Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Tuesday February 25, 04:02 by lovelesh shrivatri
1
382 words
199 completed
0
Rating visible after 3 or more votes
saving score / loading statistics ...
00:00
तकनीक के साथ कदमताल करते हुए दुनिया भर के उच्च शिक्षा संस्थान नवाचारों के साथ-साथ शोध पर भी जोर दे रहे है। यह भी सच हैं कि भारत के विश्वविद्यालयों समेत उच्च शिक्षण संस्थान भी पिछले वर्षो में तरक्की के नए पायदानों पर पहुंचे है, लेकिन जब इन शिक्षण संस्थानों की विश्वस्तरीय रैंकिग सामने आती है तो हमारे उच्च शिक्षण संस्थान मुकाबले में कहीं पीछे नजर आते है। ऐसा इसलिए कि विकसित कहे जाने वाले देशों के शैक्षणिक संस्थान किताबी ज्ञान के साथ-साथ कौशल विकास को भी प्राथमिकता देते है।
टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड रेपुटेशन रैकिंग-2025 में भारत के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों का भी नाम है। चिंता इस बात की है कि इन विश्वविद्यालयों समेत पिछली बार भारत की जितनी भी उच्च शिक्षण संस्थाएं रैकिंग में शामिल थी, उनमें इस बार गिरावट आई है। विश्व स्तरीय रैंकिंग में भारत का नाम आना हमारे लिए भले ही संतोष की बात हो, लेकिन यह सवाल भी जरूर उठना चाहिए कि आखिर हमारे ज्यादा संस्थान ऐसी रैकिंग में जगह क्यों नहीं बना पाते? सवाल यह भी कि जो संस्थान एक बार रैंक सूची में आते हैं तो फिर अगली बार उससे भी नीचे वाली रैंक में क्यों आने लगते है? जाहिर है उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को अभी और प्रयास करने बाकी है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, आइआइटी दिल्ली, मद्रास और सूची में नई शामिल हुई शिक्षा अनुसंधान जैसी संस्थाएं और बड़ी करनी होगी। ऐसा तब ही संभव है जब हमारे संस्थानों में विश्वस्तरीय संसाधन व सुविधाएं उपलब्ध हों। आज तो हालत यह है कि हमारे यहां से विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए अमरीका, यूके, चीन और जापान की शीर्ष संस्थानों में दाखिले को लालायित रहते है। जो इन संस्थानों में दाखिला लेने में सफल हो जाते हैं उनमें से अधिकांश फिर वहीं रोजगार भी हासिल कर लेते है। प्रतिभा पलायन की बड़ी वजह भी यही है कि भारत में विश्वस्तरीय संस्थान गिनती के ही है।
आज दूसरे विकसित देशों के साथ एशियाई देशों में हमारी स्पर्धा चीन के साथ है, जो कि आर्थिक मोर्चे के बाद शैक्षिक मोर्चे पर भी लगातार आगे नजर आ रहा है। यदि हम भविष्य में वैश्विक स्तर पर हमारे संस्थानों को और प्रतिस्पर्धी व बेहतर बनाने चाहते हैं तो अपनी शिक्षा में नवाचार, कौशल प्रशिक्षण और गुणवत्ता का खास ध्यान रखना होगा।
टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड रेपुटेशन रैकिंग-2025 में भारत के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों का भी नाम है। चिंता इस बात की है कि इन विश्वविद्यालयों समेत पिछली बार भारत की जितनी भी उच्च शिक्षण संस्थाएं रैकिंग में शामिल थी, उनमें इस बार गिरावट आई है। विश्व स्तरीय रैंकिंग में भारत का नाम आना हमारे लिए भले ही संतोष की बात हो, लेकिन यह सवाल भी जरूर उठना चाहिए कि आखिर हमारे ज्यादा संस्थान ऐसी रैकिंग में जगह क्यों नहीं बना पाते? सवाल यह भी कि जो संस्थान एक बार रैंक सूची में आते हैं तो फिर अगली बार उससे भी नीचे वाली रैंक में क्यों आने लगते है? जाहिर है उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को अभी और प्रयास करने बाकी है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, आइआइटी दिल्ली, मद्रास और सूची में नई शामिल हुई शिक्षा अनुसंधान जैसी संस्थाएं और बड़ी करनी होगी। ऐसा तब ही संभव है जब हमारे संस्थानों में विश्वस्तरीय संसाधन व सुविधाएं उपलब्ध हों। आज तो हालत यह है कि हमारे यहां से विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए अमरीका, यूके, चीन और जापान की शीर्ष संस्थानों में दाखिले को लालायित रहते है। जो इन संस्थानों में दाखिला लेने में सफल हो जाते हैं उनमें से अधिकांश फिर वहीं रोजगार भी हासिल कर लेते है। प्रतिभा पलायन की बड़ी वजह भी यही है कि भारत में विश्वस्तरीय संस्थान गिनती के ही है।
आज दूसरे विकसित देशों के साथ एशियाई देशों में हमारी स्पर्धा चीन के साथ है, जो कि आर्थिक मोर्चे के बाद शैक्षिक मोर्चे पर भी लगातार आगे नजर आ रहा है। यदि हम भविष्य में वैश्विक स्तर पर हमारे संस्थानों को और प्रतिस्पर्धी व बेहतर बनाने चाहते हैं तो अपनी शिक्षा में नवाचार, कौशल प्रशिक्षण और गुणवत्ता का खास ध्यान रखना होगा।
