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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

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शंकराचार्य ने कहा है कि जिसने मन को जीत लिया समझो उसने जगत को जीत लिया। मन ही मानव को परमधाम या नरक में बैठा देता है। परमधाम या नरक में जाने की कुंजी भगवान ने हमारे हाथों में ही दे रखी है। मन के हारे हार है और मन के जीते जीत है। अर्थात दुख और सुख तो सभी पर आते हैं लेकिन मानव को अपना पौरुष नहीं छोड़ना चाहिए। हार और जीत तो केवल मन के मानने अथवा मानने पर ही निर्भर है। अर्थात मन के हार मान लेने से इंसान की हार हर हाल में तय होती है। इसके विपरीत यदि इंसान का मन हार माने तो विपरित हालातों में भी विजयश्री उसके चरण चूमती है। जय पराजय हानि लाभ यश अपयश और दुख सुख सब मन के ही कारण हैं। इसलिए इंसान जैसा अनुभव करेगा वैसा ही वह बनेगा। मन की दृढ़ता के ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जिसमें मन के प्रतिज्ञा बल से लोगों ने अपनी हार को विजयश्री में बदल कर दिया है। महाभारत की लड़ाई में पांडवों की जीत का कारण यही था कि श्री हरी ने उनके मनोबल को दृढ़ कर दिया था। वहीं नचिकेता ने केवल मौत को पराजित किया अपितु यमराज से अपना मन वांछित वरदान भी हासिल किया। सावित्री के मन ने यमराज के सामने भी हर नहीं मानी और अंत में अपने पति को मौत के मुख से निकाल लाने में सफल हुई। कम साधनों वाले महाराणा प्रताप ने अपने मन में दृढ़ प्रतिज्ञा करके मुगल सम्राट अकबर से जंग लड़ी। शिवाजी ने बहुत थोड़ी सेना लेेकर ही औरंगजेब के दांत तुर्श कर दिए। दुबले पतले गांधीजी ने अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से ब्रिटिश रियासत की नींव को हिला दिया था। इस प्रकार के कितने ही उदाहरण यहां दिए जा सकते हैं। जिनसे  यह बात साफ हो जाती है कि हार जीत मन की दृढता पर ही निर्भर है। हमेशा देखा गया है कि जिस काम के प्रति इंसान का रुझान अधिक होता है उस काम को वह सभी दर्द सहन करते हुए भी पूरा करता है।वहीं जैसे ही किसी कार्य के प्रति मन की लगन कम हो जाती है वैसे वैसे ही उस काम को पूरा करने के जतन भी शिथिल हो जाते हैं। सफलता की कुंजी मन के ठेराव धैर्य  एवं सतत कर्म में ही निहित होती है। जब तक मन की में किसी कार्य को करने की तीव्र जिज्ञासा बनी रहेगी तब तक असफल होते हुए भी उस काम को करने की आशा बनी रहेगी। एक कहानी है कि एक राजा ने कई बार अपने शत्रु  से जंग की लेकिन हर बार पराजित हुआ। पराजित होने पर वह एक एकांत कक्ष में जाकर बैठ जाता। वहां उसने एक मकड़ी को ऊपर चढ़ते देखा। मकड़ी बार बार ऊपर चढ़ती लेकिन वह बार बार गिर जाती। लेकिन मकडी ने हार नहीं मानी तथा अंत में ऊपर चढ़ने में सफल हो गई। इससे राजा को अपार प्रेरणा मिली। फिर राजा ने एक बार फिर से नई सेना बनाई अपने हक की लड़ाई लड़ी और अपने शत्रु को पराजित करके अपना प्रदेश वापस ले लिया। इस छोटी सी मकड़ी की छोटी सी कथा में यही सार निहित है कि मन के हारने पर एक एक दिन सफलता मिल ही जाती है। अपने मन पर वश रखना जरूरी है।   

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