARIA (RAM-JINDGI) 9301406862
created Mar 4th, 10:19 by Ramnaresh Patel AYAMRAM
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अनादिकाल से मध्यप्रदेश कला, साहित्य और संस्कृति के केन्द्र में रहा है। यहां की धरती पर कला, संस्कृति और साहित्य का बीजारोपण मानव समाज के विकास के साथ-साथ पुष्पित, पल्लवित होता चला गया। भीमबैठका, बाग, नचना कुठार औरस खजुराहो इसके सजीव व साक्षात प्रमाण हैं। मध्यप्रदेश में कला-संस्कृति के राजाश्रय की बड़ी प्राचीन परंपरा रही है। महाराजा विकृमादित्य व माहराजा भोज को इसके लिए स्मरण किया जाता है। म.प्र. ने अनेक सांस्कृतिक विभूतियों को जन्म दिया है, इनमें भवभूति, कालिदास, राजशेखर, पतंजलि, भृतहरि, अरंगहर्ष, वत्सराज, कृष्ण मिश्र, हबीब तनवीर, माखनलाल चतुर्वेदी, शिवमंगल सिंह सुमन, हरिशंकर परिसाई, पं. बालकृष्ण शर्मा, उस्ताद अलाउद्दीन खॉं, लता मंगेशकर, कुमार गंधर्व, असगरी बाई आदि शरीक हैं।
राज्य की संस्कृति, कला और साहित्यीक धरोहर को सहेजने के लिए राज्य शासन ने निरंतर प्रयास किए हैं। इससे देश और दुनिया मध्यप्रदेश की धरोहर को जान-समझ पाई। इस दिशा में 1982 में भोपाल में स्थापित बहुविधा कला केन्द्र भारत भवन की भूमिका अत्यधिक प्रभावशाली रही है। भारत-भवन ने मध्यप्रदेश को एक नई पहचान दी। राज्य में कलाओं, संस्कृति और साहित्य का वैभवपूर्ण अतीत और इतिहास रहा है। इनको अनेक जाने पहचाने और वक्त की धुधं में खो गए असंख्य अनजाने लोगों ने आकार दिया है।
कला:- मध्यप्रदेश में संगीत कला, चित्रकला, रंगमंच और लोकनाट्य का सुनहरा इतिहास रहा है। कला की यह परंपरा आज भी जारी है। मध्यप्रदेश में कला की परंपरा को संगीत, चित्रकला और रंगमंच के इतिहास और वर्तमान स्थिति के जरिये आसानी से समझाा जा सकाता है।
संगीत:- भारतीय संगीत की बात चलती है, तो प्रख्यात संगीतकार तानसेन का नाम सहज ही जेहन में उभर आता है। वे म.प्र. के भू-भाग ग्वालियर के निवासी थे। देश को मध्यप्रदेश से संगीतकार तानसेन जैसा अनमोल रत्न मिला तो ध्रुपद गायन जैसी अद्भुत शैली। राजा मानसिंह तोमर के समय के संगीत परंपरा को सिंधिया राजघराने ने आगे बढ़ाया। दौलतराव सिंधिया के शासनकाल में यहॉं ख्याल गायकी का आगमन लखनऊ के कव्वाल मोहम्मद खॉं के आगमन के साथ हुआ। ख्याल तराने की गायन शैली हद्दू खॉं और नत्थू खॉं ने विकसित की ओर आज इस सिलसिले को एक परंपरा के रूप में ग्वालियर संगीत घराने के अनेक संगीत मनीषियों जिनमें कृष्णराव शंकर पंडित, उस्ताद अमजद अली खॉं आगे बढ़ा रहे हैं। माधव संगीत विद्यालय राज्य की सबसे पुरानी संगीत संस्था है। इसकी स्थापना 1918 में की गई थी।
राज्य की संस्कृति, कला और साहित्यीक धरोहर को सहेजने के लिए राज्य शासन ने निरंतर प्रयास किए हैं। इससे देश और दुनिया मध्यप्रदेश की धरोहर को जान-समझ पाई। इस दिशा में 1982 में भोपाल में स्थापित बहुविधा कला केन्द्र भारत भवन की भूमिका अत्यधिक प्रभावशाली रही है। भारत-भवन ने मध्यप्रदेश को एक नई पहचान दी। राज्य में कलाओं, संस्कृति और साहित्य का वैभवपूर्ण अतीत और इतिहास रहा है। इनको अनेक जाने पहचाने और वक्त की धुधं में खो गए असंख्य अनजाने लोगों ने आकार दिया है।
कला:- मध्यप्रदेश में संगीत कला, चित्रकला, रंगमंच और लोकनाट्य का सुनहरा इतिहास रहा है। कला की यह परंपरा आज भी जारी है। मध्यप्रदेश में कला की परंपरा को संगीत, चित्रकला और रंगमंच के इतिहास और वर्तमान स्थिति के जरिये आसानी से समझाा जा सकाता है।
संगीत:- भारतीय संगीत की बात चलती है, तो प्रख्यात संगीतकार तानसेन का नाम सहज ही जेहन में उभर आता है। वे म.प्र. के भू-भाग ग्वालियर के निवासी थे। देश को मध्यप्रदेश से संगीतकार तानसेन जैसा अनमोल रत्न मिला तो ध्रुपद गायन जैसी अद्भुत शैली। राजा मानसिंह तोमर के समय के संगीत परंपरा को सिंधिया राजघराने ने आगे बढ़ाया। दौलतराव सिंधिया के शासनकाल में यहॉं ख्याल गायकी का आगमन लखनऊ के कव्वाल मोहम्मद खॉं के आगमन के साथ हुआ। ख्याल तराने की गायन शैली हद्दू खॉं और नत्थू खॉं ने विकसित की ओर आज इस सिलसिले को एक परंपरा के रूप में ग्वालियर संगीत घराने के अनेक संगीत मनीषियों जिनमें कृष्णराव शंकर पंडित, उस्ताद अमजद अली खॉं आगे बढ़ा रहे हैं। माधव संगीत विद्यालय राज्य की सबसे पुरानी संगीत संस्था है। इसकी स्थापना 1918 में की गई थी।
