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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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पढ़ाई लिखाई में इस बात का महत्व ज्यादा है कि पाठ्यक्रम में जो कुछ है उसे गहराई से समझा जाए। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड सीबीएसई ने आगामी सत्र से नौवी कक्षा के विद्यार्थीयों की परीक्षाएं ओपन बुक एसेसमेंट के जरिए लने का फैसला भी इसी इरादे से किया है ताकि परीक्षार्थी रटने के बयाज अपनी समझ को बढ़ाएं। ओपन बुक परीक्षा के तहत अब पेन पेपर में बच्चे विषय से जुड़ी किताबें, नोट्स की मदद लेकर प्रश्न-पत्र हल कर सकेंगे। भाषा, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान विषयों को ओपन बुक परीक्षा के लिए चुना गया है। नई शिक्षा नीति के तहत परीक्षा प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता को समझने हुए सीबीएसई ने यह फैसला किया है।
परीक्षा प्रणाली में ऐसा नवाचार ने पहली बार नहीं किया है। करीब एक दशक पहले ओपन टेक्स्ट बेस्ड असेसमेंट (ओटीबीए) भी कमोबेश इसी तरह का था जिसमें नौवी व ग्यारवही कक्षा के कुछ विषयों में विद्यार्थियों को संदर्भ सामग्री चार माह पहले ही दे दी जाती थी। लेकिन दो-तीन साल बाद ही इसे हटा दिया गया था। बच्चों को शिक्षण सामग्री कैसी मिले, परीक्षा की कौनसी प्रणाली हो और मूल्यांकन किस तरह का हो, इनको लेकर सीबीएसई के स्तर पर लगातार काम होता है। यह सच है कि सोचने-समझने वाले विद्यार्थियों से जीवन के हर क्षेत्र में बेहतर करने की अपेक्षा ज्यादा होती है। इस उद्देश्य की पूर्ति हो सके तो नई व्यवस्था का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन कक्षा विशेष में ही ऐसी व्यवस्था करने की जरूरत क्यों पड़ रही है, यह बड़ा सवाल है। नौवी कक्षा में रटना छोड़, ओपन बुक के माध्यम से प्रश्न-पत्रों के जवाब देने वाले विद्यार्थी जब आगे कक्षाओं में जाएंगे तब क्या होगा? आगे की कक्षाओं में विद्यार्थियों को फिर पुरानी परीक्षा प्रणाली से दो-चार होना पड़े तो फिर बदलाव का फायदा कहा मिलेगा। देखा जाए तो कोई भी व्यवस्था तब जाकर की कारगर होती है जब एक सतत प्रक्रिया के रूप में लागू की जाए। परीक्षार्थियों को दो अलग-अलग तरीके से परीक्षा देने की नौबत आए तो फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की आशंका बनी रहेगी। होना तो यह चाहिए कि ओपन बुक परीक्षा को एक के बाद आगे की दूसरी कक्षा में साल दर साल लागू किया जाए।
देश की शिक्षा के नीति नियंताओं को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ओपन बुक एसेसमेंट का नवाचार पुराने कई प्रयोगों की तरह फाइलों में बंद होकर नहीं रह जाए।
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परीक्षा प्रणाली में ऐसा नवाचार ने पहली बार नहीं किया है। करीब एक दशक पहले ओपन टेक्स्ट बेस्ड असेसमेंट (ओटीबीए) भी कमोबेश इसी तरह का था जिसमें नौवी व ग्यारवही कक्षा के कुछ विषयों में विद्यार्थियों को संदर्भ सामग्री चार माह पहले ही दे दी जाती थी। लेकिन दो-तीन साल बाद ही इसे हटा दिया गया था। बच्चों को शिक्षण सामग्री कैसी मिले, परीक्षा की कौनसी प्रणाली हो और मूल्यांकन किस तरह का हो, इनको लेकर सीबीएसई के स्तर पर लगातार काम होता है। यह सच है कि सोचने-समझने वाले विद्यार्थियों से जीवन के हर क्षेत्र में बेहतर करने की अपेक्षा ज्यादा होती है। इस उद्देश्य की पूर्ति हो सके तो नई व्यवस्था का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन कक्षा विशेष में ही ऐसी व्यवस्था करने की जरूरत क्यों पड़ रही है, यह बड़ा सवाल है। नौवी कक्षा में रटना छोड़, ओपन बुक के माध्यम से प्रश्न-पत्रों के जवाब देने वाले विद्यार्थी जब आगे कक्षाओं में जाएंगे तब क्या होगा? आगे की कक्षाओं में विद्यार्थियों को फिर पुरानी परीक्षा प्रणाली से दो-चार होना पड़े तो फिर बदलाव का फायदा कहा मिलेगा। देखा जाए तो कोई भी व्यवस्था तब जाकर की कारगर होती है जब एक सतत प्रक्रिया के रूप में लागू की जाए। परीक्षार्थियों को दो अलग-अलग तरीके से परीक्षा देने की नौबत आए तो फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की आशंका बनी रहेगी। होना तो यह चाहिए कि ओपन बुक परीक्षा को एक के बाद आगे की दूसरी कक्षा में साल दर साल लागू किया जाए।
देश की शिक्षा के नीति नियंताओं को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ओपन बुक एसेसमेंट का नवाचार पुराने कई प्रयोगों की तरह फाइलों में बंद होकर नहीं रह जाए।
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