Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Oct 15th, 06:25 by lovelesh shrivatri
4
264 words
            156 completed
        
	
	0
	
	Rating visible after 3 or more votes	
	
		
		
			
				
					
				
					
					
						
                        					
				
			
			
				
			
			
	
		
		
		
		
		
	
	
		
		
		
		
		
	
            
            
            
            
			 saving score / loading statistics ...
 saving score / loading statistics ...
			
				
	
    00:00
				एक बार एक ऋषि अपने एक शिष्य के साथ रास्ते से गुजर रहे थे। अचानक चलते हुए ऋषि को एक पत्थर से ठोकर लगी और वे वहीं गिर गए। उन्हें संभालने के लिए उनके साथ चल रहा शिष्य दौड़ पड़ा। लेकिन गुरू ने उसे हाथ के इशारे से रोक दिया और कहा मुझे खुद ही खड़ा होने दो और वह कुछ देर में खड़े हो गए।  
उस शिष्य को उस पत्थर पर बहुत गुस्सा आ रहा था। और वह बोला, यह पत्थर न जाने कहां से गुरूजी के मार्ग में आ गया और वो गिर गए। उसने उस पत्थर को उठाकर फेंकने का प्रयास किया। इतने में गुरू अपने उस शिष्य से बोले, रूको पुत्र ऐसे कितने पत्थरों को उठाकर फेकोगे यह तो तुम्हें कदम-कदम पर मिलेगे। दोष सिर्फ पत्थर का नहीं था, मेरी नजर का भी था जो इसे देख नहीं पाई तो क्या आंख निकालकर फेंक दूं। नहीं न। हमें अपने मार्ग पर ध्यान देना चाहिए ताकि हम अपनी मंजिल पर समय पर पहुंच सकें। पुत्र ऐसे ही हमें हमारे जीवन में अनेक व्यक्ति ऐसे मिलेगे जो हमारे जीवन रास्ते में अनेक बाधांए उत्पन करेंगे लेकिन हमें उन पर ध्यान न देकर उन्हें ऐसे ही इस पत्थर की भांति छोड़ते हुए आगे अपनी मंजिल की और बढ़ जाना है ताकि हम अपनी मंजिल को समय पर प्राप्त कर सकें। अगर इन्हीं में उलझ जाओंगे तो कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाओगे। इतना कहकर ऋषि मुस्कुराते हुए पथ पर आगे बढ़ गए। पत्थर वाली बात से अपने गुरू से जीवन की मिली इनती बड़ी शिक्षा पाकर उनका शिष्य धन्य हो गया।
			
			
	        उस शिष्य को उस पत्थर पर बहुत गुस्सा आ रहा था। और वह बोला, यह पत्थर न जाने कहां से गुरूजी के मार्ग में आ गया और वो गिर गए। उसने उस पत्थर को उठाकर फेंकने का प्रयास किया। इतने में गुरू अपने उस शिष्य से बोले, रूको पुत्र ऐसे कितने पत्थरों को उठाकर फेकोगे यह तो तुम्हें कदम-कदम पर मिलेगे। दोष सिर्फ पत्थर का नहीं था, मेरी नजर का भी था जो इसे देख नहीं पाई तो क्या आंख निकालकर फेंक दूं। नहीं न। हमें अपने मार्ग पर ध्यान देना चाहिए ताकि हम अपनी मंजिल पर समय पर पहुंच सकें। पुत्र ऐसे ही हमें हमारे जीवन में अनेक व्यक्ति ऐसे मिलेगे जो हमारे जीवन रास्ते में अनेक बाधांए उत्पन करेंगे लेकिन हमें उन पर ध्यान न देकर उन्हें ऐसे ही इस पत्थर की भांति छोड़ते हुए आगे अपनी मंजिल की और बढ़ जाना है ताकि हम अपनी मंजिल को समय पर प्राप्त कर सकें। अगर इन्हीं में उलझ जाओंगे तो कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाओगे। इतना कहकर ऋषि मुस्कुराते हुए पथ पर आगे बढ़ गए। पत्थर वाली बात से अपने गुरू से जीवन की मिली इनती बड़ी शिक्षा पाकर उनका शिष्य धन्य हो गया।
 saving score / loading statistics ...
 saving score / loading statistics ...