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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Thursday October 30, 09:20 by Jyotishrivatri
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				एक शिष्य अपने माता-पिता और परिवार से झगड़कर आश्रम में रहने आ गया। आश्रम में रहते हुए भी वह कभी प्रसन्न नहीं दिखाई देता। एक दिन महात्मा जी ने उससे पूछा बेटा तुम अपने माता-पिता से झगड़कर इसलिए आए थे कि यहां शांति  से रह सको। पर तुम यहां भी प्रसन्न नहीं हो। शिष्य ने विनम्र होकर उत्तर दिया- गुरूदेव यह कारण मैं स्वयं भी नहीं जानता।  
महात्मा जी मुस्कराए और बोले मैं तुम्हे कारण बताता हूं, पर पहले तुम मेरा एक काम करो। सुबह बगीचे में घूमकर जितने भी चमेली के फूल खिले हुए मिलें, उन्हें तोड़ लाओ। और जो फूल पहले से ही जमीन पर गिरे हों, उन्हें भी साथ ले आना, पर ध्यान रहे दोनों को अलग रखना। अगली सुबह शिष्य ने वैसा ही किया। उसने दो अलग-अलग झोलियों में फूल लाकर महात्मा जी के सामने रख दिए। महात्मा ने कहा- अब इन दोनों फूलों को सूंघों। शिष्य ने पहले झोली से ताजे तोड़े फूलों को सूंघा और बोला गुरूदेव इनमें तो अत्यंत मधुर सुगंध है। फिर उसने दूसरी झोली से गिरे फूलों को सूंघा और गंभीर स्वर में बोला। इनमें तो कोई सुगंध ही नहीं बची।
महात्मा जी शांत स्वर में बोले यही बात है बेटा जो फूल अपनी शाखा से टूट जाता हैं, उसकी सुगंध भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। उसी प्रकार जो व्यक्ति अपने माता-पिता और परिवार की जड़ों से अलग हो जाता है, वह भी भीतर से सूना और निर्जीव हो जाता है।
सुख-शांति उसे कभी नहीं मिलती। इतना सुनते ही शिष्य की आंखे नम हो गई। उसने गहरी दृष्टि से अपने घर की दिशा में देखा और सोचने लगा अब वह अपने परिवार से जुड़कर ही जीवन बिताएगा।
			
			
	        महात्मा जी मुस्कराए और बोले मैं तुम्हे कारण बताता हूं, पर पहले तुम मेरा एक काम करो। सुबह बगीचे में घूमकर जितने भी चमेली के फूल खिले हुए मिलें, उन्हें तोड़ लाओ। और जो फूल पहले से ही जमीन पर गिरे हों, उन्हें भी साथ ले आना, पर ध्यान रहे दोनों को अलग रखना। अगली सुबह शिष्य ने वैसा ही किया। उसने दो अलग-अलग झोलियों में फूल लाकर महात्मा जी के सामने रख दिए। महात्मा ने कहा- अब इन दोनों फूलों को सूंघों। शिष्य ने पहले झोली से ताजे तोड़े फूलों को सूंघा और बोला गुरूदेव इनमें तो अत्यंत मधुर सुगंध है। फिर उसने दूसरी झोली से गिरे फूलों को सूंघा और गंभीर स्वर में बोला। इनमें तो कोई सुगंध ही नहीं बची।
महात्मा जी शांत स्वर में बोले यही बात है बेटा जो फूल अपनी शाखा से टूट जाता हैं, उसकी सुगंध भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाती है। उसी प्रकार जो व्यक्ति अपने माता-पिता और परिवार की जड़ों से अलग हो जाता है, वह भी भीतर से सूना और निर्जीव हो जाता है।
सुख-शांति उसे कभी नहीं मिलती। इतना सुनते ही शिष्य की आंखे नम हो गई। उसने गहरी दृष्टि से अपने घर की दिशा में देखा और सोचने लगा अब वह अपने परिवार से जुड़कर ही जीवन बिताएगा।
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