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SAHU COMPUTER TYPING CENTER MASAROVER COMPLEX CHHINDWARA [M.P] DURGESH SAHU - 8085027543
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राज और नागराजन सहपाठी थे। राज के पास टिकटों का सुंदर अलबम था। सब उसकी तारीफ करते थे। इधर जब से नागराजन के मामाजी ने सिंगापुर से एक अलबम भिजवाया है, तब से सारे लड़के पहली घंटी बजने तक नागराजन को घेरकर उसका अलबम देखते रहते हैं। लड़के कई टोलियों में अलबम देखने उसके घर भी हो आए। वह सब को अलबम दिखाता, पर हाथ न लगाने देता। उसकी कक्षा की लड़कियॉं भी उसका अलबम देख चुकी थीं।
अब राज के अलबम को कोई न देखता था। उसकी शान घट गई थी। उसने मधुमक्खियों की तरह एक-एक टिकट इकट्ठा किया था। वह सुबह से ही टिकट जमा करने वाले लड़कों के पास निकल जाता और अपने फालतू टिकट देकर उनसे वह टिकट ले लेता जो उसके पास नहीं होते थे। कनाडा का टिकट लेने के लिए तो चार मील पैदल भागा। उसका अलबम बड़ा था। सरपंच का लड़का तो उस अलबम को पच्चीस रुपए में खरीदना चाहता था। उसने राज को घमंडी कहा। राज ने उसके घर की बच्ची को तीस रुपए में खरीदना चाहा तो सारे लड़के हँस पड़े।
अब राज के अलबम की कोई बात नहीं करता। राज नागराजन के अलबम को नीची ऑंखों से देख लेता। नागराजन का अलबम सचमुच बड़ा प्यारा था। राज के अलबम में टिकटें ज्यादा थीं, पर सभी छात्र नागराजन के अलबम को देखते थे। लड़के तरह-तरह की बातें करके राज के अलबम को कमतर बताते थे। राज मन ही मन कुढ़ने लगा। उसे अपने ही अलबम से चिढ़ होने लगी। उसे लगा कि उसका अलबम वाकई कूड़ा हो गया है। एक शाम वो यह सोचकर नागराजन के घर पहुँचा अकसर घर आने-जाने के कारण किसी ने उसे टोका नहीं। वह ऊपर गया। नागराजन न था। उसने उसका अलबम ढूँढा पर न मिला, लेकिन उसने मेज के दराज की चाबी कमीज के नीचे खोंसकर वापस आ गया। घर आकर उसने अलबम अलमारी के पीछे छिपा दिया। वह डर भी रहा था। रात में उसने खाना न खाया। अगले दिन राज के पिता दफ्तर चले गए। वह घर पर ही था। तभी दरवाजे की सॉंकल खटकी। राज ने समझा पुलिस आ गई। तलाशी लेने पर पकड़े जाने के डर से उसने अलबम को अंगीठी में डाल दिया। अलबम जल उठा। वह बाथरूम में गया और मम्मी के बुलाने पर तौलिया लपेटकर बाहर आ गया। नागराजन को सामने देखकर उसने अलबम के बारे में बात की और कहा, तू मेरा अलबम लेजा। नागराजन को यकीन नहीं आया। राज अपनी बात दोहराता रहा। जब नागराजन अलबम लेकर जाने लगा तो राज ने कहा, मैं आज रात भर इसे और देखना चाहता हूँ। वह नागराजन से अलबम लेकर कमरे में आया और अलबम सीने से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगा।
अब राज के अलबम को कोई न देखता था। उसकी शान घट गई थी। उसने मधुमक्खियों की तरह एक-एक टिकट इकट्ठा किया था। वह सुबह से ही टिकट जमा करने वाले लड़कों के पास निकल जाता और अपने फालतू टिकट देकर उनसे वह टिकट ले लेता जो उसके पास नहीं होते थे। कनाडा का टिकट लेने के लिए तो चार मील पैदल भागा। उसका अलबम बड़ा था। सरपंच का लड़का तो उस अलबम को पच्चीस रुपए में खरीदना चाहता था। उसने राज को घमंडी कहा। राज ने उसके घर की बच्ची को तीस रुपए में खरीदना चाहा तो सारे लड़के हँस पड़े।
अब राज के अलबम की कोई बात नहीं करता। राज नागराजन के अलबम को नीची ऑंखों से देख लेता। नागराजन का अलबम सचमुच बड़ा प्यारा था। राज के अलबम में टिकटें ज्यादा थीं, पर सभी छात्र नागराजन के अलबम को देखते थे। लड़के तरह-तरह की बातें करके राज के अलबम को कमतर बताते थे। राज मन ही मन कुढ़ने लगा। उसे अपने ही अलबम से चिढ़ होने लगी। उसे लगा कि उसका अलबम वाकई कूड़ा हो गया है। एक शाम वो यह सोचकर नागराजन के घर पहुँचा अकसर घर आने-जाने के कारण किसी ने उसे टोका नहीं। वह ऊपर गया। नागराजन न था। उसने उसका अलबम ढूँढा पर न मिला, लेकिन उसने मेज के दराज की चाबी कमीज के नीचे खोंसकर वापस आ गया। घर आकर उसने अलबम अलमारी के पीछे छिपा दिया। वह डर भी रहा था। रात में उसने खाना न खाया। अगले दिन राज के पिता दफ्तर चले गए। वह घर पर ही था। तभी दरवाजे की सॉंकल खटकी। राज ने समझा पुलिस आ गई। तलाशी लेने पर पकड़े जाने के डर से उसने अलबम को अंगीठी में डाल दिया। अलबम जल उठा। वह बाथरूम में गया और मम्मी के बुलाने पर तौलिया लपेटकर बाहर आ गया। नागराजन को सामने देखकर उसने अलबम के बारे में बात की और कहा, तू मेरा अलबम लेजा। नागराजन को यकीन नहीं आया। राज अपनी बात दोहराता रहा। जब नागराजन अलबम लेकर जाने लगा तो राज ने कहा, मैं आज रात भर इसे और देखना चाहता हूँ। वह नागराजन से अलबम लेकर कमरे में आया और अलबम सीने से लगाकर फूट-फूट कर रोने लगा।
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