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MY NOTES 247 जूनियर ज्‍यूडिशियल असिस्‍टेंट हिंदी मोक टाइपिंग टेस्‍ट

created Jan 13th, 05:34 by Anamika Shrivastava


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अधिनियम की धारा 23 के निबंधनो में यह भी देखा जा सकता है, यह मानते हुए, कि अधिकरण द्वारा दान पत्र या अन्‍यथा को शून्‍य अभिनिर्धारित कर दिया, कब्‍जे की पुन: प्राप्ति के लिये कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए, यह मानते हुए कि दान पत्र के संदर्भ में कब्‍जा पहले ही सौंप दिया गया है, अधिनियम में यह नहीं बताया गया है कि हस्‍तांतरणकर्ता द्वारा ऐसा कब्‍जा कैसे लिया जाएगा। हालॉंकि , धारा 23 एक मात्र प्रावधान है जो केवल दान पत्र को शून्‍य की घोषण या अन्‍यथा होने का संदर्भ देता है। इसके अलावा, अधिकरण के पास कोई आदेश पारित करने की कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए, हस्‍तांतरणकर्ता को दान पत्र के तहत हस्‍तांतरित संपत्ति का कब्‍जा पाने के लिए अनिवार्य रूप से सिविल न्‍यायालय में जाना होगा। हालॉंकि, ऐसे तथ्‍यों को हमारे सामने नहीं उठाया गया है। इसलिए, हम इसे उचित मंच पर निर्णय लेने के लिए छोड़ देते हैं। अधिनियम की प्रस्‍तावना इंगित करती है कि इसका उद्देश्‍य माता-पिता और वरिष्‍ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्‍याण के लिए अधिक प्रभावी प्रावधान उपबंधित करना है इसे इस प्रकार पढ़ा जाता है इसलिए, अधिनियम का संपूर्ण दायरा केवल माता-पिता और वरिष्‍ठ नागरिकाें के भरण-पोषण और कल्‍याण के संदर्भ में है। इन परिस्थितियों में, अधिनियम के तहत धारा 23 को एक मात्र प्रावधान के रूप में समझा जाना चाहिए। अधिनियम की विभिन्‍न सभी धाराओं वरिष्‍ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्‍याण से संबंधित मुद्दा पर ध्‍यान केंद्रित है हालॉंकि , धरा 23 हस्‍तांतरित व्‍यक्ति के संपत्ति अधिकारों में हस्‍तक्षेप को संदर्भित करती है। इसलिए, भले ही अधिनियम की धारा 23 प्रस्‍तावना के अनुरूप नहीं है, फिर भी इसे वरिष्‍ठ नागरिकों के लाभ के लिए एक अलग प्रावधाना के रूप में समझा जाना चाहिए। जहां तक दान पत्र का सवाल है, दिनांक 09.09.2019 के दान पत्र में ऐसी कोई शर्त नहीं पाई गई है
 
  

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