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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Sep 25th, 09:43 by lovelesh shrivatri
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जातिवाद ने केवल सामाजिक बुराई हैं, बल्कि कानूनी प्रक्रिया और प्रशासनिक कामकाज को भी जहरीला बनाने का काम करती आई है। इसीलिए समय-समय पर अदालतों ने भी जातिवाद को समाज में दरारें पैदा करने वाला बताते हुए उसे हतोत्सहित करने की नसीहते दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का जाति को महिमामंडन करने के खिलाफ दिया गया फैसला इस दिशा में अहम कदम कहा जाएगा।
यह इसलिए भी कि जातिवाद सदियों से हमारी सामाजिक एकता और समानता के भाव को खोखला करता जा रहा है। हमारे संविधान निर्माताओं ने समानता, स्वतंत्रता और बंधुता को जीवन मूल्यों का आधार भले ही बनाया हो लेकिन जातिवाद के जहर को खत्म करने में कामयाबी अभी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले दिनों एक मामले की सुनवाई करते हुए न केवल जातियों के महिमामंडन पर सख्ती बरतने के बल्कि केंद्र और राज्य सरकारी को सरकारी दस्तावेज, वाहनों, सोशल मीडिया और सार्वजनिक स्थानों पर जाति-आधारित चिह्नों, स्टिकरों और रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के भी निर्देश जारी किए। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में ऐसा कदम है, जो जातिवाद को राष्ट्रीय एकता के विरूद्ध बताता है। अदालत ने पुलिस दस्तावेज में जाति का उल्लेख करने पर कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने जातिवाद को बढ़ावा देने के मामलों में भारी जुर्माना लगाने और सोशल मीडिया पर जाति-प्रचार को आइटी नियमों मे तहत रोकने की भी सलाह दी। देखा जाए तो इस फैसले का महत्व व्यापक है। सोशल मीडिया पर जाति गौरव के पोस्ट ने केवल विभेद को बढ़ावा देते हैं, बल्कि युवाओं में पूर्वाग्रहों को जड़ें जमाने का करते है। पहले भी जाति के संबोधन रोकने कई राज्य सरकारों ने दिशानिर्देश जारि किए है लेकिन इनकी पालना में चुनौतियां भी कम नहीं है। जातिगत पहचान को सामाजिक गर्व का प्रतीक समझा जाने लगा है। रही-सही कसर डिजिटल स्पेस ने पूरी कर दी है, जहां सोशल मीडिया के माध्यम से जाति गौरव का बखान खूब पूरी कर दी है, जहां सोशल मीडिया के माध्यम से जाति गौरव का बखान खूब होने लगा है। राजनीतिक दलों के लिए जातियां वोट बैंक की चिंता बनती जा रही है।
यह इसलिए भी कि जातिवाद सदियों से हमारी सामाजिक एकता और समानता के भाव को खोखला करता जा रहा है। हमारे संविधान निर्माताओं ने समानता, स्वतंत्रता और बंधुता को जीवन मूल्यों का आधार भले ही बनाया हो लेकिन जातिवाद के जहर को खत्म करने में कामयाबी अभी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले दिनों एक मामले की सुनवाई करते हुए न केवल जातियों के महिमामंडन पर सख्ती बरतने के बल्कि केंद्र और राज्य सरकारी को सरकारी दस्तावेज, वाहनों, सोशल मीडिया और सार्वजनिक स्थानों पर जाति-आधारित चिह्नों, स्टिकरों और रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के भी निर्देश जारी किए। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में ऐसा कदम है, जो जातिवाद को राष्ट्रीय एकता के विरूद्ध बताता है। अदालत ने पुलिस दस्तावेज में जाति का उल्लेख करने पर कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने जातिवाद को बढ़ावा देने के मामलों में भारी जुर्माना लगाने और सोशल मीडिया पर जाति-प्रचार को आइटी नियमों मे तहत रोकने की भी सलाह दी। देखा जाए तो इस फैसले का महत्व व्यापक है। सोशल मीडिया पर जाति गौरव के पोस्ट ने केवल विभेद को बढ़ावा देते हैं, बल्कि युवाओं में पूर्वाग्रहों को जड़ें जमाने का करते है। पहले भी जाति के संबोधन रोकने कई राज्य सरकारों ने दिशानिर्देश जारि किए है लेकिन इनकी पालना में चुनौतियां भी कम नहीं है। जातिगत पहचान को सामाजिक गर्व का प्रतीक समझा जाने लगा है। रही-सही कसर डिजिटल स्पेस ने पूरी कर दी है, जहां सोशल मीडिया के माध्यम से जाति गौरव का बखान खूब पूरी कर दी है, जहां सोशल मीडिया के माध्यम से जाति गौरव का बखान खूब होने लगा है। राजनीतिक दलों के लिए जातियां वोट बैंक की चिंता बनती जा रही है।
