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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Feb 14th, 10:19 by lovelesh shrivatri
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आम जनता को चुनाव से पूर्व सरकारों या राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त योजनाओं के वादे देश के विकास में बाधक हो सकते है। देखा जाए तो चुनाव के समय घोषित मुफ्त योजनाएं प्रारंभ में लोगों के लिए भले ही राहत का जरिया बन जाए, लेकिन इन योजनाओं से लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना कमजोर होती है और परजीवी मानसिकता को भी बढ़ावा मिलता है।
राजनीतिक दलों की और से चुनवों से पहले जनता को मुफ्त बिजली, पानी, अन्न या योजना के तहत नकद राशि दिए जाने की घोषणा पर सुप्रीम कोर्ट की हाल ही की गई टिप्पणी भी इस ज्वलंत विषय की और इंगित कर रही है कि ऐसी योजनाएं लोगों को परजीवी बना सकती है। इससे वे खुद को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की बजाय सरकारी सहायता पर निर्भर हो रहे है। अदालत का मानना हैं कि मुफ्त योजनाएं लोगों को काम करने की प्रवृत्ति से दूर कर रही हैं और इससे उनकी व्यक्तिगत विकास की क्षमता सीमित हो रही है। जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह ने इन मुफ्त योजनाओं के स्थान पर लोगों को मुख्यधारा में जोड़कर देश के विकास में भागीदार बनाने की बात भी कही है। पूर्व में भी कोर्ट ने इस प्रकार के रेवड़ी कल्चर पर सख्त नाराजगी जताई थी। आज देखा जाए तो एक दूसरे पर रेवड़ी कल्चर को बढावा देने का आरोप लगाने वाले राजनीतिक दल हर चुनाव से पूर्व मुफ्त योजनाओं का पिटारा खोलकर बैठ जाते है। इसका असर यह है कि मतदाता जागरूक होने के स्थान पर लाभार्थी बनकर बैठ जाता है। इन योजनाओ में मुफ्त शिक्षा या चिकित्सा जैसी योजनाओं को प्राथमिकता देने के स्थान पर नकद भुगतान योजना, बिजली व पानी की सुविधाओ को मुफ्त किए जाने की घोषणाए ज्यादा होती है।
राजनीतिक दलों की इस मुफ्त योजना नीति के समक्ष देश के विकास के लिए टैक्स देने वाला कामकाजी वर्ग खुद को ठगा सा महसूस करता है। मुफ्त योजनाएं कहीं न कहीं हमारी युवा शक्ति को लाभार्थी की श्रेणी में लाकर देश के विकास में भागीदार बनने से रोक रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी तीखी टिप्पणी के जरिए सरकार को चेताने के साथ ही आमजन को भी जागरूक होने की नसीहत दी है।
राजनीतिक दलों की और से चुनवों से पहले जनता को मुफ्त बिजली, पानी, अन्न या योजना के तहत नकद राशि दिए जाने की घोषणा पर सुप्रीम कोर्ट की हाल ही की गई टिप्पणी भी इस ज्वलंत विषय की और इंगित कर रही है कि ऐसी योजनाएं लोगों को परजीवी बना सकती है। इससे वे खुद को स्वतंत्र रूप से कार्य करने की बजाय सरकारी सहायता पर निर्भर हो रहे है। अदालत का मानना हैं कि मुफ्त योजनाएं लोगों को काम करने की प्रवृत्ति से दूर कर रही हैं और इससे उनकी व्यक्तिगत विकास की क्षमता सीमित हो रही है। जस्टिस गवई और जस्टिस मसीह ने इन मुफ्त योजनाओं के स्थान पर लोगों को मुख्यधारा में जोड़कर देश के विकास में भागीदार बनाने की बात भी कही है। पूर्व में भी कोर्ट ने इस प्रकार के रेवड़ी कल्चर पर सख्त नाराजगी जताई थी। आज देखा जाए तो एक दूसरे पर रेवड़ी कल्चर को बढावा देने का आरोप लगाने वाले राजनीतिक दल हर चुनाव से पूर्व मुफ्त योजनाओं का पिटारा खोलकर बैठ जाते है। इसका असर यह है कि मतदाता जागरूक होने के स्थान पर लाभार्थी बनकर बैठ जाता है। इन योजनाओ में मुफ्त शिक्षा या चिकित्सा जैसी योजनाओं को प्राथमिकता देने के स्थान पर नकद भुगतान योजना, बिजली व पानी की सुविधाओ को मुफ्त किए जाने की घोषणाए ज्यादा होती है।
राजनीतिक दलों की इस मुफ्त योजना नीति के समक्ष देश के विकास के लिए टैक्स देने वाला कामकाजी वर्ग खुद को ठगा सा महसूस करता है। मुफ्त योजनाएं कहीं न कहीं हमारी युवा शक्ति को लाभार्थी की श्रेणी में लाकर देश के विकास में भागीदार बनने से रोक रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी तीखी टिप्पणी के जरिए सरकार को चेताने के साथ ही आमजन को भी जागरूक होने की नसीहत दी है।
