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CPCT UMARIA (RAM-JINDGI)
created Jan 9th, 11:58 by Ramnaresh Patel AYAMRAM
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महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास के उन महान योद्धाओं में लिया जाता है, जिन्होंने अपने अदम्य साहस और अडिग संकल्प से मुगलों के सामने न झुकने की कसम खाई थी। उनकी वीरता, आत्म-सम्मान और अपने राज्य की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता एक प्रेरणादायक गाथा है, जिसे हर भारतीय अपने दिल में संजोकर रखता है। यह हमें उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराती है, जिनसे हमें दृढ़ निश्चय और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा मिलती है। महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था। उनके पिता महाराणा उदय सिंह और माता रानी जयवंता बाई थीं। बचपन से ही प्रताप में वीरता और साहस की अद्वितीय भावना थी। उन्होंने केवल 14 वर्ष की उम्र में घुड़सवारी और हथियार चलाने का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था। उन्होंने कैसे अपने प्रारंभिक जीवन में ही योद्धा बनने के गुण दिखाए, जो आगे चलकर एक महान योद्धा बनने में सहायक साबित हुए। महाराणा प्रताप की कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उनके पिता महाराणा उदय सिंह ने चित्तौड़गढ को छोड़कर उदयपुर को अपनी नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया। मुगल सम्राट अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया था, और उदय सिंह ने इस संकट का सामना युद्ध से बचने के लिए संधि करके करना चाहा। लेकिन महाराणा प्रताप इससे सहमत नहीं थे। उन्होंने अपने पिता के इस निर्णय के विपरीत जाकर चित्तौड़ को पुनः प्राप्त करने का संकल्प लिया। यह उनके अडिग संकल्प और वीरता का प्रतीक था, जो उन्हें भारतीय इतिहास में विशेष स्थान दिलाता है। 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के रूप में दर्ज है। यह युद्ध महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच हुआ था, जिसमें मुगल सेना का नेतृत्व अकबर के सेनापति मान सिंह प्रथम ने किया था। इस संघर्ष को भारतीय इतिहास में एक निर्णायक युद्ध माना जाता है। महाराणा प्रताप की सेना के पास केवल 20,000 सैनिक थे, जबकि मुगल सेना में लगभग 80,000 सैनिक थे। इस युद्ध ने महाराणा प्रताप की रणनीतिक कुशलता और युद्धकला को उजागर किया, जिसमें उन्होंने मुगलों की विशाल सेना का मुकाबला किया।
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