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श्री कैला चालीसा तथा कैलाजी की आरती दी गई है।
created Aug 13th 2016, 06:44 by AnandVaksha
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श्री गणेशाय नमः
दोहा—जय जय कैला मात हे, तुम्हें नवाऊ माथ ।
शरण पड़ो मेया को चरण जोडूं दोनो हाथ ।।
जय जय जय कैला महारानी ।
नमों नमों जगदम्ब भवानी।
सब जग की हो भाग्य विधाता।
आदि शक्ति तू सबकी माता।
दोनों बहिना सबसे न्यारी।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी।
शोभा सदन सकल गुणखानी।
वेद पुरानन मांहि बखानि।4।
जय हे मात करौली वाली।
शत प्रणाम काली सिल वाली।5।
ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी।
हिंगलाज में तू महतारी।6।
तू ही नरी सैमरी वाली ।
तू चामुण्डा तू कंकाली।7।
नगर कोट में तू ही विराजै।
विन्ध्याचल में तू ही राजै।8।
धौलागढ़ बेलौन की माता ।
वैष्णवी देवी जग में विख्याता।9।
नव दुर्गा तू मात भवानी।
चामुण्डा मन्शा कल्यानी ।10।
जय जय सूये चोले वाली।
जय काली कलकत्ते वाली।11।
तू ही लक्ष्मी तू ब्रह्मानी ।
पार्वती तू ही इन्द्रानी । 12।
सरस्वती तू विद्या की दाता।
तू ही है सन्तोषी माता।13।
अन्नपूर्णा तू जग पालक ।
माता पिता तुम ही तेरे हम बालक।14।
सीता राधा तू सावित्री।
तारा मातंगी गायत्री।15।
तू ही आदि सुन्दरी अम्बा।
माता चर्चिका हे जगदम्बा ।16।
एक हाथ में खप्पर राजै।
दूजे हाथ त्रिशूल विराजै ।17।
काली सिल पै दानव मारे ।
राजा नल के कारज सारे। 18।
शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी ।
महिषासुर को मारन वारी । 19।
रक्तबीज रण बीच पछारौ ।
शंखा सुर तैनें संहारौं।20।
ऊँचे नीचे पर्वत वारी ।
करती माता सिंह सबारी।21।
ध्वजा तेरी ऊपर फहरावैं।
तीन लोक में यश फैलावै ।22।
अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै।
चाँदी के चौतरा पै राजै।23।
लांगुर घँटुअन चलै भवन में।
माता राज तेरौ त्रिभुवन में ।24।
घनन घनन घन घण्टा बाजत।
ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत ।25।
अगनित दीप जलें मन्दिर में ।
ज्योति जले तेरी घर घर में ।26।
चौंसठ जोगिन आंगन नाचत।
बामन भैरों अस्तुति गावत।27।
देव दनुज गन्धर्व व किन्नर।
भूत पिशाच नाग नारी नर ।28।
सब मिल माता तोय मवाबैं।
रात दिना तेरे गुण गावें।29।
जो तेरा बोले जयकारा।
होय मात उसका निस्तारा।30।
मना मनौती आकर घर सै।
जात लगा जो तौकू परसै ।31।
ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावें।
गूंगर लौंग सो ज्योति जलावैं।32।
हलुआ पूरी भोग लगावै।
रोगी मेंहदी फूल चढ़ावें।33।
वह लांगुरिया गोद खिलावें।
धन बल विद्या बुध्दि पावें।34।
जो माँ कौ जागरण करावैं।
चाँदी को सिर छत्र धरावैं।35।
जीवन भर सारे सुख पावें।
यश गौरव दुनियाँ में छावैं।36।
जो भभूत मस्तक पर लगावैं।
