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created Jan 18th, 05:09 by sahucpct02
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जब हर्ष उत्तर-भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य के शासक थे और विद्वान चीनी यात्री हुआन त्सांग नालंदा में अध्ययन कर रहे थे, उसी समय अरब में इस्लाम अपना रूप ग्रहण कर रहा था। भारत के मध्य भाग तक पहुँचने में इसे लगभग 600 वर्ष लग गए और जब उसने राजनीतिक विजय के साथ में भारत में प्रवेश किया, तब वह बहुत बदल चुका था और उसके नेता दूसरे लोग थे। अरब वाले भारत के उत्तर-पश्चिमी छोर तक पहुँचकर वहीं रुक गए। अरब सभ्यता का क्रमश: पतन हुआ और मध्य तथा पश्चिमी एशिया में तुर्की जातियॉं आगे आईं। भारत के सीमावर्ती प्रदेश से यही तुर्क और अफ़गान इस्लाम को राजनीति शक्ति के रूप में भारत लाए।
अरबों ने बड़ी आसानी से दूर-दूर तक फैलकर तमाम इलाके फ़तह किए। पर भारत में वे तब भी और बाद में भी सिंध से आगे नहीं बढ़े। शायद भारत तब भी आक्रमणकारियों को रोकने के लिए काफ़ी मज़बूत था। किसी हद तक इसका कारण अरबों के आंतरिक झगड़े भी हो सकते हैं। सिंध बगदाद की केंद्रिय सत्ता से अलग होकर एक छोटा-सा स्वतंत्र राज्य हो गया। हालॉंकि आक्रमण नहीं हुआ, भारत और अरब के बीच संपर्क बढ़ने लगा। दोनों ओर से यात्रियों का आना-जाना हुआ, राजदूतावासों की अदला-बदली हुई। भारतीय पुस्तकें, विशेषकर गणित और खगोलशास्त्र पर, बददाद पहुँचीं और वहॉं अरबी में उनके अनुवाद हुए। बहुत से भारतीय चिकित्सक बगदाद गए। यह व्यापार और सांस्कृतिक संबंध उत्तर-भारत तक सीमित नहीं थे। भारत के दक्षिणी राज्यों ने भी उसमें हिस्सा लिया, विशेषकर राष्ट्रकूटों ने जो भारत के पश्चिमी तट से व्यापार किया करते थे।
इस लगातार संपर्क के कारण भारतीयों को अनिवार्य रूप से इस नए धर्म इस्लाम की जानकारी हो गई। इस नए धर्म को फैलाने के लिए प्रचारक भी आए और उनका स्वागत हुआ। मसजिदें बनीं। न शासन ने इसका विरोध किया न जनता ने। न कोई धार्मिक झगड़े हुए। सब धर्मों का आदर और पूजा के सभी तरीकों के प्रति सहनशीलता का व्यवहार करना भारत की प्राचीन परंपरा थी। अत: राजनीतिक ताकत के रूप में आने से कई शताब्दी पहले इस्लाम भारत में एक धर्म के रूप में आ गया।
अरबों ने बड़ी आसानी से दूर-दूर तक फैलकर तमाम इलाके फ़तह किए। पर भारत में वे तब भी और बाद में भी सिंध से आगे नहीं बढ़े। शायद भारत तब भी आक्रमणकारियों को रोकने के लिए काफ़ी मज़बूत था। किसी हद तक इसका कारण अरबों के आंतरिक झगड़े भी हो सकते हैं। सिंध बगदाद की केंद्रिय सत्ता से अलग होकर एक छोटा-सा स्वतंत्र राज्य हो गया। हालॉंकि आक्रमण नहीं हुआ, भारत और अरब के बीच संपर्क बढ़ने लगा। दोनों ओर से यात्रियों का आना-जाना हुआ, राजदूतावासों की अदला-बदली हुई। भारतीय पुस्तकें, विशेषकर गणित और खगोलशास्त्र पर, बददाद पहुँचीं और वहॉं अरबी में उनके अनुवाद हुए। बहुत से भारतीय चिकित्सक बगदाद गए। यह व्यापार और सांस्कृतिक संबंध उत्तर-भारत तक सीमित नहीं थे। भारत के दक्षिणी राज्यों ने भी उसमें हिस्सा लिया, विशेषकर राष्ट्रकूटों ने जो भारत के पश्चिमी तट से व्यापार किया करते थे।
इस लगातार संपर्क के कारण भारतीयों को अनिवार्य रूप से इस नए धर्म इस्लाम की जानकारी हो गई। इस नए धर्म को फैलाने के लिए प्रचारक भी आए और उनका स्वागत हुआ। मसजिदें बनीं। न शासन ने इसका विरोध किया न जनता ने। न कोई धार्मिक झगड़े हुए। सब धर्मों का आदर और पूजा के सभी तरीकों के प्रति सहनशीलता का व्यवहार करना भारत की प्राचीन परंपरा थी। अत: राजनीतिक ताकत के रूप में आने से कई शताब्दी पहले इस्लाम भारत में एक धर्म के रूप में आ गया।
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