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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Saturday November 15, 10:25 by rajni shrivatri


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जिंदगी की भागदौड़ के बीच बच्‍चों की भावनाओं की अनदेखी करना माता-पिता अभिभावकों के लिए कितना भारी पड़ सकता है इसका अंदाजा बच्‍चों के खेलने-कूदने की उम्र में मौत को गले लगाने की पिछले दिनों हुई घटनाओं से लगाया जा सकता है। कहीं बेहतरीन कॅरियर तो कहीं बच्‍चों से बेस्‍ट परफाफमेंस की उम्‍मीद तो कारण है ही, चिंता की बात यह हैं कि बालमन में उठन वाली भावनाओं के गुबार को समझने की कोशिश तो घर में होती है और ही शिक्षण संस्‍थाओं में। जब कभी ऐसे प्रयास होते भी है तो काफी देर हो चुकी होती है। देशभर में बालकों के साथ होने वाला यह बर्ताव एक जैसी तस्‍वीर पेश करता है। ठीक वेसी ही घुटना तो राजस्‍थान में पत्रिका की पहल पर बच्‍चों ने भगवान के नाम लिखी अपनी चिट्ठियों में महसूस की। बच्‍चों के दर्द भरे खतों में लिखी इबारत महज उनके सवाल ही नहीं, बल्कि एकाकी महसूस करने के दौरान उनके मन के भाव भी है। कहीं बच्‍चों के साथ गलत हो रहा हैं, कहीं उन्‍हें जबरन कोचिंग में पढ़ाई के लिए भेजा जा रहा है तो कहीं वे खुद को लगी फोन की लत से छुटकारा पाने की गुहार करते दिखते है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरों के आंकड़े बालमन से हो रहे ऐसे ही बर्ताव की भयावह तस्‍वीर पेश कर रहे है। आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले दस वर्ष में छात्र छात्रओं की खुदकुशी के मामले 65 फीसदी बढ़े है। पदाई का दबाव परीक्षा का भय, बुलिंग पारिवारिक अपेक्षाएं, और सोशल मीडिया की लत जैसे तमाम कारण ऐसे है, जो बच्‍चों को घुटन की स्थिति में इसीलिए पहुंचा रहे है क्‍योंकि हर स्‍तर पर उनकी अनेदखी होती दिख रही है।  

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