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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 (( जूनियर ज्‍यूडिशियल असिस्‍टेंट न्‍यू बेच प्रारंभ ))संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Aug 7th, 06:01 by Jyotishrivatri


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एक पति-पत्‍नी एक संत के आश्रम में अपनी समस्‍याओं के समाधान के लिए आए। पति ने संत के आगे हाथ जोड़कर कहा, मेरी पत्‍नी सदैव परेशान रहती है। कितना भी उसे खुश रखने की कोशिश करूं वह खुश नहीं रहती। मेरे समझ में नहीं आता, मैं इसकी खुशी के लिए क्‍या करू। पत्‍नी ने भी बोलना प्रारंभ किया, नहीं ऐसा कुछ नहीं है, दरअसल मैं पत्‍नी को बीच में ही चुप करा पति बोला नहीं ऐसा ही है, तुम समझती नहीं हो। पत्‍नी ने अपने पति की बात सुनकर मौन धारण कर लिया। संत दोनों की बातें बहुत ध्‍यान से सुन रहे थे। अंत में संत ने कहा, बेटी तुम्‍हारी समस्‍या तुम्‍हारा मौन प्रेम है। अभी भी तुम्‍हारी समस्‍या मुझे तुम्‍हारे पति बता रहे है। मौन कई मामलों में अच्‍छा होता है, किंतु जिस स्‍थान पर बोलना आवश्‍यक हो, वहां पर भी मौन रहना हमारे आत्‍मविश्‍वास को कुचल देता है। इसीलिए अपना पक्ष सामने रखना जरूरी है। उन्‍होंने पति को भी समझाते हुए कहा, तुमने अपनी पत्‍नी को खुश रखने के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन अपने विचार प्रकट नहीं करने दिए। तुम्‍हारी सबसे बड़ी गलती यही हे कि तुम अपने आपको श्रेष्‍ठ मानते हुए दूसरे की बात सुनना नहीं चाहते हो। दोनों को अब संत की बात समझ में गई थी।  

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