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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Friday January 24, 06:00 by Jyotishrivatri
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एक छोटे से गांव में एक लड़का रहता था। उसके घर की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर थी। पिता की मृत्यु हो गयी थी। उसकी मां घर-घर जाकर बर्तन मांज कर घर का गुजारा करती थी। वह लड़का अक्सर चुपचाप ही बैठा रहता था। एक दिन उसके टीचर ने उसे एक पत्र देते हुए कहा, तुम इसे अपनी मां को दे देना। उसकी मां उस पत्र को पढ़कर मन ही मन मुस्कुराने लगी। बेटे ने अपनी मां से पूछा, मां इस पत्र में क्या लिखा है? मां ने कहा, बेटा इसमें लिखा है कि आपका बेटा कक्षा में सबसे होशियार है। हमारे पास ऐसे अध्यापक नहीं है, जो आपके बच्चे को पढ़ा सकें। इसलिए आप इसका एडमिशन किसी और स्कूल में करवा दीजिए। लड़का खुश हो गया। और साथ ही साथ कॉन्फिडेंस भी बढ़ गया। वह मन की मन सोचने लगा की उसके पास कुछ खास है।
अगले ही दिन उसकी मां ने उसका एडमिशन दूसरे स्कूल में करवा दिया। उस लड़के ने मन लगाकर पढ़ाई की और एक दिन अपनी मेहनत के दम पर बड़ी सफलता हासिल की। वह वह लड़का कोई और नहीं महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन थे। मां बूढ़ी हो चुकी थी। एक दिन अचानक ही उनकी मृत्यु हो गयी। तभी अचानक उन्होंने मां की अलमारी खोली, और उनके सामानों को देखने लगे। उनकी नजर एक पत्र पर पड़ी। यह वही पत्र था, जो उसकी टीचर ने उसकी मां को देने के लिए दिया था।
उस पत्र में लिखा था कि आपको ये बताते हुए हमें बहुत दुख है कि आपका बेटा पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही कमजोर है। जिस तरह से इसकी उम्र बढ़ रही है, उस तरह से इसकी बुद्धि का विकास नहीं हो रहा है। इसलिए हम इसे स्कूल से निकाल रहे है। आप इसका एडमिशन किसी दूसरे स्कूल में करवा दीजिये। नहीं तो घर में इसे पढाइए। जिस प्रकार पत्र पढ़कर आंइस्टीन की मां ने अपने बेटे की सोच बदल दी। ठीक उसी प्रकार आप भी अपनी सोच बदल सकते है। खुद सोचिए कि वो लड़का तो वही था, फिर वो आंइस्टीन कैसे बना? सिर्फ अपनी सोच से। उन्होंने मान लिया कि वो खास है। हम अपने बारे में क्या सोचते है, ये हमारी जिंदगी में बहुत मायने रखता है।
अगले ही दिन उसकी मां ने उसका एडमिशन दूसरे स्कूल में करवा दिया। उस लड़के ने मन लगाकर पढ़ाई की और एक दिन अपनी मेहनत के दम पर बड़ी सफलता हासिल की। वह वह लड़का कोई और नहीं महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन थे। मां बूढ़ी हो चुकी थी। एक दिन अचानक ही उनकी मृत्यु हो गयी। तभी अचानक उन्होंने मां की अलमारी खोली, और उनके सामानों को देखने लगे। उनकी नजर एक पत्र पर पड़ी। यह वही पत्र था, जो उसकी टीचर ने उसकी मां को देने के लिए दिया था।
उस पत्र में लिखा था कि आपको ये बताते हुए हमें बहुत दुख है कि आपका बेटा पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही कमजोर है। जिस तरह से इसकी उम्र बढ़ रही है, उस तरह से इसकी बुद्धि का विकास नहीं हो रहा है। इसलिए हम इसे स्कूल से निकाल रहे है। आप इसका एडमिशन किसी दूसरे स्कूल में करवा दीजिये। नहीं तो घर में इसे पढाइए। जिस प्रकार पत्र पढ़कर आंइस्टीन की मां ने अपने बेटे की सोच बदल दी। ठीक उसी प्रकार आप भी अपनी सोच बदल सकते है। खुद सोचिए कि वो लड़का तो वही था, फिर वो आंइस्टीन कैसे बना? सिर्फ अपनी सोच से। उन्होंने मान लिया कि वो खास है। हम अपने बारे में क्या सोचते है, ये हमारी जिंदगी में बहुत मायने रखता है।
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