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CPCT UMARIA (RAM-JINDGI)

created Jan 15th, 08:40 by Ramnaresh Patel AYAMRAM


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महाराष्‍ट्र में एक कथा बहुत प्रचलित है। छत्रपति शिवाजी जब मुगलों से लोहा लेकर हिंदवी स्‍वाराज्‍य की प्रस्‍थापना कर रहे थे, तब मुगल सैनिक उनके पीछे पड़ गए। चूंकि छत्रपति शिवाजी के साथ कम सैनिक थे, इसलिए वे किसी तरह बचकर निकलने का प्रयास कर रहे थे। भागते-भागते वे और उनके गिने-चुने साथी एक मंदिर में पहुँचे। संयोग से उस मंदिर में संत तुकाराम महाराज कीर्तन-प्रवचन कर रहे थे। शिवाजी और उनके साथी वहां उपस्थित लोगों की भीड़ में घुल-मिल गए। हालांकि उनका पीछा करते-करते शीघ्र ही मुगल सैनिक भी वहां धमके। स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए संत तुकाराम ने अपने आराध्‍य भागवान श्री विट्ठल की मूर्ति से हजारों सैनिक, हजारों शिवाजी निकल पड़े और उन्‍होंने मुगल सैनिकों से दो हाथ करते हुए उनको भगा दिया। छत्रपति शिवाजी ने संत तुकाराम महाराज का विनम्र भाव से वंदन करते हुए उनके प्रति आभार प्रकट किया।  
यह कथा सत्‍य हो अथवा हो, लेकिन उसकी प्रतीकात्‍मकता में भी एक सच्‍चाई है। संत तुकाराम महाराज वारकरी संप्रदाय के प्रतीक हैं। यह कहानी बताती है कि संत तुकाराम महाराज के रूप में वारकरी संप्रदाय ने महाराष्‍ट्र में भक्ति का अलख जगाया और साथ ही देशभक्ति का एक ऐसा उदाहरण प्रस्‍तुत किया  जिसके कारण छत्रपति शिवाजी और उनके बाद आने वाले शासकों को एक से एक वीर योद्धा अनवरत मिलते रहे।  
वारकरी संप्रदाय के कारण ही महाराष्‍ट्र ने वीरता, मानवता जैसी परंपराओं का बराबर पालन किया। संत ज्ञानेश्‍वर से लेकर संत तुकारमा महाराज तथा बाद में भी कई महात्‍माओं ने वारकरी संप्रदाय का निर्वहन किया है। इस विचार ने समाज में भक्ति का ही नहीं बल्कि सामाजिक समता और देशभक्ति का भी बीजारोपण किया है।  
इन संतो का आध्‍यात्मिक विचार यह दिखाता है कि मानव जीवन कैसे बदल सकता है। वे केवल संत नहीं थे, बल्कि समाज सुधारक और राष्‍ट्र उद्धारक भी थे। समाज दकियानूसी प्रथाओं को दूर कर समता लाना उद्देश्‍य था।  

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