eng
competition

Text Practice Mode

साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Yesterday, 10:13 by lucky shrivatri


0


Rating

412 words
43 completed
00:00
सोशल मीडिया का चेहरा आज दो अलग-अलग दिशाओं में बंटा हुआ है। एक और यह संवाद और जागरूकता का सशक्‍त माध्‍यम बना है। एक और यह संवाद जागरूकता का सशक्‍त माध्‍यम बना है, तो दूसरी और ऐसे लोगों का भी गढ़ बन गया है, जो अपने स्‍वार्थो के लिए इसे हथियार की तरह इस्‍तेमाल करने से बाज नहीं आते। फर्जी सूचनाएं गढ़ उन्‍हें फैलाना उनके लिए सामान्‍य बात हो गई है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने इस काम को आसान बना दिया है। अंतरराष्‍ट्रीय समूह भी निहित हितों और साजिशों के तहत सोशल मीडिया के जरिए जनता का इस्‍तेमाल अपने टूल की तरह करने लगे है। श्रीलंका, थाईलैंड, बांग्‍लादेश और नेपाल जैसे देशो की ताजा घटनाएं उदाहरण है। सोशल मीडिया पर फैले दुष्‍प्रचार ने पहले भी कई देशों को राजनीतिक अस्थिरता की ओर धकेला है।  
बात यदि सच के प्रचार प्रसार की हो, शायद ही किसी को सोशल मीडिया से कोई शिकायत हो, लेकिन फेक न्‍यूज फैलाकर अपना हित साधने वालों को तो सीधे रास्‍ते पर लाना ही होगा। इस लिहाज से संसद की संचार और सूचना प्रौद्योगिकी समिति की कड़े कानून बनाने खासकर एआइ जनित सामग्री पर लेंबल लगाने की सिफारिश उचित कदम है।  सभी लोग लंबे समय से एआइ जनित सामग्री पर लेबल के लिए कानूनी प्रावधान का अभियान चला रहा है। इस सिफारिश के बाद संसद के अगले सत्र में संबंधित विधेयक पेश किया जा सकता है जिसमें, फेक न्‍यूज फैलाने वालों पर भारी जुर्माना लगाने और गिरफ्तार करने जैसे प्रावधान किए जा सकते है। मीडिया घरानों को फेक न्‍यूज की जिम्‍मेदारी तय करने  के लिए आंतरिक लोकपाल नियुक्‍त करने की भी सिफारिश की गई है। संसदीय समिति की ये सिफारिशें एक नजर में जरूरी प्रतीत हो रही है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि फेक न्‍यूज रोकने की पहली जिम्‍मेदारी मीडिया कंपनियों की ही है। वे इतनी सक्षम भी हैं कि चाहें तो आसानी से उपाय कर सकते  है। लेकिन अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के नाम पर ये कंपनियां बचने  का रास्‍ता निकाल ले रही है। व्‍यावसायिक हितों की रक्षा के उद्देश्‍य से निकाले जा रहे रास्‍ते किसी ने किसी रूप उनके राजनीतिक संरक्षकों को भी रास आते हैं। नए प्रावधान में इसका भी ध्‍यान रखना होगा कि सोशल मीडिया कंपनियों की चतुराई का नादान उपयोगकर्ता शिकार हो जाए।  
दूसरी बात यह है कि संसदीय समिति की सिफारिशों में परंपरागत प्रिंट मीडिया और नए डिजिटल मीडिया को एक तराजू पर रखने की कोशिश दिखती है। जबकि प्रिंट मीडिया आज भी जिम्‍मेदारी के साथ लोकतंत्र की भूमिका निभा रहा है।  

saving score / loading statistics ...