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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पहाडियों की एकरूप नई परिभाषा को स्वीकार किए जाने के बाद उठे चौतरफा विरोध के बीच केंद्र सरकार ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद को खनन प्रतिबंधों के दायरे में आने वाले क्षेत्रों की पहचान करने और संबंधित राज्यों को किसी भी नए खनन पट्टे की अनुमति न देने के निर्देश दिए है। ये निर्द्रेश 20 नवंबर के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालना में ही जारी किए गए हैं, लेकिन इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अब सियासी डैमेज कंट्रोल के अंतर्गत सार्वजनिक असंतोष को देखते हुए मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की जा रही है। आइसीएफआरई को उन सभी क्षेत्रों की पहचान करने को कहा गया है, जहां पहले से खनन पर प्रतिबंध है या जहां नए प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें संरक्षण दिया जा सके।
यह कदम विरोध प्रदर्शन को शांत करने का प्रयास ही माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार के रूख में कोई ठोस बदलाव दिखाई नहीं देता। यह अपेक्षा की जा सकती थी कि राज्य सरकारों द्वारा नए राजस्व अवसर तलााने के नाम पर अरावली की परिभाषा में किए गए बदलावों का केंद्र सरकार कड़ा विरोध करती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैसे भी आंकड़े अक्सर कागजों पर ही अच्छे लगते है। इसकी आड़ में जमीन पर कितना अवैध खनन बढ़ेगा, इसका कोई भरोसेमंद आकलन कभी सामने नहीं आ पाएगा। खनन क्षेत्र एक सुव्यवस्थित और निगरानी योग्य ब्लॉक के रूप में नहीं, बल्कि तीन राज्यों के अलग-अलग जिलों में पहाड़ी ढलानों और घाटियों में बिखरा हुआ होगा। इसका सीधा लाभ हमेशा की तरह ताकतवान खनन लॉबी को ही मिलेगा।
पूरे विवाद को केवल वैध और अवैध खनन की बहस तक सीमित कर देना भी काफी नहीं। अरावली की 100 मीटर वाली नई परिभाषा को मान लेने के बाद भले ही एमपीएसएम में खनन का दायरा का दायरा सीमित कर दिया जाए, लेकिन क्या इससे इस प्राचीन पर्वतमाला को निर्माण गतिविधियों से कोई खतरा नहीं रहेगा ।
यह कदम विरोध प्रदर्शन को शांत करने का प्रयास ही माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार के रूख में कोई ठोस बदलाव दिखाई नहीं देता। यह अपेक्षा की जा सकती थी कि राज्य सरकारों द्वारा नए राजस्व अवसर तलााने के नाम पर अरावली की परिभाषा में किए गए बदलावों का केंद्र सरकार कड़ा विरोध करती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैसे भी आंकड़े अक्सर कागजों पर ही अच्छे लगते है। इसकी आड़ में जमीन पर कितना अवैध खनन बढ़ेगा, इसका कोई भरोसेमंद आकलन कभी सामने नहीं आ पाएगा। खनन क्षेत्र एक सुव्यवस्थित और निगरानी योग्य ब्लॉक के रूप में नहीं, बल्कि तीन राज्यों के अलग-अलग जिलों में पहाड़ी ढलानों और घाटियों में बिखरा हुआ होगा। इसका सीधा लाभ हमेशा की तरह ताकतवान खनन लॉबी को ही मिलेगा।
पूरे विवाद को केवल वैध और अवैध खनन की बहस तक सीमित कर देना भी काफी नहीं। अरावली की 100 मीटर वाली नई परिभाषा को मान लेने के बाद भले ही एमपीएसएम में खनन का दायरा का दायरा सीमित कर दिया जाए, लेकिन क्या इससे इस प्राचीन पर्वतमाला को निर्माण गतिविधियों से कोई खतरा नहीं रहेगा ।
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