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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Mar 25th, 09:51 by lucky shrivatri


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इस संहिता की कोई बात उच्‍च न्‍यायालय की ऐसे आदेश देने की अंतर्निहित शक्ति को सिमित या प्रभावित करने वाली समझी जाएगी जैसे इस संहिता के अ‍धीन किसी आदेश को प्रभावी करने के लिए या किसी न्‍यायालय की कार्यवाही का दुरुपयोग निवारण के लिए या किसी अन्‍य प्रकार से न्‍याय के उद्देश्‍यों की प्राप्ति सुनिश्‍चित करने के लिए आवश्‍यक हो। यह धारा उच्‍च न्‍यायालय की अंतर्निहित शक्ति से संबंधित है। उच्‍च न्‍यायालय को  शक्ति प्रदान किए जाने का मुख्‍य उद्देश्‍य यह है कि न्‍यायालय की कार्यवाही को दुरुपयोग से बचाया जा सके। अंतर्निहित शक्ति से आशय यह है कि कोई भी संहिता, अधिनियम या विधि स्‍वयं में पूर्ण नहींं होती है क्‍योंकि इनका प्रारूपण करने वाले विधायकगणों के लिए भविष्‍य में उत्‍पन्‍न होने वाली सभी संभावित समस्‍याओं की पूर्व कल्‍पना संभव नहीं होता है। अत: न्‍यायालय को अंतर्निहित शक्ति प्रदान की जाती है ताकि वे न्‍यायिक कार्यवाहियों के दौरान पग-पग पर उत्‍पन्‍न होने वाली ऐसी क्लिदष्‍टताओं का निवारण कर सकें जिनके बारे में विधि के उपबंध मौन हों। तात्‍पर्य यह है कि न्‍यायालय द्वारा  शक्ति का प्रयोग केवल तभी किया जा सकेगा जब उनके समक्ष उत्‍पन्‍न किसी विधिक प्रश्‍न के निवारण के संदर्भ में विधि उपबंध हों। दूसरे शब्‍दों में, किसी क्लिदष्‍टताओं के निवारण हेतु विधिक उपबंध स्‍पष्‍टत: विघमान होने की दशा में न्‍यायालय द्वारा अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाएगा। सामान्‍यत: उच्‍च न्‍यायालय अपने अधीनस्‍थ न्‍यायालय के समक्ष लंबित मामलों में किसी भी प्रकम में अं‍तर्निहित शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा। पंरतु कतिपय असाधारण प्रक्रिया में उच्‍च न्‍यायालय द्वारा हस्‍तक्षेप किया जा सकेगा।  शक्ति के प्रयोग के प्रश्‍न पर भी न्‍यायालय को अपने विधिक विवेक का प्रयोग करना चाहिए। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 397(2) के अधीन किसी भी मामले में पारित अंतर्वर्ती आदेश के बाबत् पुनरीक्षण याचिका को प्रतिबंधित किया गया है अत: यह पूर्णत: स्‍थापित हो चुका है कि इस नियम की विद्यमानता में उच्‍च न्‍यायालय अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए पुनरीक्षण याचिका स्‍वीकार नहीं कर सकता हैै। जहां अधीनस्‍थ न्‍यायालय ने समयक् रीति से स्‍वविवेक का प्रयोग करते हुए मामले में कोई आदेश पारित किया हो, तो ऐसे आदेश को उच्‍च न्‍यायालय अपास्‍त नहीं कर सकेगा। इसी प्रकार सत्र न्‍यायाधीश दंड प्रक्रिया संहिता या किसी अन्‍य सुसंगत विधि का प्रयोग नहीं कर सकेगा। यदि उच्‍च न्‍यायालय अपनी शक्ति के अंतर्गत अभियुक्‍त की जमानत को निरस्‍त कर देता है जिसके कारण उसकी स्‍वाधिनता प्रभावित होती है तो इस प्रकार की प्रस्‍थ‍ापित प्रक्रिया के अनुसार ही होनी चाहिए।             

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