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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565

created Today, 04:51 by sandhya shrivatri


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चावल का कटोरा यानी कि दक्षिण भारत का ऐतिहासिक शहर तंजावुर, जो पहले तंजौर के नाम से मशहूर था, कावेरी नदी के किनारे बहुत उपजाऊ इलाका है। यही कारण भी है इसे चावल का कटोरा कहने के पीछे। यहां जब पूजा के लिए टनों सब्जियों और फलों की मालाएं बनते देखीं तो मैं हैरान रह गई थी क्‍योंकि पहले कभी उनके बारे में कुछ नहीं सुना था। मैं अपनी एक किताब के सिलसिले में पूरे भारत की यात्रा कर रही थी और उसी सिलसिले में तंजावुर पहुंची थी। मैं जब भी कही जाने की योजना बनाती हूं तो वहां उस दौरना होने वाले त्‍योहारों की जानकारी लेती हूं, चो देश में या विदेश में। तो मुझे दक्षिण भारत का रुख करना था, मैंने पोंगल के त्‍योहार को ध्‍यान में रख कर अपना कार्यक्रम बनाया। पोंगल के बारे में काफी कुछ जानने के बाद भी मुझे तंजावुर के पोंगल के अनूठेपन की कोई जानकारी नहीं थी। नया वर्ष शुरू होते ही पूरा भारतवर्ष मकर संक्रांति को अपने-अपने अंदाज में मनाने की तैयारी में जुट जाता है। वास्‍तव में यह समय सूर्य उपासना और फसल के उत्‍सव मनाने का है। सच कहें तो हमारे देश के सारे त्‍योहार कहीं कहीं फसलों की बुवाई और कटाई से जुडे हैं, क्‍योंकि हम सदियों से कृषि प्रधान रहे है। फसल की जड़ों से जुड़े हैं हमारे सदियों पुराने त्‍योहार, रीति-रिवाज, गीत और नृत्‍य। मकर संक्रांति पर जब कहीं माघी संक्रांति मनाई जाती है, कहीं पौषी संक्रांति, तब तमिलनाडू मनाता है अपना चार दिवसीय पोंगल 14 से 17 जनवरी तक। पहले दिन इंद्र देव की पूजा की जाती है जिनकी कृपा से वर्षा की कृपा रहती है। अधिक, कम। इसे भोगी पोंगल कहते है। दूसरे दिन यानी सूर्य पोंगल के दिन सूर्य के प्रकाश में चावल और गुड़ को नए बर्तनों में अच्‍छी तरह से उबाल कर पकाया जाता है। इस तरह सूर्य उपासना के लिए प्रसाद तैयार होता है। आप को पंक्ति से लगे चूल्‍हों पर हांडी में यह पकाते हुए लोग जगह-जगह दिखेंगे। इस खास खिचड़ी को पोंगल कहते हैं। पोंगल शब्‍द का एक अर्थ है पूरी तरह उबलना। यह भी वहीं जा कर पता चला, जब एक घर में मैंने पोंगल का स्‍वाद चखा। तीसरे दिन मट्टू पोंगल था जब मुझे लागा कि मैं बृ‍हदेश्‍वर मंदिर में नहीं, बल्कि एक बड़ी सब्‍जी मंडी में खड़ी थी। सब्जियों और फलों के ढेर लगे थे। ताजा बैंगन, खीरे, नींबू और तो और अनन्‍नास लंबी मालाओं में पिरोए जा रहे थे। इन सब मालाओं से विशालकाय नंदी की प्रतिमा को सजाया जाता है। बाद में इन सब्‍जी-फलों से प्रसाद तैयार किया जाता है। दूसरी ओर, केले के पत्तों से सजाए गए परिसर में गाय, बैल और बछडे खड़े किये जा रहे थे क्‍योंकि यह समय उन मवेशियों की पूजा का भी है जो फसल बोने से काटने तक लोगों का साथ देते है। अचानक में सोचने लगी कि इन मवेशियों की जगह मशीनें ही ले लेगी तो ऐसे सुंदर त्‍योहारों का क्‍या होगा। वैसे भी मुझे सजीव विरासत को संजोने में गहरी रूचि रही है।  

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