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कौआ और बालिका
created Aug 13th 2016, 12:18 by singhshyam
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किसी गाँव में एक निर्धन बुढ़िया रहती थी। एक दिन उसने एक थाली में थोड़े से चावल लेकर धूप में रख दिए और अपनी बेटी से बोली- बेटी, इन चावलों को पक्षियों से रक्षा करो। बेटी चावलों की रक्षा के लिए बैठ गई।
तभी एक कौआ वहाँ आया और चावल खाने लगा। कौए के पंख सोने के और चोंच चाँदी की थी। बालिका ने ऐसा अद्भुत कौआ पहले कभी नहीं देखा था। बालिका ने कौए से कहा- मेरे चावल मत खाओ, मेरी माँ गरीब है। यह सुनकर कौआ हँसने लगा। कौए को हँसते देख बालिका रोने लगी। कौए ने कहा- रोओ मत। कल प्रातःकाल होने से पहले गाँव के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे आ जाना। मैं तुम्हें चावलों की कीमत चुका दूँगा। यह कहकर कौआ उड़ गया।
दूसरे दिन बालिका पीपल के पेड़ के नीचे पहुँच गई और बोली- कौए भाई, मैं आ गई। कौए ने अपने घर की सोने की खिड़की से झाँककर देखा और बोला- तुम आ गईं। ठहरो, मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। बताओ, सोने की सीढ़ी से उपर आओगी या चाँदी या ताँबे की सीढ़ी से। बालिका ने कहा- मैं ताँबे की सीढ़ी से ऊपर आ जाऊँगी। किंतु कौए ने उसके लिए सोने की सीढ़ी उतारी। बालिका उस सीढ़ी से कौए के भवन तक पहुँच गई।
तभी एक कौआ वहाँ आया और चावल खाने लगा। कौए के पंख सोने के और चोंच चाँदी की थी। बालिका ने ऐसा अद्भुत कौआ पहले कभी नहीं देखा था। बालिका ने कौए से कहा- मेरे चावल मत खाओ, मेरी माँ गरीब है। यह सुनकर कौआ हँसने लगा। कौए को हँसते देख बालिका रोने लगी। कौए ने कहा- रोओ मत। कल प्रातःकाल होने से पहले गाँव के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे आ जाना। मैं तुम्हें चावलों की कीमत चुका दूँगा। यह कहकर कौआ उड़ गया।
दूसरे दिन बालिका पीपल के पेड़ के नीचे पहुँच गई और बोली- कौए भाई, मैं आ गई। कौए ने अपने घर की सोने की खिड़की से झाँककर देखा और बोला- तुम आ गईं। ठहरो, मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। बताओ, सोने की सीढ़ी से उपर आओगी या चाँदी या ताँबे की सीढ़ी से। बालिका ने कहा- मैं ताँबे की सीढ़ी से ऊपर आ जाऊँगी। किंतु कौए ने उसके लिए सोने की सीढ़ी उतारी। बालिका उस सीढ़ी से कौए के भवन तक पहुँच गई।
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