भूत प्रेत न बाय सतावें।37।
जो कैला चालीसा पढ़ता।
नित्य नियम से इसे सुमरता ।38।
मन वांछित वह फल को पाता ।
दुख दारिद्र नष्ट हो जाता ।39।
गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी ।
रक्षा कर कैला महतारी ।40।
कैला रक्षा करों हमारी ।।
दोहा – संवत तत्व गुणा नभ भुज सुन्दर रविवार।
पौष सुदी दोज शुभ पूर्ण भयो यह कार ।।
श्री कैलाष्टक
दोहा – जय जय कैला मात है राजत राज अखण्ड।
तीन लोक नव खण्ड में जलती ज्योति प्रचंड ।।
जै जै कैला माता, भाग्य विधाता,
विश्व पालनी जग जननी।
गाते गरिमा , तेरी महिमा,
श्रुति पुरान वेदन बरनी।।
अति नयन विशाला रूप निराला,
उच्च भाल शोभा सदनी ।
बैठी दोऊ जननी, सब तम हरनी,
मंगलमय करनी ।।1।।
जय माता भवानी, जग कल्यानी
अम्बा काली सिल बाली ।
तू ही ब्रह्मानी, तू इन्द्रानी ,
नव दुर्गा तू पाताली ।
तू मात रमा है, तू ही उमा है,
चामुण्डा जग कैंकाली ।
तू ही है ज्वाला, अति विकराला,
मुण्डमाल माला काली ।।2।।
तू निर्विकार है, अपरम्पार है
पार किसी ने नहीं पाया ।
तू माँ अछेद है, व अभेब है,
अजर अमर अद्भुत माया ।
तू ही अनादि है, निर्विवाद है
यश सारी दुनियाँ छाया ।
तू माँ अनन्त है, आदि शक्ति है,
सब पर हे तेरा साया ।।3।।
जय अरिदल दलनी असुर विदारनी
शुंभ निशंभु को संहारौ ।
हिरनाकुश हनकर, नृसिंह बनकर
शिशु प्रहलाद तैने तारौ ।
मारौ भसमासुर, व शंखासुर,
रक्त बीज तोसों हारौ ।
तैने मारे सारे दाने, दुनियाँ जाने,
नल को सब कारज सारौ ।।4।।
जय सिंह वाहिनी, खड़ग धारिनी,
कर खप्पर माता काली ।
तू विद्या दाता, बुध्दि प्रदाता,
धनबल यशबल यश देने वाली ।
तू देव लोक में, मृत्यु लोक में,
है पाताल मैं पाताली ।
जले ज्योति घर घर ग्राम व नगर
वचन न जाये कभी खाली ।।5।।
मां तेरो मन्दिर , अति ही सुन्दर,
ऊँचे पर्वत पर राजत ।
तब ध्वजा फहराये, यशकू गावे,
अष्ट प्रहर नोबत बाजत।
नाचें है जोगना तेरे आँगन,
बीच भवन लांगुरिया भाजत ।
लख भवन मनोहर, मोहे सुरनर
तीन लोक तौसौ लाजत ।।6।।
वहु यात्री आते, लांगुर गाते,
आकर तेरे दरश करे ।
नारियल चढ़ावै ध्वजा फहरावे,
हलुआ पूरी भोग धरे।
हरी चूड़ी पहनावै, चूंदरी उड़ावे
गूगर लोंग की ज्योति जरै।
सिर छत्र धरावे, दीप जलावे
वह भव सागर मात तरें।।7।।
जो आकर घर से माँ कूं परसै,
कैलाजी की जात करें ।
जागरन करावे, मनौती मनावै
वाके दुःख सब मात हरै।।
जो पढ़े यह अष्टक नियम पूर्वक,
पाठ नित्य ही प्रात करें।
गोविन्द शिशु गावै, शीश झुकाबें,
कैला मां सिर हाथ धरें।।
दोहा – कैला माँ अब दरशन दो, शरण पड़ौ हूँ आन।
अष्ट सिध्दि नव निध्दि दे, कर शिशु को कल्याणं।।
।। श्री कैला स्त्रोत ।।
दोहा – आदि अनादि अजर अमर, अजया अतुल अनंत ।
व्दिग दिगन्त फहरे ध्वजा, वेद पुराण मनन्त।।
श्री कैला स्त्रोत कूँ, लिखूं गणेश मनाय।
भाव सुमन अर्पण करूँ, करियो मात सहाय।।
त्रिकूट गिरि वामिनी ।
काली सिले निवासनी।।
