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शिवपुरी राजीव रामधारी सिंह दिनकर प्रतिलेखन संख्या - 14
created Today, 05:39 by Rajeev Lodhi
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महोदय, देश में जो उद्योग धंधा चल रहा है या देश की उन्नति करने का देश में समृद्धि लाने का जो वैज्ञानिक या प्रोद्योगिकीय आविष्कार हो रहा है उसमें भी उसका पूरा-पूरा उपयोग हो। यदि ऐसा हो तभी मैं समझता हूँ कि हमारी पेटेन्ट प्रणाली सफल सिद्ध हो सकती है। यह प्रश्न उठ सकता है कि किस सीमा तक व्यक्ति के अधिकार की रक्षा की जाए और किसी सीमा तक उसके अधिकार का हनन किया जाए ताकि समाज का अधिक से अधिक लाभ हो समाज उसका अधिक से अधिक उपयोग कर सके। एक दृष्टिकोण जो इसके पीछे है। हमें इस बात का अभिमान है कि हम 101 करोड़ है। हमारी कई जातियॉं कई धर्म कई भाषाऍं और कई प्रकार के रीति-रिवाज हैं इस विविधता से हमें लाभ उठाना चाहिए, किन्तु आज भेदभाव का भूत हमारे सिर पर चढ़ रहा है। भारत को स्वतंत्रता मिली है, इसका अर्थ यह होना चाहिए कि गरीबों की सेवा के लिए आज तक हमें जो सुविधाऍं उपलब्ध नहीं थींं, वे मिली हैं। जिस प्रकार भरत ने अयोध्या के राज्य को राम का समझकर सेवक-वृत्ति से राज्य का काम संभाला था उसी प्रकार हमें समझना चाहिए कि राज्य गरीब जनता का है। और उसके नाम पर उसके संरक्षक बनकर हमें उसको चलाना है अब गरीब को ऐसा अनुभव होना चाहिए कि हर एक उसकी सेवा में लग रहा है। सूर्य के उदय होने पर धनी गरीब सबके घरों में प्रकाश पहुंचता है ठीक उसी प्रकार स्वराज्य का लाभ सबको एक समान मिलना चाहिए। इसका सुख धनी निर्धन सबको बराबर मिलना चाहिए। जनता को हमने वचन दिया था कि स्वराज्य मिलने पर हम आपके दु:ख दूर करेंगे। अब वह समय आ गया है जब कि हमें अपने उस दिए हुए वचन को सार्थक करना है।
इतने बड़े देश में विचार-भेद होना स्वाभाविक है। देखना यह है कि हम लोगों के विचारों में कुछ समान अंश भी हैं या नहीं। यदि हैं तो समान कार्यक्रम बनाइए इस प्रकार कार्य करने से हमारे भेदभाव कम होते-होते एक दिन मिट जाऍंगे और अच्छी बातों का अपने आप उदय होने लगेगा। अगर उसी प्रकार भेद स्थापित करने का प्रयत्न किया गया तो लोग सत्ता के पीछे पड़ जाएंगे स्वराज्य प्राप्त होने का आनंद हम लोगों को नहीं मिल सकेगा।
इतने बड़े देश में विचार-भेद होना स्वाभाविक है। देखना यह है कि हम लोगों के विचारों में कुछ समान अंश भी हैं या नहीं। यदि हैं तो समान कार्यक्रम बनाइए इस प्रकार कार्य करने से हमारे भेदभाव कम होते-होते एक दिन मिट जाऍंगे और अच्छी बातों का अपने आप उदय होने लगेगा। अगर उसी प्रकार भेद स्थापित करने का प्रयत्न किया गया तो लोग सत्ता के पीछे पड़ जाएंगे स्वराज्य प्राप्त होने का आनंद हम लोगों को नहीं मिल सकेगा।
