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अनुत्तरित प्रश्न

created Dec 23rd 2016, 06:30 by RizwanKhan911544


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काले धन के कारोबार में लिप्त कुछ बड़े लोगों की गिरफ्तारी एक ओर जहां यह बताती है कि आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय की सतर्कता एवं सक्रियता बढ़ी है वहीं यह सवाल भी खड़े करती है कि क्या ऐसे सभी संदिग्ध लोगों की निगरानी की जा पा रही है? इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि काले धन का जखीरा जमा किए तमिलनाडु के मुख्य सचिव के साथ उनके सहयोगी भी पकड़े गए और पश्चिम बंगाल के एक बड़े कारोबारी भी। निःसंदेह उक्त नामचीन लोगों के अलावा कुछ अन्य उद्यमी, व्यापारी और नौकरशाह भी काले धन को सभेद करने के फेर में आयकर विभाग अथवा प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्त में आए हैं, लेकिन क्या इससे इंकार किया जा सकता है कि ऐसे ही तमाम लोग बचे भी रहे होंगे और उन्होंने अपने काले धन को सफेद भी कर लिया होगा? इस अंदेशे का बड़ा कारण यह है कि आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय अथवा अन्य केंद्रीय एजेंसियो की पहुँच देश के बड़ो शहरों तक ही सीमित है। छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में काले धन वालों ने क्या किया, इसकी केंद्रीय एजेंसियों को शायद ही कोई खबर रही हो। सबसे गंभीर बात यह है कि तमाम धरपकड़ के बाद भी केंद्रीय एजेंसियां अथवा रिजर्व बैंक यह बताने की स्थिति में नहीं कि काले धन वालों के पास नए नोट कैसे बहुंच रहे हैं? देश के विभिन्न हिस्सों में नए नोटों की बरामदगी का सिलसिला कायम है। इस बरामदगी में बड़ी संखया मे दो हजार के नए नोट भी हैं। आखिर अभी तक यह क्यों नहीं जाना जा सका है कि ये नए नेट बैंकिंग सिस्टम से कैस बाहर रहे हैं? काले धन को सफेद करने के आरोप में कोलकाता के जिस कारोबारी को गिरफ्त में लिया गया उसके बारे में संदेह है कि उसने 25 करोड़ रुपये का काला धन सफेद किया। अगर यह सच है तो इसका मतलब है कि व्यवस्था में ऐसी गंभीर कामियां है जिनके जरिये काले धन को सफेद करना बहुत आसान है। यह काम केवल आसान है, बल्कि तरह-तरह के जतन वाला भी है। आखिर इस आसान काम को मुश्किल बनाने के लिए क्या किया जा रहा है? एक अन्य अनुत्तिरत प्रश्न यह है कि नए नोट बैंकों में जाने के बाद इधर-उधर हो रहे हैं या फिर उसके पहले ही? यदि इस सामान्य से सवाल का जवाब नहीं मिलता तो फिर नए सिरे से काला धन जमा होने से कैसे रोका जा सकता है? यदि रिजर्व बैंक के साथ सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंक अपने सिस्टम में हो रही सेंधमारी को रोकने में समर्थ नहीं तो फिर सरकार की ओर से यह दावा करना कहां तक सही है कि 30 दिसंबर के बाद हालात सामान्य होंगे? निःसंदेह नोटबंदी के बाद नकदी रहित लेन-देन वक्त की जरूरत बन गया है। सरकार इस कोशिश में है कि जयादा से ज्यादा लोग नकदी रहीत लेन-देन को अपनाएं। इसके लिए तमाम तरह की योजनाएं चलाई जा रही है और आम लोगों के साथ-साथ छोटे-बड़े कारोबारियों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है, लोकिन यह समझना कठिन है कि इसके लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं कि नए सिरे से काला धन पैदा हो और काले धन वालों के बच निकले का कोई रास्ता बचे?
 

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