स्वर्ण छत्र धारिणी ।
रजत सिंहासन आरूणी।।
सिन्दूर वर्णमयी सुन्दरम्।
कर्ण रत्न धारैं कुण्डलम्।।
किरीट सिर सोहत सुलोचनी।
समस्त विश्व विमोहिनी।।
अखिलेश्वरी अमरेश्वरी।
नमामि माँ कैलेश्वरी।।1।।
उन्नत ललाट दश भुजी।
रक्त वस्त्र में सती ।।
मुण्ड माल गल में पड़ी।
विशाल भृकुटि हैं अति बड़ी।।
सिंह भूरे पर चढ़ी।
भवन दोउ भगनी खड़ी।।
मणि माल करि करधनी।
चूड़ियाँ पहनी घनी ।।
कामेश्वरी कालेश्वरी ।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।2।।
अनेक शस्त्र धारिनी ।
वाहन अनेक वाहिनी ।।
फरशा त्रिशूल ताननी ।
तलवार खप्पर धारनी।।
धनुष शर सन्धायिनी ।
चक्र गदा संचालिनी ।।
शंख कमल लिये कर ।
ढ़ाल तोमर हस्त धर ।।
जगदीश्वरी ज्योतेश्वरी ।।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।3।।
अछेद अभेद अनादि है ।
अजर अमर तू आदि है।
अतुल चरण अखण्ड है ।
हरव्दीप नव खण्ड है।।
आर्या आनन्दी मां क्षमा।
ज्योती रही है दम दमा ।।
अजेय आद्या अनन्त ।
सर्वत्र व दिग दिगन्त ।।
देवेश्वरी देवीश्वरी ।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।4।।
कैला कल्याणी अम्बिका ।
पाताली छित्र मस्तिका ।
चण्डी चामुण्डा चण्डिका ।
चन्द्रघण्टा श्री कैला चर्चिका ।।
विकराली माँ रक्त दन्तिका ।
नगर कोटवारी कालिका ।।
महा लक्ष्मी दुर्गा निर्मला ।
सरस्वती चौसठ योगिनी कला ।।
दुर्गेश्वरी दैत्येश्वरी ।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।5।।
वैलौन धौलागढ़ वासिनी ।
वैष्णवी देवी विजासनी ।।
महागौरी माँ कात्यायनी ।
कुष्माण्डा देवी ब्रह्म चारिनी।।
हिम पुत्री सिध्द दात्री।
कंबाली काली रात्री
स्कन्द माता भ्रामरी ।
नैंना देवी शाकुम्भरी ।।
धर्मेश्वरी धरणीश्वरी ।
नमामि माँ वैलेश्वरी ।।6।।
घनघोर धन गर्जनी ।
चण्डमुण्ड खण्डनी ।।
रक्त बीज दण्डनी ।
कम्ब कालक मर्दनी ।।
निशुम्भ शम्भु नाशिनी ।
महिषा सुर विनाशिनी ।
मुद्रा महादानव घालिनी ।
शंखा सुर संहारनी ।।
नित्येश्वरी नामेश्वरी ।
नमामि माँ कैलेस्वरी ।।7।।
स्त्रोत जो भी नित पढ़ै।
पद पंकज से कड़ै।
भव भंवर से तरै।
मात ते जो दर्शन करै।
बलविद्या बुध्दि दायिनी।
सुख सम्पत्ति सुत प्रदायनी ।।
गव प्राप्त मंत्र अन्ताकरण।
गोविन्द शिशु शरण शरण ।।
पूर्णेश्वरी परमेश्वरी ।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।8।।
दोहा – श्री कैला स्त्रोत जो, पढ़ै सुनै मन लाय ।
गोविन्द शिशु सहज वह, भव सागर तर जाय ।।
जय कैला माँ प्रार्थना
मैया तू ही करेगी प्रतिपाल, ना मुझको और सहारा री।
मैया दीन हूँ दीन अनाथ, मैं होकर दुःखी पुकारा रा ।।
मैया सारे देवो का मिल तेज , यह बना शरीर तुम्हारा री ।
मैया अष्टभुजी तेरा रूप, वाहन है सिंह करारा री।
मैया चक्र गदा त्रिशुल , लिए बरछी और दुधारा री।
मैया बाण धनुष कर धार, तू गरजे दे हुंकारा री।।
मैया कोन सके ओट, लख थर्रावे जग सारा री।
