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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jan 11th, 10:07 by Jyotishrivatri
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तिरूपति मंदिर में बैकुंठ द्वार दर्शन टिकट केंद्र के पास मची भगदड़ से हुए हादसे ने एक बार फिर खासतौर से आराधना स्थलों व सामाजिक-धार्मिक आयोजन में बदइंतजामी को उजागर किया है। आंध्रप्रदेश के तिरूपति मंदिर में टोकन लेने के लिए उमड़े श्रद्धालुओं में मची अफरा-तफरी जानलेवा साबित हुई। इस भगदड़ में जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा व घटना की जांच के आदेश की रस्म अदायगी उसी तरह हुई है, जिस तरह ऐसे हर हादसे में होती है। लेकिन सच तो यही है कि ऐसे हादसों से कभी कोई सबक नहीं लिया जाता।
तिरूमला तिरूपति देवस्थानम ने बैकुंठ एकादशी के अवसर पर दस दिन तक विशेष दर्शन की व्यवस्था की थी। ये दर्शन 10 से 19 जनवरी तक बैकुंठ द्वार से होने थे। इसके लिए दर्शन टोकन जारी किए जाने थे। हादसे की वजह प्रथम दृष्टया यही मानी जा रही है कि टोकन वितरण के इंतजाम वहां उमड़ी भीड़ को देखते हुए अपर्याप्त थे। टोकन 9 जनवरी सुबह पांच बजे से मिलने वाले थे। भीड़ टिकट केंद्रों पर इकट्ठा होने लगी। हर कोई जल्दी टिकट पाना चाहता था। यदि भीड़ को नियंत्रित नहीं जाए तो हादसे की आशंका रहती है। पूजा स्थल हों या फिर सत्संग, प्रवचनों में उमड़ने वाली भीड, जब-जब भी भगदड़ मचने से लोगों की जाने गई है या फिर बड़ी संख्या में लोग घायल हुए है तो एक ही बात सामने आती हैं कि भीड़ प्रबंधन उपायों की अनदेखी की गई। धार्मिक कार्यक्रमों में आस्था के अतिरेक में भी कई बार सुरक्षा उपायों की अनदेखी होती है। भारी भीड़ के नियंत्रण के लिए समुचित बंदोबस्त न होना तो अलग बात है, कई बार समुचित इंतजाम होने पर भी कोई छोटी सी अफवाह लोगों में भगदड़ का कारण बन जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि आए दिन होने वाले ऐसे हादसों से सबक लेने के प्रयास समय रहते हो ही नहीं पाते। ऐसा करने पर हादसों को रोका जा सकता है। भीड़ का अनुमान लगाकर उसी के अनुरूप बंदोबस्त न होना ही तिरूपति मंदिर जैसे हादसों की बड़ी वजह बनता है।
तकनीक के दौर में भीड़ प्रकंधन बहुत मुश्किल काम नहीं है। धार्मिक स्थल हों या धार्मिक-सामाजिक आयोजन, प्रशासन के लिए भीड़ का अनुमान लगाना कठिन काम नहीं है। सीसीटीवी कैमरों के अलावा सैटेलाइट से भी भीड़ का अंदाजा लगाना आसान काम है।
तिरूमला तिरूपति देवस्थानम ने बैकुंठ एकादशी के अवसर पर दस दिन तक विशेष दर्शन की व्यवस्था की थी। ये दर्शन 10 से 19 जनवरी तक बैकुंठ द्वार से होने थे। इसके लिए दर्शन टोकन जारी किए जाने थे। हादसे की वजह प्रथम दृष्टया यही मानी जा रही है कि टोकन वितरण के इंतजाम वहां उमड़ी भीड़ को देखते हुए अपर्याप्त थे। टोकन 9 जनवरी सुबह पांच बजे से मिलने वाले थे। भीड़ टिकट केंद्रों पर इकट्ठा होने लगी। हर कोई जल्दी टिकट पाना चाहता था। यदि भीड़ को नियंत्रित नहीं जाए तो हादसे की आशंका रहती है। पूजा स्थल हों या फिर सत्संग, प्रवचनों में उमड़ने वाली भीड, जब-जब भी भगदड़ मचने से लोगों की जाने गई है या फिर बड़ी संख्या में लोग घायल हुए है तो एक ही बात सामने आती हैं कि भीड़ प्रबंधन उपायों की अनदेखी की गई। धार्मिक कार्यक्रमों में आस्था के अतिरेक में भी कई बार सुरक्षा उपायों की अनदेखी होती है। भारी भीड़ के नियंत्रण के लिए समुचित बंदोबस्त न होना तो अलग बात है, कई बार समुचित इंतजाम होने पर भी कोई छोटी सी अफवाह लोगों में भगदड़ का कारण बन जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि आए दिन होने वाले ऐसे हादसों से सबक लेने के प्रयास समय रहते हो ही नहीं पाते। ऐसा करने पर हादसों को रोका जा सकता है। भीड़ का अनुमान लगाकर उसी के अनुरूप बंदोबस्त न होना ही तिरूपति मंदिर जैसे हादसों की बड़ी वजह बनता है।
तकनीक के दौर में भीड़ प्रकंधन बहुत मुश्किल काम नहीं है। धार्मिक स्थल हों या धार्मिक-सामाजिक आयोजन, प्रशासन के लिए भीड़ का अनुमान लगाना कठिन काम नहीं है। सीसीटीवी कैमरों के अलावा सैटेलाइट से भी भीड़ का अंदाजा लगाना आसान काम है।
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