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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Mar 6th, 04:30 by lucky shrivatri
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दिल्ली हाईकोर्ट का स्मार्टफोन के उपयोग को लेकर दिया गया फैसला व्यावहारिक से जुड़ा है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा हैं कि प्रौद्योगिकी का उपयोग आज शिक्षा के लिए भी हो रहा है। ऐसे में स्कूलों में स्मार्टफोन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाना सही नहीं है। परंतु उपयोग को नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। इस फैसले पर सबकी अलग-अलग राय हो सकती है। स्कूल मान सकते हैं कि इससे तो अनुशासन भंग होगा। लेकिन स्कूल समय में स्मार्टफोन यूज नहीं करने का कहने वाले स्कूल खुद बच्चों को होमवर्क, सर्कुलर आदि फोन पर भेज रहे है। पेरंट्स को सोशल मीडिया पर ग्रुप बनाकर जोड़ा जा रहा है।
परीक्षाओं के समय तो शिक्षिकाओं को अपने विषय की ऑनलाइन गाइडेंस देने तक को कहा जा रहा है। स्मार्टफोन का होना गलत नहीं है। उनका अनियंत्रित उपयोग गलत है। स्मार्टफोन के लिए एक अनुशासन चाहिए और इसकी शुरूआत घर से ही हो सकती है। लेकिन इस अनुशासन की अपेक्षा सिर्फ बच्चों से ही जाए, यह अनुचित होगा। आज जरूरत हैं कि हर घर में इंटरनेट और स्मार्टफोन के उपयोग को लेकर भी वैसा ही नियम बनाया जाए, जैसे पढ़ाई व जरूरी कामों के लिए बनाते है। यदि पढ़ाई के घंटे नियत किए जा सकते है। मनौवैज्ञानिक कहते हैं कि हम बच्चों से उस व्यवहार की अपक्षा करते हैं जो हम खुद अमल में नहीं लाते। हम खुद दिनभर स्मार्टफोन यूज करें, सोशल मीडिया पर वक्त बिताएं और बच्चों से ऐसा न करने की उम्मीद करें तो बच्चों में विद्रोह की भावना बढ़ेगी। कम उम्र में स्मार्टफोन की जिद हर बच्चा करेगा। लेकिन उसके पास ये क्यों होना चाहिए, इस पर अधिकतर अभिभावक विचार नहीं करते। फोन में क्यों सेफ्टी सेटिंग्स होनी चाहिए, उस विषय में अध्ययन नहीं करते। घर में इंटरनेट है तो कैसे उसे नियंत्रित कर सकते है, उस विषय में जानकारी नहीं जुटाते। आज इंटरनेट और महंगा फोन विलासिता के परिचायक हो गए है। जहां नामी कंपनी का महंगा फोन रखना स्टेटस सिंबल बना दिया गया हों, वहां नियंत्रण की उम्मीद न्यायालय से करना बेमानी है।
परीक्षाओं के समय तो शिक्षिकाओं को अपने विषय की ऑनलाइन गाइडेंस देने तक को कहा जा रहा है। स्मार्टफोन का होना गलत नहीं है। उनका अनियंत्रित उपयोग गलत है। स्मार्टफोन के लिए एक अनुशासन चाहिए और इसकी शुरूआत घर से ही हो सकती है। लेकिन इस अनुशासन की अपेक्षा सिर्फ बच्चों से ही जाए, यह अनुचित होगा। आज जरूरत हैं कि हर घर में इंटरनेट और स्मार्टफोन के उपयोग को लेकर भी वैसा ही नियम बनाया जाए, जैसे पढ़ाई व जरूरी कामों के लिए बनाते है। यदि पढ़ाई के घंटे नियत किए जा सकते है। मनौवैज्ञानिक कहते हैं कि हम बच्चों से उस व्यवहार की अपक्षा करते हैं जो हम खुद अमल में नहीं लाते। हम खुद दिनभर स्मार्टफोन यूज करें, सोशल मीडिया पर वक्त बिताएं और बच्चों से ऐसा न करने की उम्मीद करें तो बच्चों में विद्रोह की भावना बढ़ेगी। कम उम्र में स्मार्टफोन की जिद हर बच्चा करेगा। लेकिन उसके पास ये क्यों होना चाहिए, इस पर अधिकतर अभिभावक विचार नहीं करते। फोन में क्यों सेफ्टी सेटिंग्स होनी चाहिए, उस विषय में अध्ययन नहीं करते। घर में इंटरनेट है तो कैसे उसे नियंत्रित कर सकते है, उस विषय में जानकारी नहीं जुटाते। आज इंटरनेट और महंगा फोन विलासिता के परिचायक हो गए है। जहां नामी कंपनी का महंगा फोन रखना स्टेटस सिंबल बना दिया गया हों, वहां नियंत्रण की उम्मीद न्यायालय से करना बेमानी है।
