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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Aug 26th, 09:38 by lucky shrivatri
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एक बार की बात है। तेज आंधी और और वायु एक दूसरे से मिले। आंधी ने मंद वायु से कहा, शक्तिमान बनने में ही गौरव है। मैं जब भी अपने आवेश के साथ चलती हूं तो पेड़ बेचारे अपनी जड़ से उखड़कर ही गिर जाते है। तालाबों का पानी उछलने लगता है, पौधे भी जमीन से निकलकर बिखर जाते हैं और प्राणियों की तो मेरे सामने ठहरने की हिम्मत ही नहीं होती। सभी अपना बचाव करने के लिए छिपते फिरते है। देखा, जिंदगी ऐसी ही जीना चाहिए कि लोग हमारा लोहा माने और हमसे हरदम डरते रहें। मंद वायु बोली- तुम सामर्थ्यवान हो। जो चाहो वह कर सकती हो, पर मुझे तो इसमें ही आनंद आता है। मैं धीमी चलती हूं, ताकि किसी को कष्ट न हो, निरंतर बहती रहती हूं ताकि सेवा के आनंद से क्षणभर के लिए भी वंचित न रहना पड़े।
मुरझाए और क्लांत चेहरों पर शीतल सुगंधित पंखा झलते हुए जो संतोष प्राप्त होता है, मेरे लिए वही सब कुछ है। तुम्हें अपनी शक्ति का हर्ष प्रिय लगता है, पर मेरे लिए तो सेवामुक्त समर्पण ही सब कुछ है। यह बात सुनकर आंधी लज्जित हुई और अपनी जगह ठहर गई। एक साधारण हवा ने तो आज उसे आईना ही दिखा दिया था।
मुरझाए और क्लांत चेहरों पर शीतल सुगंधित पंखा झलते हुए जो संतोष प्राप्त होता है, मेरे लिए वही सब कुछ है। तुम्हें अपनी शक्ति का हर्ष प्रिय लगता है, पर मेरे लिए तो सेवामुक्त समर्पण ही सब कुछ है। यह बात सुनकर आंधी लज्जित हुई और अपनी जगह ठहर गई। एक साधारण हवा ने तो आज उसे आईना ही दिखा दिया था।
