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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Mar 5th, 04:16 by lovelesh shrivatri
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सृष्टि में कोई भी जीव बिना पानी और भोजन के कुछ घंटों या दिन तक जीवित रह सकता है लेकिन थोड़े समय के लिए भी बिना सांस लिए रहना मुश्किल हो जाता है। जाहिर हैं जीवन की आधारभूत जरूरत शुद्ध हवा के लिए पर्यावरण को संरक्षित रखना ज्यादा जरूरी है। सब कुछ जानते बूझते भी विकास की होड़ में पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचाने का काम हो रहा है। हरियाली पर लगातार चलाई जा रही कुल्हाड़ी के बीच चिंता की खबर यह हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में हाइवे निर्माण के लिए करीब 57 लाख पेड़ों की बलि ले ली गई। उससे भी बड़ी चिंता यह कि इन काटे गए पेड़ों के बदले महज 3.28 लाख पौधे लगाए गए इनमें से भी एक चौथाई के नष्ट होने का अनुमान है।
इसमें दो राय नहीं कि पिछले वर्षो में देश के अलग-अलग हिस्सों में हाइवे का जो जाल बिछा है उससे आवागमन सुगम हुआ है। समय ओर श्रम की बचत होने लगी है सो अलग। आवागमन शुरू करने के लिए चौड़ी सड़कों की जरूरत भी है। हाइवे जब भी बनते हैं या सड़कों की चौड़ाई बढ़ती हैं तो स्वाभाविक रूप से दोनों तरफ आने वाले पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलती है। नियमानुसार हाइवे पर काटे गए पड़ों की एवज में नए पौधे लगाकर पुरानी स्थिति में लाने का काम होना चाहिए। लेकिन यह देखने में आता हैं कि पौधे लगाने के नाम पर खानापूर्ति होकर रह जाती है। नीम, शीशम और सागवान जैसे पेड़ लगाने के बजाय हरियाली के नाम पर सजावटी पौधे लगाकर दायित्व की इतिश्री कर ली जाती है। ऐसे में पेड़ के बदले लगाने का मकसद कागजों में ही रह जाता है। एक ओर पर्यावरण सरंक्षण के लिए दुनियाभर में हरियाली बढाने की चिंता की जा रही है। सरकारें भी अपने स्तर पर इस दिशा में प्रयास कर रही है। वहीं दूसरी और हाइवे बनाने के दौरान हरियाली के इस तरह के खात्मे को तो जीव हत्या का अपराध ही कहा जाएगा।
पेड़ो को जड़ सहित उठाकर दूसरी जगह लगाने की तकनीक भी पिछले सालों में इस्तेमाल होने लगी है लेकिन पूरी तरह से नहीं। हाइवे निर्माण के दौर में पेड़ों को हटाना हो तो इन्हें दूसरी जगह शिफ्ट करने के काम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।
इसमें दो राय नहीं कि पिछले वर्षो में देश के अलग-अलग हिस्सों में हाइवे का जो जाल बिछा है उससे आवागमन सुगम हुआ है। समय ओर श्रम की बचत होने लगी है सो अलग। आवागमन शुरू करने के लिए चौड़ी सड़कों की जरूरत भी है। हाइवे जब भी बनते हैं या सड़कों की चौड़ाई बढ़ती हैं तो स्वाभाविक रूप से दोनों तरफ आने वाले पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलती है। नियमानुसार हाइवे पर काटे गए पड़ों की एवज में नए पौधे लगाकर पुरानी स्थिति में लाने का काम होना चाहिए। लेकिन यह देखने में आता हैं कि पौधे लगाने के नाम पर खानापूर्ति होकर रह जाती है। नीम, शीशम और सागवान जैसे पेड़ लगाने के बजाय हरियाली के नाम पर सजावटी पौधे लगाकर दायित्व की इतिश्री कर ली जाती है। ऐसे में पेड़ के बदले लगाने का मकसद कागजों में ही रह जाता है। एक ओर पर्यावरण सरंक्षण के लिए दुनियाभर में हरियाली बढाने की चिंता की जा रही है। सरकारें भी अपने स्तर पर इस दिशा में प्रयास कर रही है। वहीं दूसरी और हाइवे बनाने के दौरान हरियाली के इस तरह के खात्मे को तो जीव हत्या का अपराध ही कहा जाएगा।
पेड़ो को जड़ सहित उठाकर दूसरी जगह लगाने की तकनीक भी पिछले सालों में इस्तेमाल होने लगी है लेकिन पूरी तरह से नहीं। हाइवे निर्माण के दौर में पेड़ों को हटाना हो तो इन्हें दूसरी जगह शिफ्ट करने के काम को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है।
