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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Dec 30th 2024, 04:37 by lovelesh shrivatri


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विरोधी पक्षकार संख्‍या 1 से 4 को यह परमादेश जारी किया जाए कि वे भूतपूर्व संसद सदस्‍यों/आश्रितों को पेंशन/कुटुम्‍ब पेंशन का संदाय करना और ऊपर 1 में दी गई अन्‍य सुविधाओं की व्‍यवस्‍था करना बंद कर दें। अवैध पेंशन/ कुटुम्‍ब पेंशन प्राप्तिकर्ताओं से उसकी वसूली करने का आदेश किया जाए। उच्‍च न्‍यायालय ने इस मामले में के प्रथम अपीलार्थी द्वारा दी गई सभी दलीलों को नकारते हुए और यह अभिनिर्धारित करते हुए रिट याचिका खारिज कर दी कि कॉमन काज, एक रजिस्‍ट्रीकृत सोसायटी बनाम भारत संघ वाले मामले में दिए गए निर्णय को ध्‍यान में रखते हुए यह प्रश्‍न अब अनिर्णीत विषय नहीं रह गया है जिसमें इस न्‍यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि संसद भूतपूर्व संसद सदस्‍यों के लिए पेंशन के संबंध मे विधान बनाने के लिए सक्षम है और परिणामस्‍वरूप उसे ऐसी कोई शर्त विहिृत करने की शक्ति प्राप्‍त है जिसके अधीन पेंशन का संदाय किया जा सकता है। जिस प्रश्‍न का उत्तर दिया जाना शेष है, वह यह है कि क्‍या किन्‍हीं ऐसे आक्षेपित संशोधनों से, जो भूतपूर्व संसद सदस्‍यों और उनसे संबद्ध व्‍यक्तियों के पक्ष में विभिन्‍न अधिकारों का और संसद सदस्‍यों के लिए कतिपय अन्‍य सुविधाओं का सृजन करते हैं, विभेदकारी होने के कारण भारत के संविधान, 1950 के अनुच्‍छेद 14 का अतिक्रमण होता है। अपीलार्थी का यह पक्षकथन था कि कॉमन काज वाले मामले में दिया गया निर्णय इस बाबत मौन है। तथापि, उच्‍च न्‍यायालय ने यह मत अपनाया कि काॅमन काज वाले मामले द्वारा अनुच्‍छेद 14 को दी गई चुनौती को पुरोबंधित कर दिया गया है। अपीलार्थियों की दलीलें इस गलत उपधारणा पर आधारित हैं कि संविधान के कतिपय उपबंधों में ऐसे व्‍यक्तियों को, जो सांविधानिक पद धारण करते हैं, जैसे इस न्‍यायालय के न्‍यायाधीश, पेंशन का संदाय किया जाना आदिष्‍ट है। न्‍यायालय ने संविधान के सुसंगत उपबंधों के पाठ की भाषा की पहले ही परीक्षा कर ली है। उन उपबंधों के पाठ का सही और उचित अर्थान्‍वयन करने पर उनमें पेंशन का संदाय किया जाना आदिष्‍ट नहीं है।  

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