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स्वामी विवेकानन्द ने सत्य की खोज में जो बाते कही है, वे हर व्यक्ति के जीवन में अब भी महत्व रखती है हालात से डरकर भागना स्वामी विवेकानन्द जी ने कभी नहीं सीखा वे हमेशा ही हालात का मुकाबला करने की प्ररेणा देते थे विषम से विषम और दुरूह से दुरूह परिस्थिति में भी व्यक्ति को अपना सम्मान नहीं खोना चाहिए ...... उनका मानना था कि हर व्यक्ति जो ब्रम्हा का प्रतीक है, अद्भुभुत अलौकिक शक्तियों का स्वामी है.....
अगर कोई व्यक्ति ठान ले तो कितने भी खराब हालात क्यों न हो उनपर नियंत्रण रख सकता है और हालात को अपने पक्ष में ढाल सकता है।।। अलग-अलग मौके पर स्वामी--- विवेकानन्द ने अपने शिष्यों को भी ऐसे मंत्र दिए जो उन्हे पराजय के भय से दूर होकर आगे बढ़ने की सतत् प्रेरणा देते रहे;;;;
अग्निमन्त्र'1'
--हे सखे तुम क्यों रो रहे हो ? विश्व की हर एक शक्ति तो तुम्ही में है... भगवन आप खुद अपने स्वयं को विकसित तो करो. देखों, तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं तुम्हारे पास आत्मा की प्रबल शक्ति है; इसलिए डरो मत।।।। इस संसार से, ,,, इस भवसागर से पार उतरने का एक ही उपाय है और वह उपाय यही है कि जिस पर तुम चल रहे हो उसी पथ पर चलकर संसार के सभी लोग भवसागर को पार करते है;;... यही श्रेष्ठतम पथ्, है... यही श्रेष्ठ पथ मैं तुम्हें दिखाता हूँ।.;
अग्निमंत्र--2
'' यदि तुम लोग कमर कसकर अपने लक्ष्य को पाने के लिए जुट जाओ तो छोटे मोटे की तो बात ही क्या, बडे से बडे दिग्गज बह जायेंगे.. तुम केवल एक हुंकार मात्र से इस दुनिया को पलटने का सामर्थय रखते हो.. आप जो भी कर रहे हो, यह तो उसका केवल प्रारब्ध है इसलिए किसी के साथ विवाद नहीं करो... हिल-मिलकर रहना सर्वोत्तम है यह दुनिया भयावह है और किसी पर भी विश्वास नहीं है. ऐसा सोचना उचित नहीं''' डरने से भी कोई समस्या का समाधान नहीं निकलता आप जिस दिशा में जा रहे हो, इस दृढ संकल्प के साथ जाओ मां जगत जननी मेरे साथ है इस संकल्प मात्र से ऐसे कार्य होंगे कि तुम खुद चकित हो जाओगे... फिर भी किस बात का डर ? किसका ? वज्र जैसा हृदय बनाओं और अपने कार्य में जुट जाओ...
अगर कोई व्यक्ति ठान ले तो कितने भी खराब हालात क्यों न हो उनपर नियंत्रण रख सकता है और हालात को अपने पक्ष में ढाल सकता है।।। अलग-अलग मौके पर स्वामी--- विवेकानन्द ने अपने शिष्यों को भी ऐसे मंत्र दिए जो उन्हे पराजय के भय से दूर होकर आगे बढ़ने की सतत् प्रेरणा देते रहे;;;;
अग्निमन्त्र'1'
--हे सखे तुम क्यों रो रहे हो ? विश्व की हर एक शक्ति तो तुम्ही में है... भगवन आप खुद अपने स्वयं को विकसित तो करो. देखों, तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं तुम्हारे पास आत्मा की प्रबल शक्ति है; इसलिए डरो मत।।।। इस संसार से, ,,, इस भवसागर से पार उतरने का एक ही उपाय है और वह उपाय यही है कि जिस पर तुम चल रहे हो उसी पथ पर चलकर संसार के सभी लोग भवसागर को पार करते है;;... यही श्रेष्ठतम पथ्, है... यही श्रेष्ठ पथ मैं तुम्हें दिखाता हूँ।.;
अग्निमंत्र--2
'' यदि तुम लोग कमर कसकर अपने लक्ष्य को पाने के लिए जुट जाओ तो छोटे मोटे की तो बात ही क्या, बडे से बडे दिग्गज बह जायेंगे.. तुम केवल एक हुंकार मात्र से इस दुनिया को पलटने का सामर्थय रखते हो.. आप जो भी कर रहे हो, यह तो उसका केवल प्रारब्ध है इसलिए किसी के साथ विवाद नहीं करो... हिल-मिलकर रहना सर्वोत्तम है यह दुनिया भयावह है और किसी पर भी विश्वास नहीं है. ऐसा सोचना उचित नहीं''' डरने से भी कोई समस्या का समाधान नहीं निकलता आप जिस दिशा में जा रहे हो, इस दृढ संकल्प के साथ जाओ मां जगत जननी मेरे साथ है इस संकल्प मात्र से ऐसे कार्य होंगे कि तुम खुद चकित हो जाओगे... फिर भी किस बात का डर ? किसका ? वज्र जैसा हृदय बनाओं और अपने कार्य में जुट जाओ...
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