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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565

created Thursday February 27, 04:21 by sandhya shrivatri


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एक पंडित जी थे। वे अपने किसान यजमान के पास पहुंचे उनके पिता का श्राद्ध था। अपने पुरोति को देख किसान ने नमस्‍कार किया और हाल पूछा कहो पंडितजी, क्‍या हाल है। दुबले हो गए हो। पंडित ठंडी आह भरकर बोला क्‍या बताऊ यजमान! पेट में बीमारी हो गई है। वैद्य ने दवाई दी है और कहा है कि दवा के साथ बकरी का दूध पीना। अब मुझे बकरी का दूध कहा मिलेगा? किसान ने सुझाव दिया पंडितजी मैं श्राद्ध में आपको गाय की जगह दूध देने वाली बकरी दूंगा। किसान अपने फायदे की सोच रहा था। कम रूपए की बकरी देकर ज्‍यादा रूपए की गाय बच जाएगी। पंडित जीभी खुश। एक तो बकरी मिली। गाय की देखभाल के झंझट से बचे सो अलग। श्राद्ध करके पंडित जी बकरी को लेकर चल दिए। झाड़ी में छिपे तीन लोग पंडित जी से बकरी ठगने की योजना बना रहे थे। आगे जाकर कुछ दूरी पर अलग-अलग खड़े हो गए। पहले ठग ने पंडित को नमस्‍कार किया और बोला- पंडितजी आप यह क्‍या अनर्थ कर रहे है? एक पंडित होकर अपने कंधे पर क्‍या लाद रखा है। पंडित जी ने क्रोध से कहा क्‍या बक रहा है। मेरे कंधक पर बकरी है। तुझे नजर कम आता है क्‍या। ठग ने सिर झटका अरे ये बकरी नहीं कुछ और है देखो। घोर कलियुग पंडित जी क्रोध से बड़ बडाते हुए आगे चलने लगे। आगे दूसरा ठग पंडित जी का इंतजार कर रहा था। वह बोला राम राम मै यह क्‍या देख रहा हूं। पंडित जी चौके और बोले तुम्‍हारा मतलब क्‍या है? धर्म रहा ही नही, एक पंडित होकर आपने कंधे पर क्‍या लाद रखा है। ठग ने कहा। पंडित जी झल्लाते हुए बोले एक पीछे अंधा मिला था। अब यह एक और मिला, इनको बकरी क्‍यों नहीं दिख रही। ठग ने कहा- पंडित जी आप कितने लोगों को बकरी कहकर बेवकूफ बनाओगे। मुझे तो आपको यह काम करते देखकर दुख हुआ था, इसलिए कह दिया। वरना मुझे क्‍या लेना-देना। पंडित जी भुन-भुनाते हुए आगे चल दिए। कुछ दूर आगे जाने पर तीसरा ठग मिला। उसने पंडित को नमस्‍कार करने के बाद कहा- अरे पंडितजी मैं तो आपका बहुत आदर करता थ। मुझे पता नहीं था कि आप ऐसे काम करते हो। पंडित जी ने घबराकर पूछा कैसा काम? ठग ने तीर मारा इतना बड़ा अनर्थ कर हो और फिर भी भोने बनने का नाटक कर रहे हो, आपने जो यह कंधे पर लाद रखा है, यह शोभा देता है क्‍या। पंडित जी चीखे तुम्‍हे ठीक से नजर नहीं आता क्‍या ठग बोला पंडित मुझे तो ठीक से नजर आता है पर लगता है आपकी आखों पर पर्दा पड़ गए, तीन आदमी झूठ कैसे कह सकते है। आखिर यह बकरी किसी को दिख क्‍यों नहीं रही। मुझे तो बकरी ही नजर रही है।  
पंडित जी ऐसा कहते हुए बकरी को छोड़कर वहां से भाग गए। तीनों ठग पीछे से यह सब देख रहे थे। वे चुपचाप आए और बकरी लेकर भाग गए।  
सीख- बिना सोचे-समझे  दूसरों की बातों पर आखें बंद कर विश्‍वास नहीं करना चाहिए।  

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