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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Dec 11th, 06:07 by lucky shrivatri
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पुराने समय की बात है नंदनपुर गांव में एक कौआ अपनी रानी के साथ घने पेड़ पर रहता था। एक दिन दोनों घूमने महल की और उड़ चले। वहां स्वादिष्ट मछली देखकर रानी के मुंह में पानी आ गया। किन्तु सख्त पहरा होने के कारण वे उसे उठा न सके। दोनों वापस अपने घोंसले में आ गए। अगले दिन राजा कौए ने रानी से कहा, चलो प्रिये, बहुत भूख लगी है, चलो भोजन की खोज में चलते हैं। रानी बोली- मुझे तो उसी महल का स्वादिष्ट भोजन चाहिए, अन्यथा में अपने प्राण त्याग दूंगी। कौआ सोच में पड़ गया। तभी वहां सेनापति कौआ आ गया। क्या बात है महाराज? आप काफी चिंतित नजर आ रहे हैं? सेनापति कौए ने पूछा। राजा ने उसे अपनी चिंता का कारण बताया। सेनापति ने कहा, महाराज आप चिंता ना करें, मैं रानी जी को मनपसंद भोजन ला दूंगा। आठ होशियार कौओं को लेकर सेनापति महल में रसोई की छत पर जा बैठा। उसने निर्देश दिया, ध्यान से सुनो। जब राजा का खाना जा रहा होगा, तो मैं ऐसी चेष्टा करूंगा, जिससे रसोइए के हाथ से थाल गिर जाए। तुम में से चार अपनी-अपनी चोंंच में चावल भर लेना और चाल अन्य मछली। फिर रानी के पास उड़ जाना। कुछ देर बाद जब जैसे ही रसोइया खाना लेकर आंगन में पहुंचा तो सेनापति कौआ रसोइए के सिर पर चोंच से वार करने लगा, रसोइए के हाथ से थाल छूट गया, थाल के गिरते ही आठों कौए अपनी-अपनी चोंच भरकर उड़ गए। उधर सिपाहियों ने सेनापति कौए को पकड़ लिया। वह सोचने लगा, कोई बात नहीं मेरा चाहे कुछ भी हो, मगर रानी की इच्छा तो पूरी हो गयी। फिर उसे राजा के पास ले जाया गया।
राजा बोला- ऐ कौंए। तूने मुझे नाराज करके अपनी जान खतरे में डाली। बता ऐसा क्यों किया तूने ? आपके थाल का भोजन हमारी रानी को चाहिए था। मैंने उसे लाने का वचन दिया था, और अब उसे पूरा किया है बस। मैं आपकी कैद में हूं, जो सजा आप देना चाहें, मुझे मंजूर होगी। कहकर सेनापति कौआ खामोश हो गया। राजा बोला- ऐसे स्वामी भक्त को तो उपहार मिलना चाहिए सजा नहीं। इसे आजाद कर दो और सुनो आज से जो भी खाना मेरे लिए बनेगा, उसमें से राजा, रानी व तुम्हारे लिए भोजन भेजा जाएगा और तुम्हारी प्रजा के लिए भी ढेर सारा चावल रोज पका करेगा।
सेनापति कौआ राजा को प्रणाम करके वापस अपने राजा के पास पहुंच गया।
राजा बोला- ऐ कौंए। तूने मुझे नाराज करके अपनी जान खतरे में डाली। बता ऐसा क्यों किया तूने ? आपके थाल का भोजन हमारी रानी को चाहिए था। मैंने उसे लाने का वचन दिया था, और अब उसे पूरा किया है बस। मैं आपकी कैद में हूं, जो सजा आप देना चाहें, मुझे मंजूर होगी। कहकर सेनापति कौआ खामोश हो गया। राजा बोला- ऐसे स्वामी भक्त को तो उपहार मिलना चाहिए सजा नहीं। इसे आजाद कर दो और सुनो आज से जो भी खाना मेरे लिए बनेगा, उसमें से राजा, रानी व तुम्हारे लिए भोजन भेजा जाएगा और तुम्हारी प्रजा के लिए भी ढेर सारा चावल रोज पका करेगा।
सेनापति कौआ राजा को प्रणाम करके वापस अपने राजा के पास पहुंच गया।
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