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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर मार्ग पर मची भगदड़ ने फिर तंत्र की लापरवाही को उजागर कर दिया है। अनियंत्रित भीड़ कहीं भी होती हो तो ऐसे हादसे होने की आशंका बनी रहती है। मनसा मंदिर मार्ग पर भी ऐसा ही हुआ। मंदिर की और चढ रहे श्रद्धालुओं के बीच अचानक ऐसी भगदड़ मच गई कि अफरा-तफरी का माहौल बन गया और नतीजा श्रद्धालुओ की मौत या घायल होने के रूप में सामने आया। कहा तो यह जा रहा है कि  करंट की अफवाह की वजह से यह भगदड़ हुई। हालांकि प्रशासन से जुड़े लोगों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है। जांच होगी तो कारण भी सामने जाएगा लेकिन इतना साफ है कि हादसे दर हादसे होने के बावजूद भीड़ प्रबंधन की चिंता कोई करता ही नहीं।  
पिछले कुछ सालों में देश के अलग-अलग हिस्‍सों में भगदड़ की कई घटनाओं में सैकड़ों लोग जान गंवा चुके हैं। इनमें धार्मिक स्‍थलों पर मचने वाली भगदड़ के मामले ज्‍यादा है। वैसे तो आराधना स्‍थल हो या फिर खेल का मैदान, रेलवे स्‍टेशन हो या फिर कोई धार्मिक सांस्‍कृतिक आयोजन, सब जगह जब भी भीड़ बेकाबू होने लगती है तो इस तरह के हादसे सामने ही जाते है। कारण अधिकांश का एक ही होता है। भीड़ नियंत्रण के प्रबंधन में लापरवाही से होने वाली त्रासदियों का कारण कभी नहीं बदलता। बदलते हैं तो सिर्फ मरने वालों और घायलों के आकंडो। मनसा देवी मंदिर के मार्ग पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की संख्‍या काफी हो गई थी। जाहिर हैं कि बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने के ठोस प्रंबध गायब थे।  क्षमता से ज्‍यादा भीड़ जमा होने पर पहली प्राथमिकता लोगों को रोकने की रहनी चाहिए। यहां यह सतर्कता जिम्‍मेदारों ने बरती होती तो शायद भगदड़ की नौबत नहीं आती।  
राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पच्‍चीस वर्षो के दौरान हमारे देश में भगदड़ की घटनाओं में तीन हजार से ज्‍यादा लोग जान गंवा चुके है और हजारों घायल भी हुए है। भगदड़ रोकने की रणनीतियों का जिम्‍मेदारी से पालन किया जाना ज्‍यादा जरूरी है। अपनी सुरक्षा की चिंता भीड़ का हिस्‍सा बनने वालों को भी करनी है।  
 
 

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