Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Yesterday, 09:06 by lovelesh shrivatri
1
327 words
60 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
saving score / loading statistics ...
00:00
बुजुर्गो के लिए सरकारी स्तर पर कई योजनाएं संचालित की जा रही है जिनका मकसद उनके स्वास्थ्य कल्याण व सामाजिक सुरक्षा से जुड़ा है। इसमें संदेह नहीं कि इन योजनाओं की पहुंच संबंधित व्यक्ति तक आसानी से हो तो बुजुर्गो के जीवन स्तर को सुधारा जा सकता है। लेकिन देखने में यह आ रहा है कि देश में वरिष्ठ नागरिक यानी साठ वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों की सेहत से जुड़ी समस्याएं बढ़ती रही है। खास तौर से ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर जानकारी सचमुच चिंताजनक है। कि करोड़ों रूपए खर्च होने के बावजूद वरिष्ठ नागरिक को चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता को लेकर परेशानियां पड़ रही है।
दुनिया के कई दूसरे देशों में सरकार बुजुर्गो के स्वास्थ्य की देखभाल करते हुए उनके जीवन जीने के अधिकार को संरक्षित करती है। लेकिन अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा देश की उत्पादकता बढ़ाने में खपाने वाले बुजुर्गो को हमारे यहां उस वक्त ज्यादा संकट का सामना करना पड़ता है जब वे सेहत संबंधी चुनौतियों से जूझ रहे होते हैं। लैंसेट का ताजा अध्ययन आंखे खोलने वाला है जिसमें कहा गया हैं कि भारत के कई हिस्सों में आज भी बुजुर्गो को आउटडोर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ही आने-जाने में 28 किलोमीटर तक की यात्रा करनी पड़ती है। भर्ती होने के लिए तो यह दूरी 44 किलोमीटर तक बढ़ जाती है। जाहिर है कि ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा से जुड़ी बुनियादी सुविधाएं आज भी कोसों दूर है।
आयु में वृद्धि और टूटते संयुक्त परिवारों ने इन चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। ग्रामीण ही नहीं शहरी क्षेत्रों में भी वरिष्ठ नागरिकों की सेहत सुरक्षा की दिशा में व्यापक प्रबंध करने की जरूरत है। पिछले चुनावों में अस्सी वर्ष व इससे ज्यादा आयु के बुजुर्ग मतदाताओं को घर से ही मतदान कराने की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। बुजुर्गो को उनके घर तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाना भी लोककल्याणकारी सरकार की जिम्मेदारी है। स्वास्थ्य सेवा की पहुंच से दूर इलाकों में चल चिकित्सालय भी बेहतर विकल्प हो सकते है।
दुनिया के कई दूसरे देशों में सरकार बुजुर्गो के स्वास्थ्य की देखभाल करते हुए उनके जीवन जीने के अधिकार को संरक्षित करती है। लेकिन अपनी उम्र का बड़ा हिस्सा देश की उत्पादकता बढ़ाने में खपाने वाले बुजुर्गो को हमारे यहां उस वक्त ज्यादा संकट का सामना करना पड़ता है जब वे सेहत संबंधी चुनौतियों से जूझ रहे होते हैं। लैंसेट का ताजा अध्ययन आंखे खोलने वाला है जिसमें कहा गया हैं कि भारत के कई हिस्सों में आज भी बुजुर्गो को आउटडोर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ही आने-जाने में 28 किलोमीटर तक की यात्रा करनी पड़ती है। भर्ती होने के लिए तो यह दूरी 44 किलोमीटर तक बढ़ जाती है। जाहिर है कि ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा से जुड़ी बुनियादी सुविधाएं आज भी कोसों दूर है।
आयु में वृद्धि और टूटते संयुक्त परिवारों ने इन चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। ग्रामीण ही नहीं शहरी क्षेत्रों में भी वरिष्ठ नागरिकों की सेहत सुरक्षा की दिशा में व्यापक प्रबंध करने की जरूरत है। पिछले चुनावों में अस्सी वर्ष व इससे ज्यादा आयु के बुजुर्ग मतदाताओं को घर से ही मतदान कराने की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। बुजुर्गो को उनके घर तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाना भी लोककल्याणकारी सरकार की जिम्मेदारी है। स्वास्थ्य सेवा की पहुंच से दूर इलाकों में चल चिकित्सालय भी बेहतर विकल्प हो सकते है।
