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सिन्‍धु सभ्‍यता एवं व‍ैदिक सभ्‍यता (Neetesh Gour)

created Jul 3rd, 17:12 by Neetesh Gour


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सिन्‍धु सभ्‍यता के लोगों ने नगरों तथा घरों के विन्‍यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई। घरों के दरवाजे और खिड़कियॉं सड़क की ओर खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलते थे। केवल लोथल नगर के घरों के दरवाजे मुख्‍य सड़क की ओर खुलते थे। सिन्‍धु सभ्‍यता में मुख्‍य फसल थी-गेहूँ और जौ। सैंधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे। मिट्टी से बने हल का साक्ष्‍य बनमाली से मिला है। रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं, जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है। चावल के प्रथम साक्ष्‍य लोथल से ही प्राप्‍त हुए हैं। सुतकोतदा, कालीबंगन एवं लोथल से सैंधवकालीन घोड़े के अस्थिपंजर मिले हैं। तौल की इकाई संभवत: 16 के अनुपात में थी। सैंधव सभ्‍यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैंसागाड़ी का उपयोग करते थे। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में वर्णित मेलूहा शब्‍द का अभिप्राय सिन्‍धु सभ्‍यता से ही है। संभवत: हड़प्‍पा संस्‍कृति का शासन वणिक वर्ग के हाथों में था। पिग्‍गट ने हड़प्‍पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्‍तृत साम्राज्‍य की जुड़वॉं राजधानी कहा है। सिन्‍धु सभ्‍यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा किया करते थे। वृक्ष-पूजा एवं शिव-पूजा के प्रचलन के साक्ष्‍य भी सिन्‍धु सभ्‍यता से मिलते हैं। सवास्तिक चिह्न संभवत: हड़प्‍पा सभ्‍यता की देन है। इस चिह्न से सूर्योपासना का अनुमान लगाया जाता है। सिन्‍धु घाटी के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं। सिन्‍धु सभ्‍यता में मातृदेवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी। पशुओं में कुबड़ वाला सॉंड, इस सभ्‍यता के लोगों के लिए विशेष पूज्‍नीय था। स्‍त्री मृण्‍मूर्तियॉं अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसत्‍तामक था। सैंधववासी सूती एवं ऊनी वस्‍त्रों का प्रयोग करते थे। मनाेरंजन के लिए सैंधववासी मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु-पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ और पासा खेलना आदि साधनों का प्रयोग करते थे। सिन्‍धु सभ्‍यता के लोग काले रंग से डिजाइन किये हुए लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे। सिन्‍धु सभ्‍यता के लोग तलवार से परिचित नहीं थे। कालीबंगन एक मात्र हड़प्‍पाकालीन स्‍थल था, जिसका निचला शहर भी किले से घिरा हुआ था। कालीबंगन का अर्थ है काली चूडि़यॉं। यहॉं से पूर्व हड़प्‍पा स्‍तरों के खेत जोते जाने के और अग्निपूजा की प्रथा के प्रमाण मिले हैं। पर्दा-प्रथा एवं वेश्‍यावृति सैंधव सीयता में प्रचलित थी। शवों को जलाने एवं गाड़ने यानी दोनों प्रथाऍं प्रचलित थीं। हड़प्‍पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी। लोथल एवं कालीबंगा में युग्‍म समाधियॉं मिली हैं। सैंधव सभ्‍यता के विनाश का संभवत: सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था। आग में पकी हुई मिट्टी को टेराकोटा कहा जाता है। वैदिक सभ्‍यता वैदिकालीन सभ्‍यता का विभाजन दो भागों में हुआ है। पहली ऋगवैदिक काल और दूसरी उत्‍तर वैदिककाल है। आर्य सर्वप्रथम पंजाब एवं अफगानिस्‍तान में बसे। मैक्‍समूलर ने आर्यों द्वारा निर्मित सभ्‍यता वैदिक सभ्‍यता कहलाई। यह एक ग्रामीण सभ्‍यता थी। आर्यों की भाषा संस्‍कृत थी। आर्यों के प्रशासनिक इकाई आरोही क्रम से इन पॉंच भागों में विश् का प्रधान विशपति एवं जन के शासक को राजन कहलाते थे। राज्‍यधिकारियों में पुरोहित एवं सेनानी प्रमुख थे। वसिष्‍ठ रूढि़वादी एवं विश्‍वामित्र उदार पुरोहित थे। सूत, रथकार कम्‍मादि नाक अधिकारी रत्‍नी कहे जाते थे। इनकी संख्‍या राजा सहित करीब 12 हुआ करती थी।  

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