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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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एक छोटे से कस्बे में एक सेठ रहता था। उसका एक बड़ी सी दुकान थी, दिनभर दुकान के सामने सामान लेने वालों की कतार लगी रहती थी। इसलिए सेठ ने दो नौकर काम के लिए रख लिए। दोनों नौकर सुबह-सुबह ही दुकान आ जाते थे और देर रात तक दुकान में काम करते थे। सेठ दोनों नौकरो को बराबर मजूदरी देता था और सेठानी घर जाने के समय नौकरों को उनके बच्चों के लिए खाने-पीने का सामान दे देती थी। इस तरह कई दिन बीत गए सेठ को अपने दुकान की चीजे कम होती नजर आ रही थी, लेकिन दुकान के गल्ले में पैसा इनती तेजी से नहीं बढ़ रहा था।
अब वे परेशान होने लगे उन्होंने यह बात अपनी पत्नी को बताई तो उसकी पत्नी ने भी कहा कि मुझे भी कुछ दिनों से यह महसूस हो रहा है, कि घर का सामान जल्दी-जल्दी खत्म हो रहा है। सेठ और सठानी ने मामले की तहकीकात करने का निश्चय किया। सेठ और सेठानी एक-एक करके नौकरों के घर गए और उन्होंने उनके घरों की छानबीन की उन्हें एक नौकर के घर से दुकान के कुछ सामान दिखाई दिए। सेठानी ने सेठ को कहा कि उस नौकर को दुकान से निकाल दे तो फिर सेठ सोचने लगे कि उस नौकर के छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका पालन पोषण कैसे होगा? फिर अगर वह दूसरी जगह काम पर जाता है तो वह वहां भी चोरी करेगा। उसको निकालने से काम नहीं बनेगा उसको कैसे सुधारा जाए और कैसे सच्चाई की राह पर लाया जाए इसके बारे में सोचना पड़ेगा।
सेठ ने दोनों नौकरों की मजदूरी बढ़ा दी, उनके बच्चों के लिए कपड़ा जूता और पढ़ाई लिखाई का खर्च भी दिया। तब सेठानी फिर से झगड़ा करने लगी कि, अपना सारा पैसा नौकर-चाकर पर लुटा दोगे तो हमारे बच्चे क्या करेंगे, उनका भविष्य का क्या होगा, वह तो मर जाएंगे। तो उसने कहा कि नही सेठानी वह दोनों मेरे दुकान पर बड़ी मेहनत कर रहे हैं, उनके घर में अगर तंगी होगी तो उनका काम में मन नहीं लगेगा और भी गलत रास्ते पर चले जाएंगे उनको सुधारना मुझे बहुत जरूरी है, उनके सुधरने से हमें भी फायदा होगा। सेठ को अपने कार्य पर पूरा विश्वास था।
धीरे-धीरे दुकान में चोरी होना बंद हो गया और दोनों नौकर जी जान से, खुशी-खुशी काम करने लगे जिससे सेठ की आमदनी में भी बढ़ोत्तरी हुई। सेठ ने केवल अपने बारे में सोचा होता तो वह नौकर शायद कभी नहीं सुधरता, लेकिन सेठ जी की इय युक्ति से सभी का जीवन सुधर गया।
अब वे परेशान होने लगे उन्होंने यह बात अपनी पत्नी को बताई तो उसकी पत्नी ने भी कहा कि मुझे भी कुछ दिनों से यह महसूस हो रहा है, कि घर का सामान जल्दी-जल्दी खत्म हो रहा है। सेठ और सठानी ने मामले की तहकीकात करने का निश्चय किया। सेठ और सेठानी एक-एक करके नौकरों के घर गए और उन्होंने उनके घरों की छानबीन की उन्हें एक नौकर के घर से दुकान के कुछ सामान दिखाई दिए। सेठानी ने सेठ को कहा कि उस नौकर को दुकान से निकाल दे तो फिर सेठ सोचने लगे कि उस नौकर के छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका पालन पोषण कैसे होगा? फिर अगर वह दूसरी जगह काम पर जाता है तो वह वहां भी चोरी करेगा। उसको निकालने से काम नहीं बनेगा उसको कैसे सुधारा जाए और कैसे सच्चाई की राह पर लाया जाए इसके बारे में सोचना पड़ेगा।
सेठ ने दोनों नौकरों की मजदूरी बढ़ा दी, उनके बच्चों के लिए कपड़ा जूता और पढ़ाई लिखाई का खर्च भी दिया। तब सेठानी फिर से झगड़ा करने लगी कि, अपना सारा पैसा नौकर-चाकर पर लुटा दोगे तो हमारे बच्चे क्या करेंगे, उनका भविष्य का क्या होगा, वह तो मर जाएंगे। तो उसने कहा कि नही सेठानी वह दोनों मेरे दुकान पर बड़ी मेहनत कर रहे हैं, उनके घर में अगर तंगी होगी तो उनका काम में मन नहीं लगेगा और भी गलत रास्ते पर चले जाएंगे उनको सुधारना मुझे बहुत जरूरी है, उनके सुधरने से हमें भी फायदा होगा। सेठ को अपने कार्य पर पूरा विश्वास था।
धीरे-धीरे दुकान में चोरी होना बंद हो गया और दोनों नौकर जी जान से, खुशी-खुशी काम करने लगे जिससे सेठ की आमदनी में भी बढ़ोत्तरी हुई। सेठ ने केवल अपने बारे में सोचा होता तो वह नौकर शायद कभी नहीं सुधरता, लेकिन सेठ जी की इय युक्ति से सभी का जीवन सुधर गया।
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