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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Mar 19th, 05:10 by lucky shrivatri
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चंद्रमा को पाने और समझने की इंसान की चाह कोई आज ही नहीं है। दुनिया में चंद्रमा की सतह का अध्ययन करने की ही नहीं, बल्कि समूचे सौरमंडल का अध्ययन करने की होड़ मची है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक ने भी पिछले सालों में इस दिशा में सफलता के झंडे गाड़े है। हमारे चंद्रयान मिशनों की सफलता हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊंचा करने वाली रहती है। वर्ष 2023 में चंद्रयान-3 की सफलता के बाद तथा चंद्रयान-4 की तैयारियों के बीच केन्द्र सरकार ने अब चंद्रयान-5 को भी मंजूरी दे दी है। माना जा रहा हैं कि यह मिशन चांद पर इंसानों को भेजने के भारतीय वैज्ञानिकों के लक्ष्य को पूरा करने में मददगार होगा।
चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरे हमारे विक्रम लैडर ने कई अहम जानकारियां दी है। खासतौर से वहां के तापमान और इंसान के उतरने पर मिलने वाली परिस्थितियों का इसके जरिए अध्ययन करना संभव हो पा रहा है। चंद्रयान-4 मिशन का प्रक्षेपण वर्ष 2027 में होने की उम्मीद है। इसका काम चांद की मिट्टी व चट्टानों के नमूने एकत्र करने व आगे के अध्ययन के लिए उन्हें वापस पृथ्वी पर लाना होगा। इसरों प्रमुख ने जो जानकारी दी है उसके मुताबिक चंदयान मिशन को जापान के सहयोग से पूरा किया जाएगा। खास बात यह है कि चंद्रयान-5 का रोवर, चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर के मुकाबले दस गुणा ज्यादा भारी होगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि भारी वजन के कारण चांद की ऊबड़-खाबड़ सतह पर लैडिंग के दौरान संतुलन बना रहे। इससे रोवर में अत्याधुनिक तकनीक की ज्यादा से ज्यादा मौजूदगी भी रह सकेगी। अब तक सिर्फ अमरीका ही चांद पर इंसान भेजने के मिशन में सफल हो पाया है। हालांकि उसके अपोलो मिशन को भी आधी सदी से ज्यादा का वक्त हो चुका है। तब से अब तक तकनीक के मामले में वैज्ञानिक कोसों आगे जा चूके है। ऐसे दौर में जब दुनिया विकसित कहे जाने वाले देश, चंद्रमा को बेस पाइंट बनाते हुए अंतरिक्ष अनुसंधान में जुटे है, भारतीय वैज्ञानिकों के इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को मिल का पत्थर कहा जा सकता है।
चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरे हमारे विक्रम लैडर ने कई अहम जानकारियां दी है। खासतौर से वहां के तापमान और इंसान के उतरने पर मिलने वाली परिस्थितियों का इसके जरिए अध्ययन करना संभव हो पा रहा है। चंद्रयान-4 मिशन का प्रक्षेपण वर्ष 2027 में होने की उम्मीद है। इसका काम चांद की मिट्टी व चट्टानों के नमूने एकत्र करने व आगे के अध्ययन के लिए उन्हें वापस पृथ्वी पर लाना होगा। इसरों प्रमुख ने जो जानकारी दी है उसके मुताबिक चंदयान मिशन को जापान के सहयोग से पूरा किया जाएगा। खास बात यह है कि चंद्रयान-5 का रोवर, चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर के मुकाबले दस गुणा ज्यादा भारी होगा। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि भारी वजन के कारण चांद की ऊबड़-खाबड़ सतह पर लैडिंग के दौरान संतुलन बना रहे। इससे रोवर में अत्याधुनिक तकनीक की ज्यादा से ज्यादा मौजूदगी भी रह सकेगी। अब तक सिर्फ अमरीका ही चांद पर इंसान भेजने के मिशन में सफल हो पाया है। हालांकि उसके अपोलो मिशन को भी आधी सदी से ज्यादा का वक्त हो चुका है। तब से अब तक तकनीक के मामले में वैज्ञानिक कोसों आगे जा चूके है। ऐसे दौर में जब दुनिया विकसित कहे जाने वाले देश, चंद्रमा को बेस पाइंट बनाते हुए अंतरिक्ष अनुसंधान में जुटे है, भारतीय वैज्ञानिकों के इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को मिल का पत्थर कहा जा सकता है।
