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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 24th, 08:14 by rajni shrivatri
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एक दिन रवींद्रनाथ टैगोर अपने आश्रम में बैठे थे। एक शिष्य ने उन्हें बताया, गुरूदेव मुझे लगता है कि जीवन में बहुत सारी परेशानियां हैं, मैं कभी खुश नहीं रह पाता। टैगोर ने ध्यान से उसकी बात सुनी और फिर उसे एक साधारण प्रश्न पूछा, तुम्हें क्या लगता है, आकाश में जब बादल आते है, तो क्या आकाश खुद को असहाय महसूस करता है? शिष्य चुप रहा। फिर टैगोर ने कहा बादल आकर चले जाते है, पर आकाश की अपनी महिमा और स्थिति नहीं बदलती। आकाश अपने आप में संपूर्ण है। हमें भी अपनी आंतरिक शांति और संतुलन को बनाए रखना चाहिए, चाहे जीवन में जो भी परिस्थिति हो। शिष्य ने कहा, लेकिन मैं परेशानियों से बाहर कैसे निकल सकता हूं। टैगोर मुस्कुराए और बोले, समझो, जब तक तुम बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित होते रहोगे, तुम हमेशा हिलते रहोगे। पर यदि तुम भीतर से शांत रहोगे, तो कोई भी तुफान तुम्हें हिला नहीं पाएगा। आंतरिक शांति से ही हम जीवन की चुनौतियों का सामना कर सकते है।
