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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्‍यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565

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बाल तस्‍करी के खिलाफ कई सख्‍त कानूनी प्रावधानों के बावजूद भारत में यह समस्‍या नासूर बनती जा रही है। दिल्‍ली में सीबीआइ की छापेमारी के दौरान अस्‍पताल से नवजात बच्‍चे चुराने वाले गिरोह के पर्दाफाश से फिर यह तथ्‍य उभरा हैं कि बच्‍चों के भविष्‍य से खिलवाड़ करने वालों में कानून का कोई खौफ नहीं है। बच्‍चों की तस्‍करी पर भारी जुर्माने के साथ उम्रकैद तक का प्रावधान होने के बावजूद यह कड़वी हकीकत है कि ऐसे दस फीसदी से भी कम मामले दोषियों को सजा तक पहुंच पाते है। मुकदमों की पैरवी सही तरीके से नहीं होने के कारण अपराधी बच निकलते है और वे फिर बाल तस्‍करी में लिप्‍त हो जाते है।  
बाल तस्‍करी की कोई एक वजह नहीं है। लेकिन चिंता की बात यह भी है कि देश में युवाओं के एक वर्ग की सोच में बदलाव भी परोक्ष रूप से बाल तस्‍करी को बढ़ावा दे रहा है। एक सर्वे में खुलासा हुआ था कि भारत के नौ फीसदी युवा शादी तो करना चाहते हैं लेकिन बच्‍चे नहीं पैदा करना चाहते। संतान सुख के लिए उन्‍हें बच्‍चे खरीदने से परहेज नहीं है। हैरत की बात यह हैं कि देश के ढाई करोड़ से ज्‍यादा अनाथ बच्‍चों में से किसी को गोद लेने का विकल्‍प होने के बावजूद ऐसे युवा कई बार बाल तस्‍करी करने वालों से संपर्क तक साध लेते है। बाल तस्‍करी की गंभीर समस्‍या पर हमारा ध्‍यान तभी जाता है, जब किसी गिरोह का पर्दाफाश होता है या बाल तस्‍करी को लेकर कोई रिपोर्ट जारी होती है। पिछले साल एक एनजीओं की रिपोर्ट में बताया गया था कि 2016 से 2022 के बीच बाल तस्‍करी के सबसे ज्‍यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गये है।  
बाल तस्‍करी की समस्‍या से भारत ही नहीं, कई दूसरे देश भी जूझ रहे है। सरकार और समाज को इससे मिलकर निपटना होगा। इस समस्‍या की जड़ में गरीबी भी है।      

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