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SAHU COMPUTER TYPING CENTER MANSAROVAR COMPLEX CHHINDWARA [M.P.] CPCT ADMISSION OPEN [संचालक- दुर्गेश साहू ] MOB.-8085027543 MPHC JJA EXAM TEST
created Jan 7th, 07:21 by sahucpct01
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इस तरह मंदिरों और महलों में विकसित होती हुई ये कलाऍं शास्त्रीय स्वरूप ग्रहण करती गईं। गुप्त साम्राज्य में तो पराकाष्ठा पर पहुँच गईं। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में इनका शास्त्रीय स्वरूप बना, जो कला के लिए अब तक का प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण शास्त्र है।
शास्त्र ने संगीत, नृत्य-अभिनय कलाओं को एक शास्त्रीय कला का स्वरूप दिया। फिर भी लोक कलाऍं अपनी जड़ों से पूरी तरह जुड़ी रहीं। आज की कलाओं की जड़ें लोक में ही हैं, चाहे चित्रकला हो, संगीतकला हो या फिर नृत्य कला। शास्त्रीय और लोककलाओं के बीच कभी न खत्म होने वाला संवाद ही इनकी ताकत है।
चित्रकला
चित्रकला प्राचीन काल से ही हमारे जीवन का अभिन्न अंग रहा है। जब हमारे पास भाषा नहीं थी तब भी चित्रकारी थी और यही अभिव्यक्ति का माध्यम थी। प्रागैतिहासिक समय में अपने वातावरण, रहन-सहन, भावों और विचारों को मनुष्य ने चित्रों के माध्यम से ही व्यक्त किया।
सबसे प्राचीन चित्रों के नमूने शैल चित्रों को ही माना जाता है। ये चट्टानों पर प्राकृतिक रंगों से बने हुए चित्र हैं। ये गुफ़ाओं में मिलते हैं। मध्यप्रदेश में भीम बेटका की गुफ़ाऍं शैल चित्रों के लिए जानी जाती है। इन चित्रों में जीवन की रोज़मर्रा की गतिविधियॉं शिकार, नृत्य, संगीत, जानवर, युद्ध, साज-सज्जा सभी कुछ दिखाई पड़ता है। गुफ़ाओं में कला सृजन की अति प्राचीन परंपरा रही है। एलोरा और अजंता की गुफ़ाऍं कला कृतियों के लिए विख्यात हैं।
चौथी से छठी सदी के बीच गुप्त साम्राज्य कलाओं के लिए स्वर्ण युग कहलाता है। अजंता की गुफ़ाऍं उन्हीं दिनों खोदी गयीं। उनकी दीवारों पर चित्र बनाए गए। बाग और बादामी की गुफ़ाऍं भी इसी जमाने की हैं। अजंता की गुफ़ाओं के चित्र इतने आकर्षक हैं कि वे आज तक के कलाकारों पर गहरा असर डालते हैं। ऐसा मानना है कि अजंता के दीवारों पर बने चित्रों को बौद्ध भिक्षुओं ने बनाया है।
शास्त्र ने संगीत, नृत्य-अभिनय कलाओं को एक शास्त्रीय कला का स्वरूप दिया। फिर भी लोक कलाऍं अपनी जड़ों से पूरी तरह जुड़ी रहीं। आज की कलाओं की जड़ें लोक में ही हैं, चाहे चित्रकला हो, संगीतकला हो या फिर नृत्य कला। शास्त्रीय और लोककलाओं के बीच कभी न खत्म होने वाला संवाद ही इनकी ताकत है।
चित्रकला
चित्रकला प्राचीन काल से ही हमारे जीवन का अभिन्न अंग रहा है। जब हमारे पास भाषा नहीं थी तब भी चित्रकारी थी और यही अभिव्यक्ति का माध्यम थी। प्रागैतिहासिक समय में अपने वातावरण, रहन-सहन, भावों और विचारों को मनुष्य ने चित्रों के माध्यम से ही व्यक्त किया।
सबसे प्राचीन चित्रों के नमूने शैल चित्रों को ही माना जाता है। ये चट्टानों पर प्राकृतिक रंगों से बने हुए चित्र हैं। ये गुफ़ाओं में मिलते हैं। मध्यप्रदेश में भीम बेटका की गुफ़ाऍं शैल चित्रों के लिए जानी जाती है। इन चित्रों में जीवन की रोज़मर्रा की गतिविधियॉं शिकार, नृत्य, संगीत, जानवर, युद्ध, साज-सज्जा सभी कुछ दिखाई पड़ता है। गुफ़ाओं में कला सृजन की अति प्राचीन परंपरा रही है। एलोरा और अजंता की गुफ़ाऍं कला कृतियों के लिए विख्यात हैं।
चौथी से छठी सदी के बीच गुप्त साम्राज्य कलाओं के लिए स्वर्ण युग कहलाता है। अजंता की गुफ़ाऍं उन्हीं दिनों खोदी गयीं। उनकी दीवारों पर चित्र बनाए गए। बाग और बादामी की गुफ़ाऍं भी इसी जमाने की हैं। अजंता की गुफ़ाओं के चित्र इतने आकर्षक हैं कि वे आज तक के कलाकारों पर गहरा असर डालते हैं। ऐसा मानना है कि अजंता के दीवारों पर बने चित्रों को बौद्ध भिक्षुओं ने बनाया है।
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