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created Tuesday January 21, 10:36 by sahucpct01
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केशव और श्यामा भाई-बहन थे। उनके घर की छत की कार्निस पर चिडि़या ने अंडे दिए थे। वे दोनों प्रतिदिन सुबह ऑंखें मलते कार्निस के सामने पहुँच जाते और चिड़ा और चिडि़या दोनों को देखते रहते। उन्हें अपने नाश्ते की भी सुध न रहती थी। वे अक्सर सोचते कि कितने अंडे होंगे? कितने बड़े अंडे होंगे? बच्चे कब निकलेंगे? वे इन प्रश्नों का उत्तर जानना चाहते थे पर अम्मा एवं बाबूजी को इनका जवाब देने का समय न था। श्यामा छोटी थी, अत: अपने भाई से प्रश्न पूछ लिया करती थी और केशव बड़ा होने के कारण कुछ न कुछ जवाब अवश्य देता था। दोनों बच्चे चिडि़या के बच्चों के खाने-पीने के विषय में परेशान थे। उनकी जिज्ञासा भी बढ़ती ही जा रही थी। भूख और प्यास से बच्चे मर जाऍंगे, यह सोचकर दोनों परेशान हो उठे। दोनों ने सोचा कि यदि कुछ चावल के दाने, एक कटोरी में पानी और घोंसले के ऊपर छाया कर दी जाए तो चिडि़या को परेशान नहीं होना पड़ेगा।
इस काम के लिए श्यामा ने चुपके से कुछ चावल निकाले और केशव ने तेल की कटोरी साफ कर उसमें पानी भर लिया। घोंसले पर छाया करने के लिए कूड़ा फेंकने वाली टोकरी का इंतजाम किया। गर्मी के दिन थे। अम्मा ने दोपहर में दोनों को सुला दिया और दरवाजा बंद करके खुद भी सो गई, लेकिन श्यामा और केशव की ऑंखों में नींद न थी। वे चिटकनी खोलकर चुपचाप बाहर आ गए। केशव स्टूल और नहाने की चौकी ले आया। स्टूल के नीचे नहाने की चौकी रखकर वह कार्निस तक पहुँच गया। श्यामा स्टूल को पकड़े थी। स्टूल हिलते ही केशव को परेशानी होती थी, पर वह किसी तरह कार्निस तक पहुँच गया। कार्निस पर हाथ रखते ही दोनों चिडि़यॉं उड़ गईं। केशव ने फटे-पुराने कपड़े की गद्दी बनाकर अंडे उसके ऊपर रख दिए। टोकरी को लकड़ी से टिकाकर अंडों पर छाया कर दी और पास में ही चावल के दाने तथा पानी भरी कटोरी रखकर उतर आया। श्यामा भी अंडे देखना चाहती थी पर गिरने के डर से केशव ने उसे ऊपर न चढ़ने दिया। फिर दोनों चुपचाप कमरे में आकर लेट गए। बाहर लू चल रही थी। वे दोनों सो गए।
इस काम के लिए श्यामा ने चुपके से कुछ चावल निकाले और केशव ने तेल की कटोरी साफ कर उसमें पानी भर लिया। घोंसले पर छाया करने के लिए कूड़ा फेंकने वाली टोकरी का इंतजाम किया। गर्मी के दिन थे। अम्मा ने दोपहर में दोनों को सुला दिया और दरवाजा बंद करके खुद भी सो गई, लेकिन श्यामा और केशव की ऑंखों में नींद न थी। वे चिटकनी खोलकर चुपचाप बाहर आ गए। केशव स्टूल और नहाने की चौकी ले आया। स्टूल के नीचे नहाने की चौकी रखकर वह कार्निस तक पहुँच गया। श्यामा स्टूल को पकड़े थी। स्टूल हिलते ही केशव को परेशानी होती थी, पर वह किसी तरह कार्निस तक पहुँच गया। कार्निस पर हाथ रखते ही दोनों चिडि़यॉं उड़ गईं। केशव ने फटे-पुराने कपड़े की गद्दी बनाकर अंडे उसके ऊपर रख दिए। टोकरी को लकड़ी से टिकाकर अंडों पर छाया कर दी और पास में ही चावल के दाने तथा पानी भरी कटोरी रखकर उतर आया। श्यामा भी अंडे देखना चाहती थी पर गिरने के डर से केशव ने उसे ऊपर न चढ़ने दिया। फिर दोनों चुपचाप कमरे में आकर लेट गए। बाहर लू चल रही थी। वे दोनों सो गए।
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