मैया धार भयंकर रूप, झट महिषासुर को मारा री।
मैया चण्ड मुण्ड दिये मार, रक्तबीज महि डारा री।
मैया शुम्भ निशुम्भ विदार, दल असुरों का संहारा री।।
मैया पूत कुपातर होय, माता ना करे किनारा री।
मैया लो सुन करूण पुकार, है जग में तेरा पसारा री।।
मैया बीज भँवर मेरी नाव, ना दीखे कोई किनारा री ।
मैया जिसने शरण लई आय, तू उसका काज सुधारा री।।
मैया वीर रूप निज धार, ले कर मैं आज कटारा री ।
मैया देवो हमारे रिपु मार, हम करें तेरा जयकारा री।।
मैया कीने बड़े बड़े काज, यह काज मेरा क्या भारा री।
मैया दुश्मन रहे हैं सिर गाज, तू उनकी करदे छारा री।।
मैया तेरी दया की मझको चाह, मैं घिर आफत से हारा ऱी।
मैया कर – कोप कराल , दल दुश्मन करदे गारा री।।
मैया मुझको तो तेरा ही आधार, कर बेड़ा पार हमारा री।
मैया कर दो दया भरपूर दे लगा विजय का नारा री।।
मैया होकर निपट अधीर, यों करता अरज दोबारा री।
मैया फेरो दया की दृष्टि आप, हो रक्षा मिले उभारा री।।
मैया सारे विघ्न देओ टार, चमका दो मेरा सितारा री।
मैया दो धन यश बल मान, सेवक ने हाथ पसारा री।।
मेया आनन्द कर मेरे राज, सुत अपना समझ पियारा री।
मैया दिव्य दरश दो आज, हो झट मेरा विस्तारा री।।
मैया पूरी विधि से यह पाठ, करता भक्त तिहारा री।
मेया हो सुख विविध प्रकार, मिले संकट से छुटकारा री।
मैया द्वार पड़ाँ हूँ तेरे आय, है हम सब को तेरा सहारा री।।
मैया खुश होके देओ वरदान, आनन्द का बजे नगारा री ।।
बोल हिंगलाज वाली कैला मैया की जय ।।।।
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श्री गणेशाय नमः
दोहा—जय जय कैला मात हे, तुम्हें नवाऊ माथ ।
शरण पड़ो मेया को चरण जोडूं दोनो हाथ ।।
जय जय जय कैला महारानी ।
नमों नमों जगदम्ब भवानी।
सब जग की हो भाग्य विधाता।
आदि शक्ति तू सबकी माता।
दोनों बहिना सबसे न्यारी।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी।
शोभा सदन सकल गुणखानी।
वेद पुरानन मांहि बखानि।4।
जय हे मात करौली वाली।
शत प्रणाम काली सिल वाली।5।
ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी।
हिंगलाज में तू महतारी।6।
तू ही नरी सैमरी वाली ।
तू चामुण्डा तू कंकाली।7।
नगर कोट में तू ही विराजै।
विन्ध्याचल में तू ही राजै।8।
धौलागढ़ बेलौन की माता ।
वैष्णवी देवी जग में विख्याता।9।
नव दुर्गा तू मात भवानी।
चामुण्डा मन्शा कल्यानी ।10।
जय जय सूये चोले वाली।
जय काली कलकत्ते वाली।11।
तू ही लक्ष्मी तू ब्रह्मानी ।
पार्वती तू ही इन्द्रानी । 12।
सरस्वती तू विद्या की दाता।
तू ही है सन्तोषी माता।13।
अन्नपूर्णा तू जग पालक ।
माता पिता तुम ही तेरे हम बालक।14।
सीता राधा तू सावित्री।
तारा मातंगी गायत्री।15।
तू ही आदि सुन्दरी अम्बा।
माता चर्चिका हे जगदम्बा ।16।
एक हाथ में खप्पर राजै।
दूजे हाथ त्रिशूल विराजै ।17।
काली सिल पै दानव मारे ।
राजा नल के कारज सारे। 18।
शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी ।
महिषासुर को मारन वारी । 19।
रक्तबीज रण बीच पछारौ ।
शंखा सुर तैनें संहारौं।20।
ऊँचे नीचे पर्वत वारी ।
करती माता सिंह सबारी।21।
ध्वजा तेरी ऊपर फहरावैं।
तीन लोक में यश फैलावै ।22।
अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै।
चाँदी के चौतरा पै राजै।23।
लांगुर घँटुअन चलै भवन में।
माता राज तेरौ त्रिभुवन में ।24।
घनन घनन घन घण्टा बाजत।
ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत ।25।
अगनित दीप जलें मन्दिर में ।
ज्योति जले तेरी घर घर में ।26।
चौंसठ जोगिन आंगन नाचत।
बामन भैरों अस्तुति गावत।27।
देव दनुज गन्धर्व व किन्नर।
भूत पिशाच नाग नारी नर ।28।
सब मिल माता तोय मवाबैं।
रात दिना तेरे गुण गावें।29।
जो तेरा बोले जयकारा।
होय मात उसका निस्तारा।30।
मना मनौती आकर घर सै।
जात लगा जो तौकू परसै ।31।
ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावें।
गूंगर लौंग सो ज्योति जलावैं।32।
हलुआ पूरी भोग लगावै।
रोगी मेंहदी फूल चढ़ावें।33।
वह लांगुरिया गोद खिलावें।
धन बल विद्या बुध्दि पावें।34।
जो माँ कौ जागरण करावैं।
चाँदी को सिर छत्र धरावैं।35।
जीवन भर सारे सुख पावें।
यश गौरव दुनियाँ में छावैं।36।
जो भभूत मस्तक पर लगावैं।
भूत प्रेत न बाय सतावें।37।
जो कैला चालीसा पढ़ता।
नित्य नियम से इसे सुमरता ।38।
मन वांछित वह फल को पाता ।
दुख दारिद्र नष्ट हो जाता ।39।
गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी ।
रक्षा कर कैला महतारी ।40।
कैला रक्षा करों हमारी ।।
दोहा – संवत तत्व गुणा नभ भुज सुन्दर रविवार।
पौष सुदी दोज शुभ पूर्ण भयो यह कार ।।
श्री कैलाष्टक
दोहा – जय जय कैला मात है राजत राज अखण्ड।
तीन लोक नव खण्ड में जलती ज्योति प्रचंड ।।
जै जै कैला माता, भाग्य विधाता,
विश्व पालनी जग जननी।
गाते गरिमा , तेरी महिमा,
श्रुति पुरान वेदन बरनी।।
अति नयन विशाला रूप निराला,
उच्च भाल शोभा सदनी ।
बैठी दोऊ जननी, सब तम हरनी,
मंगलमय करनी ।।1।।
जय माता भवानी, जग कल्यानी
अम्बा काली सिल बाली ।
तू ही ब्रह्मानी, तू इन्द्रानी ,
नव दुर्गा तू पाताली ।
तू मात रमा है, तू ही उमा है,
चामुण्डा जग कैंकाली ।
तू ही है ज्वाला, अति विकराला,
मुण्डमाल माला काली ।।2।।
तू निर्विकार है, अपरम्पार है
पार किसी ने नहीं पाया ।
तू माँ अछेद है, व अभेब है,
अजर अमर अद्भुत माया ।
तू ही अनादि है, निर्विवाद है
यश सारी दुनियाँ छाया ।
तू माँ अनन्त है, आदि शक्ति है,
सब पर हे तेरा साया ।।3।।
जय अरिदल दलनी असुर विदारनी
शुंभ निशंभु को संहारौ ।
हिरनाकुश हनकर, नृसिंह बनकर
शिशु प्रहलाद तैने तारौ ।
मारौ भसमासुर, व शंखासुर,
रक्त बीज तोसों हारौ ।
तैने मारे सारे दाने, दुनियाँ जाने,
नल को सब कारज सारौ ।।4।।
जय सिंह वाहिनी, खड़ग धारिनी,
कर खप्पर माता काली ।
