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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ ||༺•|✤आपकी सफलता हमारा ध्येय✤|•༻
created Nov 23rd 2022, 11:34 by typing guru
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मानवीय गरिमा क्या है, एक खुले हुए समाज के लिये कौन से अधिकार मूलभूत हैं, राजनीतिक शक्ति की सीमाएं क्या है ये सभी प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्राचीन काल से ही ये विचार मनुष्य को उद्वेलित करते रहे हैं एवं इन्हीं विचारों की श्रृंखलाओं ने संकल्पनाओं को जन्म दिया, जिसने मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाया। मानवाधिकार इन्हीं संकल्पनाओं में से एक है। जैसा कि हम जानते हैं विभिन्न संकल्पनाओं में संगतता का अभाव होता है जिसके कारण विरोधी संकल्पनाएं जन्म लेती हैं। व्यक्तिगत मानवाधिकार एवं सामूहिक अधिकार भी ऐसी ही दो संकल्पनाएं हैं। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास हेतु अधिकार एक आवश्यक शर्त है। इस अधिकार का आधार बहुत विस्तृत होता है जिसमें विधिक अधिकार, मौलिक अधिकार, नागरिक अधिकार आदि शामिल हैं। मानवाधिकार भी इन्हीं संकल्पनाओं में निहित है। अगर मानवाधिकार की बात की जाए तो ये अधिकार हैं जो मानव को मानव होने के कारण प्राप्त होते हैं।
मनुष्य को अपने व्यक्तिगत विकास हेतु जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है, वह मानवाधिकार कहलाते हैं। व्यक्ति के स्वयं के विकास हेतु प्रयोग किये जाने वाले अधिकार, व्यक्तिगत मानवाधिकार कहलाते हैं। वहीं समाज के सभी व्यक्तियों के मानव अधिकार की बात आती है तो यह सभी अधिकार सामूहिक अधिकार की श्रेणी में आते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की बात भी वर्ष 1948 में 48 देशों के समूह ने संपूर्ण मानव जाति के मूलभूत अधिकारों की व्याख्या करते हुए एक चार्टर पर हस्ताक्षर किये गये थे। इसमें इस मत पर भी सहमति व्यक्ति की गई थी कि व्यक्ति के मानवाधिकारों की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिये। वस्तुत: वर्तमान में मुद्दा अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख का है जिसके लिये कुछ अधिकार संपन्न लोगों के अधिकारों पर अंकुश लगाया जाता है ताकि समाज में सभी को लाभ मिल सके। अत: समाज के सभी वर्गों को सामूहिक मानवाधिकार देने के लिये व्यक्तिगत अधिकारों पर निर्वधन लगाना आवश्यक है।
मनुष्य को अपने व्यक्तिगत विकास हेतु जिन अधिकारों की आवश्यकता होती है, वह मानवाधिकार कहलाते हैं। व्यक्ति के स्वयं के विकास हेतु प्रयोग किये जाने वाले अधिकार, व्यक्तिगत मानवाधिकार कहलाते हैं। वहीं समाज के सभी व्यक्तियों के मानव अधिकार की बात आती है तो यह सभी अधिकार सामूहिक अधिकार की श्रेणी में आते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की बात भी वर्ष 1948 में 48 देशों के समूह ने संपूर्ण मानव जाति के मूलभूत अधिकारों की व्याख्या करते हुए एक चार्टर पर हस्ताक्षर किये गये थे। इसमें इस मत पर भी सहमति व्यक्ति की गई थी कि व्यक्ति के मानवाधिकारों की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिये। वस्तुत: वर्तमान में मुद्दा अधिकतम लोगों के अधिकतम सुख का है जिसके लिये कुछ अधिकार संपन्न लोगों के अधिकारों पर अंकुश लगाया जाता है ताकि समाज में सभी को लाभ मिल सके। अत: समाज के सभी वर्गों को सामूहिक मानवाधिकार देने के लिये व्यक्तिगत अधिकारों पर निर्वधन लगाना आवश्यक है।
