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SAHU COMPUTER TYPING CENTER MANSAROVAR COMPLEX CHHINDWARA [M.P.] CPCT ADMISSION OPEN MOB.-8085027543 MP CPCT EXAM TEST
created Thursday February 27, 03:13 by sahucpct02
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जिस तरह भारत के आमजन ने महाकुम्भ के दौरान प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाने के लिए अति-उत्साह दिखाया है, वो बताता है कि देश का बड़ा वर्ग अपनी परम्पराओं में केवल विश्वास ही नहीं रखता, वे उनका जीवनामृत भी हैं।
उन्हें अच्छा लगता है कि वे डुबकी लगाने की सदियों पुरानी मान्यता को जीवित रखते हैं। हमारी आध्यात्मिकता भले घटी हो, पर हमारे लिए आस्था का कोई पर्याय नहीं। जीने का और कोई सहारा हो भी सकता है, वो हमें सोचना जरूरी भी नहीं लगता है। दुनिया बदलती है, भारत में भी एक वर्ग काफी हद तक बदला है। लेकिन महाकुम्भ में हमने देखा कि हमारी आबादी का बहुत बड़ा तबका - जिसने भारत की मूलभूत पहचान बनाई थी और उसे सदियों के कालचक्र में धीरे-धीरे संवारा है- वो अपनी श्रद्धा के साथ जी रहा था और जी रहा है।
सरकार के आंकड़ों को मानें ना मानें, फिर भी जिस तादाद में गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों ने कुम्भ में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य दिया है, उसे देखकर ख्याल आता है कि उनकी अभावों से भरी जिंदगी में आखिर श्रद्धा के सिवाय है भी क्या ? शासकों ने, ताकतवर लोगों ने, बहुत पढ़-लिखकर बड़े बन गए लोगों ने अपना भविष्य बनाया है। लेकिन उन लोगों का भविष्य तो डुबकी लगाने के बाद मिलने वाले अपार संतोष और एक छोटी-सी आशा के सहारे ही टिका है।
जब एआई का दौर शुरू हो रहा है, तब ये आस्था भरा अस्तित्व भारत को खास पहचान देता है। जब दावा किया जा रहा हो कि अगले दस सालों मैं रोबोट मनुष्यों की तरह' ही सोचने, महसूस करने लगेगा, तब हमारी ये आस्था बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है। कुम्भ का सबसे बड़ा संदेश ये उभरकर आया है कि एक बहुत बड़ा हिंदू समाज एक ही तरह से सोचता है और वह कई परिवर्तनों के लिए तैयार भी है, लेकिन अपनी परम्परा और आस्था को ही अपने जीने का एकमात्र सहारा मान रहा है।
अगर बदइंतजामी और तकलीफों के बावजूद छोटे, बड़े और बुजुर्ग अनेक किलोमीटर पैदल चलकर भी संगम की ओर जा रहे हैं, तो यह आने वाले कल का एक ठोस अहसास है। आज लाखों लोग हैं, जो टेक्नोलॉजी को अपनाकर आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उनसे कई गुना ज्यादा करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने जीवन के संचालन का पूरा हक सिर्फ अपनी आस्था को दिया है।
उन्हें अच्छा लगता है कि वे डुबकी लगाने की सदियों पुरानी मान्यता को जीवित रखते हैं। हमारी आध्यात्मिकता भले घटी हो, पर हमारे लिए आस्था का कोई पर्याय नहीं। जीने का और कोई सहारा हो भी सकता है, वो हमें सोचना जरूरी भी नहीं लगता है। दुनिया बदलती है, भारत में भी एक वर्ग काफी हद तक बदला है। लेकिन महाकुम्भ में हमने देखा कि हमारी आबादी का बहुत बड़ा तबका - जिसने भारत की मूलभूत पहचान बनाई थी और उसे सदियों के कालचक्र में धीरे-धीरे संवारा है- वो अपनी श्रद्धा के साथ जी रहा था और जी रहा है।
सरकार के आंकड़ों को मानें ना मानें, फिर भी जिस तादाद में गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों ने कुम्भ में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य दिया है, उसे देखकर ख्याल आता है कि उनकी अभावों से भरी जिंदगी में आखिर श्रद्धा के सिवाय है भी क्या ? शासकों ने, ताकतवर लोगों ने, बहुत पढ़-लिखकर बड़े बन गए लोगों ने अपना भविष्य बनाया है। लेकिन उन लोगों का भविष्य तो डुबकी लगाने के बाद मिलने वाले अपार संतोष और एक छोटी-सी आशा के सहारे ही टिका है।
जब एआई का दौर शुरू हो रहा है, तब ये आस्था भरा अस्तित्व भारत को खास पहचान देता है। जब दावा किया जा रहा हो कि अगले दस सालों मैं रोबोट मनुष्यों की तरह' ही सोचने, महसूस करने लगेगा, तब हमारी ये आस्था बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है। कुम्भ का सबसे बड़ा संदेश ये उभरकर आया है कि एक बहुत बड़ा हिंदू समाज एक ही तरह से सोचता है और वह कई परिवर्तनों के लिए तैयार भी है, लेकिन अपनी परम्परा और आस्था को ही अपने जीने का एकमात्र सहारा मान रहा है।
अगर बदइंतजामी और तकलीफों के बावजूद छोटे, बड़े और बुजुर्ग अनेक किलोमीटर पैदल चलकर भी संगम की ओर जा रहे हैं, तो यह आने वाले कल का एक ठोस अहसास है। आज लाखों लोग हैं, जो टेक्नोलॉजी को अपनाकर आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उनसे कई गुना ज्यादा करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने जीवन के संचालन का पूरा हक सिर्फ अपनी आस्था को दिया है।
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