तू विद्या दाता, बुध्दि प्रदाता,
धनबल यशबल यश देने वाली ।
तू देव लोक में, मृत्यु लोक में,
है पाताल मैं पाताली ।
जले ज्योति घर घर ग्राम व नगर
वचन न जाये कभी खाली ।।5।।
मां तेरो मन्दिर , अति ही सुन्दर,
ऊँचे पर्वत पर राजत ।
तब ध्वजा फहराये, यशकू गावे,
अष्ट प्रहर नोबत बाजत।
नाचें है जोगना तेरे आँगन,
बीच भवन लांगुरिया भाजत ।
लख भवन मनोहर, मोहे सुरनर
तीन लोक तौसौ लाजत ।।6।।
वहु यात्री आते, लांगुर गाते,
आकर तेरे दरश करे ।
नारियल चढ़ावै ध्वजा फहरावे,
हलुआ पूरी भोग धरे।
हरी चूड़ी पहनावै, चूंदरी उड़ावे
गूगर लोंग की ज्योति जरै।
सिर छत्र धरावे, दीप जलावे
वह भव सागर मात तरें।।7।।
जो आकर घर से माँ कूं परसै,
कैलाजी की जात करें ।
जागरन करावे, मनौती मनावै
वाके दुःख सब मात हरै।।
जो पढ़े यह अष्टक नियम पूर्वक,
पाठ नित्य ही प्रात करें।
गोविन्द शिशु गावै, शीश झुकाबें,
कैला मां सिर हाथ धरें।।
दोहा – कैला माँ अब दरशन दो, शरण पड़ौ हूँ आन।
अष्ट सिध्दि नव निध्दि दे, कर शिशु को कल्याणं।।
।। श्री कैला स्त्रोत ।।
दोहा – आदि अनादि अजर अमर, अजया अतुल अनंत ।
व्दिग दिगन्त फहरे ध्वजा, वेद पुराण मनन्त।।
श्री कैला स्त्रोत कूँ, लिखूं गणेश मनाय।
भाव सुमन अर्पण करूँ, करियो मात सहाय।।
त्रिकूट गिरि वामिनी ।
काली सिले निवासनी।।
स्वर्ण छत्र धारिणी ।
रजत सिंहासन आरूणी।।
सिन्दूर वर्णमयी सुन्दरम्।
कर्ण रत्न धारैं कुण्डलम्।।
किरीट सिर सोहत सुलोचनी।
समस्त विश्व विमोहिनी।।
अखिलेश्वरी अमरेश्वरी।
नमामि माँ कैलेश्वरी।।1।।
उन्नत ललाट दश भुजी।
रक्त वस्त्र में सती ।।
मुण्ड माल गल में पड़ी।
विशाल भृकुटि हैं अति बड़ी।।
सिंह भूरे पर चढ़ी।
भवन दोउ भगनी खड़ी।।
मणि माल करि करधनी।
चूड़ियाँ पहनी घनी ।।
कामेश्वरी कालेश्वरी ।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।2।।
अनेक शस्त्र धारिनी ।
वाहन अनेक वाहिनी ।।
फरशा त्रिशूल ताननी ।
तलवार खप्पर धारनी।।
धनुष शर सन्धायिनी ।
चक्र गदा संचालिनी ।।
शंख कमल लिये कर ।
ढ़ाल तोमर हस्त धर ।।
जगदीश्वरी ज्योतेश्वरी ।।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।3।।
अछेद अभेद अनादि है ।
अजर अमर तू आदि है।
अतुल चरण अखण्ड है ।
हरव्दीप नव खण्ड है।।
आर्या आनन्दी मां क्षमा।
ज्योती रही है दम दमा ।।
अजेय आद्या अनन्त ।
सर्वत्र व दिग दिगन्त ।।
देवेश्वरी देवीश्वरी ।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।4।।
कैला कल्याणी अम्बिका ।
पाताली छित्र मस्तिका ।
चण्डी चामुण्डा चण्डिका ।
चन्द्रघण्टा श्री कैला चर्चिका ।।
विकराली माँ रक्त दन्तिका ।
नगर कोटवारी कालिका ।।
महा लक्ष्मी दुर्गा निर्मला ।
सरस्वती चौसठ योगिनी कला ।।
दुर्गेश्वरी दैत्येश्वरी ।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।5।।
वैलौन धौलागढ़ वासिनी ।
वैष्णवी देवी विजासनी ।।
