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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Thursday November 13, 05:42 by rajni shrivatri
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एक संत बहुत बीमार पड़ गए। अपना अंत समय निकट जान उन्हें अपने तीन प्रिय शिष्यों के भविष्य की चिंता होने लगी। वे सोचने लगे, इन्हें ज्ञान के मार्ग पर ले जाने वाले योग्य गुरू की आवश्यकता है। मगर वह कहां और कैसे मिलेगा? संत बहुत से योग्य विद्वानों को जानते थे, परंतु वे चाहते थे कि शिष्य स्वयं अपने लिए गुरू का चयन करें। इसके लिए उन्होंने एक उपाय सोचा और अपने तीनों शिष्यों को बुलाकर कहा, हमारे आश्रम में 17 ऊंट है। मैं इनका बंटवारा करना चाहता हूं। तुम तीनों इन ऊंटों को इस तरह बांट लो कि सबसे बड़े को इनमें से आधा, मंझले को एक तिहाई और सबसे छोटे को नवां हिस्सा मिले।
तीन शिष्य गुरू के इस विचित्र बंटवारे से असमंजस में पड़ गए। तीनों ने बहुत दिमाग खपाया, मगर कोई हल नहीं निकला तो वे अपने-अपने अनुमान लगाने लगे। एक ने कहा, गुरूजी नहीं चाहते होंगे कि बंटवारा हो। इसीलिए हम तीनों मिलकर ही उनके मालिक बने रहते है। बंटवारा करने की आवश्यकता ही नहीं। दूसरे ने कहा, गुरू ने जो बंटवारा किया है उसके निकटतम जो संभावित ऊंटों की संख्या होगी वही कर लेते है। क्या फर्क पड़ेगा। एक कम या एक ज्यादा। परंतु बात तीनों के गले नहीं उतरी और उनकी समस्या जस की तरस रही। धीरे-धीरे इस समस्या की चर्चा आश्रम से बाहर फैली। एक विद्वान ने यह समस्या सुनी और तीनों शिष्यों को बुलाया। संत ने कहा तुम मेरा एक ऊंट ले लो। इस तरह तुम्हारे पास 18 ऊंट हो जाएंगे। अब तुम्हारे गुरू के अनुसार सबसे बड़ा इनमें से आधा यानी नौ ऊंट ले ले। मंझला एक तिहाई अर्थात छह ऊंट और सबसे छोटा नवां हिस्सा यानी दो ऊंट ले ले। अब बचा एक ऊंट जो कि मेरा है, मैं उसे वापस ले लेता हूं। कहो, हो गया न तुम्हारेे गुरू के अनुसार खरा बंटवारा।
शिष्य अब प्रसन्न थे। इस बंटवारे के माध्यम से शिष्यों को उनका नया गुरू मिल गया था। क्योंकि गुरू शिष्यों की समस्या में स्वंय भी शामिल जो हो गया था। अब संत चिंतामुक्त थे।
तीन शिष्य गुरू के इस विचित्र बंटवारे से असमंजस में पड़ गए। तीनों ने बहुत दिमाग खपाया, मगर कोई हल नहीं निकला तो वे अपने-अपने अनुमान लगाने लगे। एक ने कहा, गुरूजी नहीं चाहते होंगे कि बंटवारा हो। इसीलिए हम तीनों मिलकर ही उनके मालिक बने रहते है। बंटवारा करने की आवश्यकता ही नहीं। दूसरे ने कहा, गुरू ने जो बंटवारा किया है उसके निकटतम जो संभावित ऊंटों की संख्या होगी वही कर लेते है। क्या फर्क पड़ेगा। एक कम या एक ज्यादा। परंतु बात तीनों के गले नहीं उतरी और उनकी समस्या जस की तरस रही। धीरे-धीरे इस समस्या की चर्चा आश्रम से बाहर फैली। एक विद्वान ने यह समस्या सुनी और तीनों शिष्यों को बुलाया। संत ने कहा तुम मेरा एक ऊंट ले लो। इस तरह तुम्हारे पास 18 ऊंट हो जाएंगे। अब तुम्हारे गुरू के अनुसार सबसे बड़ा इनमें से आधा यानी नौ ऊंट ले ले। मंझला एक तिहाई अर्थात छह ऊंट और सबसे छोटा नवां हिस्सा यानी दो ऊंट ले ले। अब बचा एक ऊंट जो कि मेरा है, मैं उसे वापस ले लेता हूं। कहो, हो गया न तुम्हारेे गुरू के अनुसार खरा बंटवारा।
शिष्य अब प्रसन्न थे। इस बंटवारे के माध्यम से शिष्यों को उनका नया गुरू मिल गया था। क्योंकि गुरू शिष्यों की समस्या में स्वंय भी शामिल जो हो गया था। अब संत चिंतामुक्त थे।
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