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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ आपकी सफलता हमारा ध्‍येय ✤|•༻

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जहां तक किसी राज्‍य के महाप्रशासक का सम्‍बन्‍ध है, उच्‍च न्‍यायालय तत्‍समय प्रवृत्‍त किसी विधि के अधीन प्रोबेट या प्रशासनपत्र के अनुदान के प्रयोजन के लिए समक्ष अधिकारिता वाला न्‍यायालय समझा जाएगा चाहे वह सम्‍पदा जिसका प्रशासन किया जाना है, राज्‍य में कहीं भी स्थित हो महाप्रशासक इस धारा के अधीन कार्यवाही नहीं करेगा जब तक कि उसका समाधान नहीं हो जाता है यदि उसके द्वारा ऐसी कार्यवाही नहीं की जाती तो ऐसी आस्तियों के दुर्विनियोजन, क्षय या अपव्‍यय की आशंका है या जब तक उसका समाधान नहीं हो जाता कि आस्तियों के संरक्षण के लिए ऐसी कार्यवाही अन्‍यथा आवश्‍यक है। यदि धारा 9 या धारा 10 के उपबन्‍धों के अधीन प्रशासनपत्र प्राप्‍त करने की कार्यवाही के अनुक्रम में और ऐसी अवधि के भीतर जैसी उच्‍च न्‍यायालय को युक्तियुक्‍त प्रतीत हो कोई व्‍यक्ति हाजिर नहीं होता है और किसी भी परिस्थिति में वसीयत के प्रोबेट के लिए या मृतक के निकट सम्‍बन्‍धी के रूप में प्रशासनपत्रों के अनुदान के लिए अपना दावा स्‍थापित नहीं करता है या उच्‍च न्‍यायालय का समाधान नहीं करता है कि ऐसे मामले में जिसमें भारतीय उत्‍तराधिकार अधिनियम, 1925 के उपबन्‍धों के अधीन ऐसे प्रोबेट या प्रशासनपत्र प्राप्‍त करना बाध्‍यकर नहीं है, उसने सम्‍पदा के संरक्षण के लिए सम्‍यक् तत्‍परता से अन्‍य कार्यवाहियां की हैं। यदि महाप्रशासक को इस अधिनियम के उपबन्‍धों के अनुसार अनुदत्‍त किए गए प्रशासनपत्र प्रतिसंहृत कर दिए जाते हैं। जहां अंत:कालीन लाभ की रकम या अभिनिश्चिय डिक्री के निष्‍पादन के दौरान के लिए छोड़ दिया जाता है वहां, यदि इस प्रकार अभिनिश्चित लाभ दावाकृत लाभों से अधिक है तो डिक्री का आगे निष्‍पादन तब तक के लिए रोक दिया जाएगा जब कि वह अन्‍तर संदत्‍त नहीं कर दिया जाए तो वस्‍तुत: संदत्‍त फीस और उस फीस में है जो ऐसे अभिनिश्चित संपूर्ण लाभ या समावेश वाद में होने पर संदेय होती है।

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