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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Feb 7th, 06:54 by rajni shrivatri
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एक छोटे से कस्बे में शंभू शिल्पकार रहता था। वह पहाडों से बड़े-बड़े पत्थर तोड़कर लाता और उसे आकार देकर मूर्तियां बनाता। इस रोजगार में मेहनत बहुत ज्यादा थी, आमदनी कम। दिन भर धूप पसीने में काम करते हुए शंभू पत्थर तोड़ता। यह काम उसके पूर्वज भी किया करते थे। शंभू काम करते हुए सोचता है, यह छोटा-मोटा काम करने से क्या फायदा? ठीक से दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। मैं बड़ा आदमी बन जाऊं तो काम भी ज्यादा नहीं करना होगा और बैठकर आराम से ऐस मौज करूंगा। एक रोज वह ऐसे नेता को देखता है, जिसके आगे पीछे हमेशा भीड़ रहती है। उसको हाथ जोड़कर प्रणाम करने वाले सैकड़ों लोग खड़े रहते है। शंभू ने नेता बनने की ठान ली, कुछ दिनों में वह नेता बन गया। नेता बनने के बाद जब वह एक रेली कर रहा था, धूप कॉफी तीव्र थी। धूप की गर्मी वह सहन नहीं कर पाया और बेहोश होकर वहीं गिर गया। होश आने पर उसने पाया वह बिस्तर पर लेटा हुआ है। बिस्तर पर लेटे लेटे वह सोचने लगा कि नेता से बलवान वह सूर्य है जिसकी गर्मी कोई सहन नहीं कर पाता। मुझे अब सूर्य बनना है। कुछ दिनों बाद वह सूर्य भी बन गया। शंभू अब गर्व से चमकता रहता और भीषण गर्मी उत्पन्न करता। तभी उसने देखा एक मजदूर खेत में आराम से काम कर रहा है। उसने गर्मी और बढ़ाई मगर मजदूर पर कोई फर्क नहीं पड़ा। विचार किया तो उसे मामूल हुआ। ठंडी-ठंडी हवा पृथ्वी पर बह रही है, तब शंभूू ने विचार किया। हवा बनकर मैं और शक्तिशाली बन जाऊंगा, कुछ दिनों बाद वह हवा बन गया। अचानक उसके सामने एक विकराल पर्वत आ गया, जिसके पार वह नहीं जा सका। तब उसने सोचा मैं इससे भी बडा पर्वत बनकर रहूंगा। कुछ समय बाद वह विशालकाय पर्वत बन गया। अब उसे अपने आकार और शक्तिशाली होने का घमंड हो गया। कुछ दिनों बाद उसे छेनी-हथौड़ी की आवाज परेशान करने लगी। वह काफी परेशान हो गया, उसकी आवाज इतनी कर्कश थी जो उसके शरीर को तोडे जा रही थी। आंख खुली तो उसने देखा एक शिल्पकार उसके पर्वत को तोड़ रहा है। लेकिन अब वह मजदूर नहीं बनना चाहता था। वह काफी परेशान था, नींद खुली तो उसने आईने में पाया- वह जो विशाल पर्वत को भी तोड़ने का साहस रखता है वह तो स्वयं वही है। कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता है, सभी के कार्य अपने-अपने हैं। किसी भी कार्य को करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए बल्कि गर्व का अनुभव करना चाहिए।
