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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Feb 18th, 04:26 by lucky shrivatri
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नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ ने फिर हमारे तंत्र की लापरवाही को उजागर कर दिया है। स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 13 और 14 पर जब भगदड़ मर्ची वहां महाकुंभ के लिए प्रयागराज जाने वाले यात्रियों की भारी भीड़ थी। हादसे के बाद रेलवे ने जिस तरह चार विशेष ट्रेने चलाकर भीड़ का दबाव कम किया, इसी तरह की व्यवस्था अगर पहले कर ली जाती तो भगदड़ टाली जा सकती थी।
अफसोस की बात हैं कि महाकुंभ जैसे विराट आयोजन में भीड़ प्रबंधन में तंत्र की नाकामी कई मोर्चो पर सामने आ चुकी है। मौनी अमावसया के अमृत स्नान से पहले मची भगदड़ के बाद भी प्रबंधन की कोई कारगर व्यवस्था नहीं की गई। प्रयोगराज और इसके आसपास के शहरों में ट्रैफिक जाम की खबरें पहले से संकेत दे रही थी कि भीड़ को संभालना शासन प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि हादसों से सबक लेने की परंपरा हमारे तंत्र में अब तक विकसित नहीं हुई है। स्टेशनों पर भगदड़ के कई हादसे भी हो चुके है। महाकुंभ के दौरान वर्ष 2013 में प्रयागराज स्टेशन पर भगदड़ में 36 लोगों की जान गई थी। दिल्ली स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर वर्ष 2004 में भगदड़ में चार, जबकि मुंबई के एलफिस्टन के फुटओवर ब्रिज पर वर्ष 2017 में भगदड़ से 22 लोगों की मौत हुई थी। हर हादसे के समय किए जाने वाले बड़े-बड़े दावों की पोल अगले हादसे से खून जाती है। पिछले साल अक्टूबर में मुंबई के बांद्रा टर्मिनल स्टेशन पर भगदड़ के बाद रेलवे ने बड़े स्टेशनों पर भीड़ प्रबंधन सिस्टम लगाने की बात कहीं थी। दावा किया था कि सेंसर आधारित इस सिस्टम से पता चल जाएगा कि स्टेशन पर कब और कहां भीड़ को किस तरह नियंत्रित करना है। क्षमता से ज्यादा भीड़ होने पर अलर्ट जारी किया जा सकेगा। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ ने स्पष्ट कर दिया कि बड़े स्टेशन अब तब इस सिस्टम से लैंस नहीं किए गई है।
अफसोस की बात हैं कि महाकुंभ जैसे विराट आयोजन में भीड़ प्रबंधन में तंत्र की नाकामी कई मोर्चो पर सामने आ चुकी है। मौनी अमावसया के अमृत स्नान से पहले मची भगदड़ के बाद भी प्रबंधन की कोई कारगर व्यवस्था नहीं की गई। प्रयोगराज और इसके आसपास के शहरों में ट्रैफिक जाम की खबरें पहले से संकेत दे रही थी कि भीड़ को संभालना शासन प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि हादसों से सबक लेने की परंपरा हमारे तंत्र में अब तक विकसित नहीं हुई है। स्टेशनों पर भगदड़ के कई हादसे भी हो चुके है। महाकुंभ के दौरान वर्ष 2013 में प्रयागराज स्टेशन पर भगदड़ में 36 लोगों की जान गई थी। दिल्ली स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर वर्ष 2004 में भगदड़ में चार, जबकि मुंबई के एलफिस्टन के फुटओवर ब्रिज पर वर्ष 2017 में भगदड़ से 22 लोगों की मौत हुई थी। हर हादसे के समय किए जाने वाले बड़े-बड़े दावों की पोल अगले हादसे से खून जाती है। पिछले साल अक्टूबर में मुंबई के बांद्रा टर्मिनल स्टेशन पर भगदड़ के बाद रेलवे ने बड़े स्टेशनों पर भीड़ प्रबंधन सिस्टम लगाने की बात कहीं थी। दावा किया था कि सेंसर आधारित इस सिस्टम से पता चल जाएगा कि स्टेशन पर कब और कहां भीड़ को किस तरह नियंत्रित करना है। क्षमता से ज्यादा भीड़ होने पर अलर्ट जारी किया जा सकेगा। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ ने स्पष्ट कर दिया कि बड़े स्टेशन अब तब इस सिस्टम से लैंस नहीं किए गई है।
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