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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Wednesday September 10, 10:43 by lovelesh shrivatri
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एक नगर में एक प्रख्यात मूर्तिकार रहता था। वह मूर्तियां बनाता था। शिष्य उससे कला सीखने आते, पर अक्सर शिकायत करते कि काम बहुत कठिन है। वे कहते, गुरूजी हम दिनभर हथौड़ा चलाते हैं, फिर भी यह पत्थर वैसा नहीं बनता, जैसा हम सोचते है। शायद पत्थर ही दोषपूर्ण है।
मूर्तिकार मुस्कुराता और चुपचाप काम करता रहता। एक दिन उसने अपने शिष्यों को पास बुलाया और कहा, आज मैं तुम्हे एक विशेष पत्थर दूंगा। इस पर तुम जैसे चाहो वैसे काम करो। शिष्यों ने उत्साह से काम शुरू किया। किसी ने आधा छोड़ा दिया किसी ने बिना सोचे काट दिया। शाम तक पत्थर खराब हो चुका था। तब गुरू ने कहा, पत्थर दोषपूर्ण नहीं होता। दोष हमारी दृष्टि और धैर्य में होता है। जब तक हम मन में स्पष्ट आकृति नहीं गढ़ते तब तक पत्थर पर किया गया परिश्रम व्यर्थ है और जब तक हम लगातार धैर्य से चोटें नहीं करते, तब तक सुंदरता प्रकट नहीं होता। मूर्तिया पत्थरों के भीतर छिपी रहती है कला केवल उन्हें बाहर लाने की प्रक्रिया है।
शिष्यों को समझ आया कि जीवन भी उसी पत्थर जैसा है। परिस्थितियां कठोर लग सकती है, पर सही दृष्टि और निरंतर प्रयास से वही जीवन एक सुंदर कृति बन सकता है।
मूर्तिकार मुस्कुराता और चुपचाप काम करता रहता। एक दिन उसने अपने शिष्यों को पास बुलाया और कहा, आज मैं तुम्हे एक विशेष पत्थर दूंगा। इस पर तुम जैसे चाहो वैसे काम करो। शिष्यों ने उत्साह से काम शुरू किया। किसी ने आधा छोड़ा दिया किसी ने बिना सोचे काट दिया। शाम तक पत्थर खराब हो चुका था। तब गुरू ने कहा, पत्थर दोषपूर्ण नहीं होता। दोष हमारी दृष्टि और धैर्य में होता है। जब तक हम मन में स्पष्ट आकृति नहीं गढ़ते तब तक पत्थर पर किया गया परिश्रम व्यर्थ है और जब तक हम लगातार धैर्य से चोटें नहीं करते, तब तक सुंदरता प्रकट नहीं होता। मूर्तिया पत्थरों के भीतर छिपी रहती है कला केवल उन्हें बाहर लाने की प्रक्रिया है।
शिष्यों को समझ आया कि जीवन भी उसी पत्थर जैसा है। परिस्थितियां कठोर लग सकती है, पर सही दृष्टि और निरंतर प्रयास से वही जीवन एक सुंदर कृति बन सकता है।
