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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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मद्रास हाईकोर्ट और केरल हाईकोर्ट ने विवाह नामक संस्‍था में महिलाओं के अधिकारों को अगले चरण में ले जाने वाले अहम फैसले दिए है। मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि पत्नियों को आराम, सुरक्षा और सम्‍मान देना वैवाहिक बंधन का अहम दायित्‍व है। यह टिप्‍पणी नारी समानता और सम्‍मान के हक को नया आयाम देने वाली है। एक तरह से वैवाहिक संबंधों में पुरूषप्रधान की छाया से निकलने की अदालत की नसीहत ने साफ किया हैं कि पुरूषों के लिए पत्‍नी को सिर्फ रिश्‍ता निभाने वाली समझने की मानसिकता से मुक्‍त होना होगा। अन्‍य फैसले में केरल हाईकोर्ट ने कहा कि दूसरा विवाह पंजीकृत कराने वाले मुस्लिम पुरूष को भी कानूनी हक होने के बावजूद पहली पत्‍नी का पक्ष सुनना होगा। महिला की गरिमा को न्‍यायिक सुरक्षा प्रदान करने की दिशा में यह भी अहम फैसला है।  
अदालतों के इन अलग-अलग फैसलों को इस संकेत के रूप में भी समझना होगा कि विवाह जैसी संस्‍था सिर्फ सामाजिक बंधन ही नहीं, बल्कि समानता और परस्‍पर सम्‍मान की साझेदानी है। इसीलिए मद्रास हाईकोर्ट ने पत्‍नी का आराम, सुरक्षा और सम्‍मान पति का वैवाहिक दायित्‍व मानने की गहरी बात कही है। यह गहरी इसलिए भी है क्‍योंकि हमारे समाज में आज भी बहुत से घरों में विवाह का अर्थ जिम्‍मेदारी से ज्‍यादा अधिकार माना जाता है। अदालत का यह कहना कि विवाह में समानता और सम्‍मान ही टिकाऊ रिश्‍ते की बुनियाद है, समाज के सोचने के तरीके में बदलाव की उम्‍मीद जगाता है। दूसरे विवाह के इच्‍छुक मुस्लिम पति को पहली पत्‍नी का पक्ष सुनने के निर्देश भी सोच में ऐसे ही बदलाव की राह खोलने वाला है। यह बात जानते हैं कि विशेष कानूनों के नाम पर कई मामलों में महिलाओं के वैवाहिक अधिकारों को सीमित किया गया है। अब देश की अदालते यह कह रही है कि हर धर्म, हर परंपरा से ऊपर महिला की गरिमा है तो यह साफ है कि महिलाओं को समाज में समानता का अधिकार मिलना चाहिए। इन न्‍यायिक निर्णयों से यह उम्‍मीद जगी है कि समाज की मानसिकता में बदलाव की लहर और तेज होगी। अब परिवारों और समाज को भी यह समझना हागा कि समानता किसी उपहार की तरह नहीं, बल्कि प्रत्‍येक स्‍त्री का मौलिक अधिकार है।  
 
 
 
 
  

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