महागौरी माँ कात्यायनी ।
कुष्माण्डा देवी ब्रह्म चारिनी।।
हिम पुत्री सिध्द दात्री।
कंबाली काली रात्री
स्कन्द माता भ्रामरी ।
नैंना देवी शाकुम्भरी ।।
धर्मेश्वरी धरणीश्वरी ।
नमामि माँ वैलेश्वरी ।।6।।
घनघोर धन गर्जनी ।
चण्डमुण्ड खण्डनी ।।
रक्त बीज दण्डनी ।
कम्ब कालक मर्दनी ।।
निशुम्भ शम्भु नाशिनी ।
महिषा सुर विनाशिनी ।
मुद्रा महादानव घालिनी ।
शंखा सुर संहारनी ।।
नित्येश्वरी नामेश्वरी ।
नमामि माँ कैलेस्वरी ।।7।।
स्त्रोत जो भी नित पढ़ै।
पद पंकज से कड़ै।
भव भंवर से तरै।
मात ते जो दर्शन करै।
बलविद्या बुध्दि दायिनी।
सुख सम्पत्ति सुत प्रदायनी ।।
गव प्राप्त मंत्र अन्ताकरण।
गोविन्द शिशु शरण शरण ।।
पूर्णेश्वरी परमेश्वरी ।
नमामि माँ कैलेश्वरी ।।8।।
दोहा – श्री कैला स्त्रोत जो, पढ़ै सुनै मन लाय ।
गोविन्द शिशु सहज वह, भव सागर तर जाय ।।
जय कैला माँ प्रार्थना
मैया तू ही करेगी प्रतिपाल, ना मुझको और सहारा री।
मैया दीन हूँ दीन अनाथ, मैं होकर दुःखी पुकारा रा ।।
मैया सारे देवो का मिल तेज , यह बना शरीर तुम्हारा री ।
मैया अष्टभुजी तेरा रूप, वाहन है सिंह करारा री।
मैया चक्र गदा त्रिशुल , लिए बरछी और दुधारा री।
मैया बाण धनुष कर धार, तू गरजे दे हुंकारा री।।
मैया कोन सके ओट, लख थर्रावे जग सारा री।
मैया धार भयंकर रूप, झट महिषासुर को मारा री।
मैया चण्ड मुण्ड दिये मार, रक्तबीज महि डारा री।
मैया शुम्भ निशुम्भ विदार, दल असुरों का संहारा री।।
मैया पूत कुपातर होय, माता ना करे किनारा री।
मैया लो सुन करूण पुकार, है जग में तेरा पसारा री।।
मैया बीज भँवर मेरी नाव, ना दीखे कोई किनारा री ।
मैया जिसने शरण लई आय, तू उसका काज सुधारा री।।
मैया वीर रूप निज धार, ले कर मैं आज कटारा री ।
मैया देवो हमारे रिपु मार, हम करें तेरा जयकारा री।।
मैया कीने बड़े बड़े काज, यह काज मेरा क्या भारा री।
मैया दुश्मन रहे हैं सिर गाज, तू उनकी करदे छारा री।।
मैया तेरी दया की मझको चाह, मैं घिर आफत से हारा ऱी।
मैया कर – कोप कराल , दल दुश्मन करदे गारा री।।
मैया मुझको तो तेरा ही आधार, कर बेड़ा पार हमारा री।
मैया कर दो दया भरपूर दे लगा विजय का नारा री।।
मैया होकर निपट अधीर, यों करता अरज दोबारा री।
मैया फेरो दया की दृष्टि आप, हो रक्षा मिले उभारा री।।
मैया सारे विघ्न देओ टार, चमका दो मेरा सितारा री।
मैया दो धन यश बल मान, सेवक ने हाथ पसारा री।।
मेया आनन्द कर मेरे राज, सुत अपना समझ पियारा री।
मैया दिव्य दरश दो आज, हो झट मेरा विस्तारा री।।
मैया पूरी विधि से यह पाठ, करता भक्त तिहारा री।
मेया हो सुख विविध प्रकार, मिले संकट से छुटकारा री।
मैया द्वार पड़ाँ हूँ तेरे आय, है हम सब को तेरा सहारा री।।
मैया खुश होके देओ वरदान, आनन्द का बजे नगारा री ।।
बोल हिंगलाज वाली कैला मैया की जय ।।।।
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