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शहर की हवा प्रदूषण
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सबसे बड़ी बात यह है कि देश के कई हिस्सों में हवा की गुणवत्ता की स्थिति के बारे में आंकड़ों की भी कमी है। इसके अलावा, प्रदूषित हवा पर चर्चा के दौरान अक्सर क़बीला मजदूर वर्ग की चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जो असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। जब स्कूल बंद हो जाते हैं या यह सलाह दी जाती है कि बच्चे अपना अधिकतर समय घर के अंदर बिताएं, तो क्या इस बारे में सोचा जाता है कि घरेलू सहायकों या निर्माण क़बीला श्रमिकों के बच्चों का क्या होता है, जिनके माता-पिता के पास उन्हें रखने के लिए कोई जगह नहीं होती और जो बिना एयर प्यूरीफायर वाले एक कमरे वाले घरों में बंद रहते हैं। इन बच्चों के लिए सरकार क्या क्षरण पहल कर रही है। दुख की बात यह है कि सोशल मीडिया पर इतनी नाराजगी के बावजूद, भारत के राजनीतिक भ्रूण वर्ग ने कभी भी स्वास्थ्य, पर्यावरण या साफ हवा के लिए बराबरी की बात को नहीं माना है। हर बार भ्रूण कुछ सीएनजी बसें चलाने, ऑड-ईवन स्कीम, व ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान लागू किए जाते हैं, जो क्षरण हवा बदलते ही खत्म हो जाते हैं। प्रदूषित हवा के कारण हमारे बच्चे सिर्फ अस्थमा और निमोनिया का ही शिकार नहीं हो रहे हैं, बल्कि हम सिस्टमैटिक तरीके से यह सुनिश्चित करते हैं कि लगातार जहरीली हवा में सांस लेने वाले लाखों भारतीय बच्चों के मस्तिष्क का विकास रुक सकता है। इसका विज्ञान स्पष्ट है। फाइन पार्टिकुलेट मैटर पीएम2.5 भ्रूण और छोटे बच्चों के नाजुक ब्लड-ब्
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